तालिबान महिलाओं के उम्मीदों का कब्रिस्तान  

तालिबान महिलाओं के उम्मीदों का कब्रिस्तान  

file photo

15 अगस्त 2021 को जब भारत देश आजादी का उत्सव मना रहा था। उसी दिन राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के साथ ही पूरे अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का नियंत्रण पक्का हो गया था। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके प्रशासन के बड़े नेता और अधिकारी देश छोड़कर जा चुके थे। और तालिबान लड़ाके काबुल के प्रमुख जगहों पर कब्जा करते नजर आ रहे थे। तालिबान की पिछली हुकूमत ने 1990 के दशक में महिलाओं की आज़ादी पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं।

पिछले साल जब तालिबान की सत्ता में वापसी हुई तो अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं पर कई प्रतिबंध फिर से लगा दिए गए। अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से वैसे तो तालिबान महिलाओं के खिलाफ कई आदेश जारी कर चुका है। अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती जा रही है। तालिबान सरकार एक के बाद एक ऐसे हुक्म जारी कर रही है जिससे महिलाओं के सपनों, उनकी उम्मीदों, उनके अधिकारों पर तो चोट पहुँच ही रही है साथ ही अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महिलाओं की भूमिका भी पूरी तरह खत्म होती जा रही है। दुनिया में अफगानिस्तान के अलावा शायद ही इस समय कोई ऐसा देश होगा जो अपनी ही आधी आबादी की खुशियों को कुचल देने पर मजबूर होगा।

देखा जाये तो कुल मिलाकर तालिबान सरकार का प्रयास है कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को पूरी तरह खत्म कर दिया, जो इस प्रकार है तालिबान का मानना है कि शिक्षित महिला अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है इसलिए उसे शिक्षित होने से रोका जाये। इसके लिए तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करते ही स्कूल, कॉलेजों में लड़कियों के जाने पर रोक लगाई और उसके बाद नौकरीपेशा महिलाओं को घर बैठने के लिए कहा गया।

फिर टीवी कार्यक्रमों में महिलाओं को दिखाये जाने पर रोक लगा दी गई, महिलाओं के ब्यूटी पार्लर बंद करवा दिये गए, महिलाओं के अकेले कहीं आने-जाने या घूमने पर रोक लगा दी, बच्चियों को बगैर हिजाब के स्कूल जाने पर मनाही कर दी, लड़कियों के खेलों में भाग लेने पर रोक लगा दी, फिर लड़के और लड़कियों को एक साथ शिक्षा हासिल करने पर रोक लगाते हुए तीन दिन कॉलेज लड़कों के लिए और बाकी तीन दिन लड़कियों के लिए खोले जाने का फरमान सुना दिया। इसके बाद तालिबान सरकार ने अपनी आलोचक महिलाओं को बुरा बताते हुए उन्हें घर पर ही रहने की सख्त हिदायत दे डाली। साथ ही  तालिबान ने महिलाओं के कॉफी शॉप में जाने और हमाम को इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी।

जो हालात दिख रहे हैं उसके मुताबिक अफगानिस्तान में महिलाएं इस समय सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं क्योंकि अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का उनको कोई अधिकार नहीं रह गया है। उन्हें क्या पहनना है, कैसे रहना है, कहां जाना है, क्या काम करना है आदि बातें अब खुद तय करने का हक महिलाओं को नहीं है। तालिबान ने महिलाओं के बारे में जितने भी फरमान निकाले हैं यदि उनका पालन नहीं होता तो उनके घर वालों को भी सजा दी जाती है इसीलिए महिलाएं डर और मजबूरी के चलते तालिबानियों के जारी फरमानों को मानने के लिए मजबूर हैं।

हाल ही में एक रिपोर्ट भी सामने आई थी जिसमें बताया गया कि तालिबानी लड़ाके  कपड़ों की दुकानों में जाकर जांचते हैं कि महिलाओं को क्या बेचा जा रहा है। यही नहीं दर्जियों को भी हिदायत दी जाती है कि महिलाओं के कपड़े बड़े होने चाहिए ताकि उनके शरीर का कोई अंग बाहर नहीं दिख सके। ऐसे ही एक घटना से रूबरू कराते हुए बताना चाहती हूँ कि बीबी आयशा नाम की एक अफगानी लड़की की शादी को लेकर काफी विवाद हुआ था और इस विवाद और हिंसा से परेशान होकर ये लड़की भाग गई थी। हालांकि एक तालिबान कमांडर ने उसके भागने पर कड़ा ऐतराज जताया था और उसके कान और नाक को बुरी तरह काट दिया गया था ताकि इसके बाद कोई लड़की भागने की हिम्मत ना करे।

तालिबान शासन सिर्फ महिलाओं पर ही जुल्म नहीं कर रहा बल्कि उसने अफगानी जनता के मानवाधिकारों को भी एक तरह से अपने कब्जे में लेते हुए अफगानिस्तान के मानवाधिकार आयोग को भी खत्म कर दिया। अफगानिस्तान में महिलाएं जो कष्ट झेल रही हैं उनसे सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही बचा सकता है। इस हादसे को लेकर किसी  देश से मदद की उम्मीद करना बेमानी होगा। अफगानिस्तान में महिलाओं से लेकर  आम अफगानियों को भाग्य के भरोसे ही छोड़ दिया गया हैं। बता दें कि अफगानिस्तान में लगभग हर दिन नए नियम की घोषणा की जा रही है। तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जे के बाद से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है।

वर्षों से युद्ध का सामना कर रहा देश आर्थिक रूप से अपने पैर पर खड़ा नहीं हो पाया, हाल के वर्षों में यह देश विदेशी सहायता पर सबसे ज्यादा निर्भर रहा है, लेकिन तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से पश्चिमी देशों ने आर्थिक मदद बंद कर दी। अंतरराष्ट्रीय संगठन सीधे पीड़ित आबादी तक मानवीय सहायता उपलब्ध करा रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अफगानिस्तान में संकट को कवर नहीं कर रही है। इसके साथ ही तालिबान अब देश को पीछे ले जाने वाली नीतियों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है।  पिछले कुछ माह पहले कर्नाटक में हिजाब विवाद उठा था जिसमें तालिबान ने भारत क़े इस मुद्दे पर भारत क़ो महिलाओं का सम्मान देने जैसी बात कही थी लेकिन जो तालिबान सरकार अपने यहां की महिलाओं क़े साथ दुय्यम दर्जे का बर्ताव करता है वह दूसरें देशों को कैसे हिदायत दे सकता है। तालिबान ही नही ऐसे कई मुस्लिम देश हैं जिन्होंने हिजाब विवाद पर भारत क़ो सलाह दी थी लेकिन उनके यहाँ खुद ही महिलाओं की हालत बेहद दयनीय है।

                                                                                                पायल शुक्ला 

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