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Friday, December 5, 2025
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पहलगाम का दोषी इस्लामी कट्टरपंथ!

असल में हिंदू डरें हुए है—हिंदुओ को सालों तक इसी बात में फसाऐं रखा गया की ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, तो हिंदुओ को अचानक इस बात को हजम करने नहीं हो रहा है की उनका पडोसी मुस्लिम मदरसे में काफिरों को काटने की शिक्षा ले रहा है।

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कल जम्मू कश्मीर की पहलगाम घाटी में इस्लामी आतंकियों ने कई सालों बाद पहली बार आम लोगों पर हमला किया। इस हमले से पुरे देश में मातम का माहौल है। 28 लोगों की मौत हो चुकी है, कई घायल है और अभी भी जम्मू में फसें पर्यटकों में चिंता और भय का माहौल है। पुलवामा के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा हमला है। सच कहें तो इस हमले का तरीका देखकर इसे आतंकवाद नहीं सांप्रदायिक नरसंहार कहा जाना चाहिए।

इस हमले का पैटर्न सबसे अलग और सबसे खौफनाक रहा, बैसरन के मैदान पर जब टूरिस्ट कुछ ख़ुशी के पल बिता रहें थे, तब 5 आतंकी जंगल से मैदान में आए और पर्यटकों पर फायरिंग की। लोगों को पकड़कर उनका धर्म पूछा गया, जो हिंदू थे उन पुरुषों को क़त्ल कर दिया गया। किसी का धर्म पता करने के लिए उसके कपडे उतारकर खतना हुआ है या नहीं इस बात की पुष्टी की गई…जब खतना नहीं दिखा तो उसे भी गोलियों से भून दिया गया।

महिलाओं को इस गोलीबारी में जिंदा छोड़कर चुनौती के साथ कहा गया, की “तुम्हें मोदी ने सिर पर चढ़ा रखा है, उसे कहना हमने यह किया। मोदी की वजह से हमारा मजहब खतरे में है।” इस हत्याकांड के बीच एक आदमी की जान बख्शने के लिए उसे कलमा पढ़ने के लिए कहा गया, वो कलमा नहीं पढ़ पाया तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया। 

पति को आतंकियों की गोली से ढेर होता देख महिला ने भी मौत की भीख मांगी, लेकीन यह गोलियों केवल काफिर मर्दों के लिए थी…इसीलिए उसे धक्का मार कर आतंकी आगे बढ़ गया। उसे उसने कहा, जा मोदी से जाकर कह।

इस हमले से एक बात आज तो साबित हो गई थी की आतंकवाद का मजहब होता है…और मरने वाला काफिर होता है। लेकीन हमारे देश में कुछ ऐसी जमातें भी है…जिन्हें मुसलमानों से खास लगाव है। इन लोगों ने मुसलमानों के कुछ कहने से पहले ही उन्हें क्लीनचिट देना शुरू कर दिया। इस्लाम में काफिर और मुश्रिक वाजिब उल क़त्ल है। हम जो मूर्तिपूजक या गैर-मुस्लिम है…हम काफिर है…जो काफिर का क़त्ल करता है वो जन्नत के लिए सवाब भी पाता है। यह सब इस्लामी मान्यताएं है। आज तक किसी भी मुसलमान ने इन मान्यताओ का खंडन नहीं किया है। क्योंकि वो इस बात को सच में मानते है की काफ़िर की डेस्टीनी क़त्ल ही है। 

मुस्लिम प्रेम में अंधी लीब्रण्डुओं की जमात को बुरहान वानी में हेडमास्टर का बेटा और अफजल गुरु में चार्टेड अकाउंटेंट नज़र आता है। ऐसे में जब पगलगाम का यह जिहादी हमला हुआ तो इसका पैटर्न देख इन्हें सांप सूंघ गया था, लेकीन मरने वालों की सूची में जैसे ही Syed Hussain Shah का नाम सामने आया तो इन्होंने सोशल मीडिया पर माहौल बनाना शुरू किया की – अगर धर्म देखकर लोगों को मारा गया तो Syed Hussain Shah को क्यों मारा। sayed hussain shah को क्यों मारा गया, इसका जवाब या तो आतंकी बता सकता है या फिर sayed hussain shah खुद बता सकता है, दुर्भाग्यवश sayed hussain हमारे बीच नहीं है। 

लेकीन हुसैन की मौत से आतंकियों को बेनीफिट ऑफ़ डाउट देने की लीब्रण्डुओं की खुजली देखकर किसी का भी पारा चढ़ सकता है। हुसैन एक शिया था, शायद इसीलिए उसे आतंकिओ ने उसे मारा—सैय्यद  हुसैन चलती फायरिंग के बीच फंस गया-शायद इसीलिए मारा गया। कुछ भी हो सकता है—–लेकीन एक हुसैन की मौत पर धर्म देखकर मारे गए 27 हिंदुओ को, हमले में घायल दर्जनों हिंदुओ को नजअंदाज़ नहीं किया जा सकता। कुछ मुसलमानों ने तो फातिमा शेख की तरह इस सैय्यद हुसैन पर झूठी साहस की कहानियां तक गढ़ना शुरू कर दिया है। 

इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तोयबा के संघटन ने ली है। इसका मास्टरमाइंड सैफुल्लाह कसूरी बताया जा रहा है। लेकीन लीब्रण्डू इस हमले के लिए मोदी सरकार और अमित शाह को टार्गेट कर रहें है। इनमें कांग्रेस के समर्थक बढ़चढ़कर आगे है, जो अमित शाह से इस्तीफा मांग रहें है। 

लीब्रण्डुओं की बुद्धी इतनी भ्र्ष्ट है की उन्हें हमले के लिए जिम्मेदार इस्लामी सोच नहीं दिख रही है, जो जिम्मेदारी लेना चाहती है—लेकीन उन्हें इस हमले के लिए अमित शाह और मोदी सरकार से जवाबदेही चाहिए।

 26/11 का हमला हुआ तब प्रेस के सामने आने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटील 8-8 कपड़ें बदलकर कैमरे के सामने दौड़ रहे थे। महाराष्ट्र के गृहमंत्री बड़े बड़े शहरों में छोटी-छोटी बातें होती रहती है, कह रहे थे। इन दोनों को अपने असंवेदनशील वर्तन के लिए मंत्रिपदो से इस्तीफा देना पड़ा था, लेकीन दूसरी तरफ अमित शाह हमले के दूसरे ही दिन पगलगाम गए, पीड़ितों से मुलाकात भी की, मृतकों को श्रद्धाजंली दी, और सुरक्षादलों को चेतावनी दे आए है। दरम्यान प्रधानमंत्री मोदी रक्षा विभाग की पांच-छह उच्चस्तरीय बैठके ले चुके है। इससे पहले दो बार मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर डिरेक्ट हमले कर अपनी क्षमता सिद्ध की है के वो बदला लेने के लिए सक्षम है।

लेकीन लीब्रण्डुओं को—– खासकर उबाठा गुट के संजय राऊत को अमित शाह का इस्तीफा चाहिए, शायद उन्हें ऐसा लग रहा हो की अमित शाह के इस्तीफे के बाद उद्धव ठाकरे को देश का गृहमंत्री बनाया जाए—और वो पाकिस्तान पर फेसबुक लाइव के जरिए दो-चार टोंटस फेंक कर मारें तो बदला पूरा हो जाएगा। इस गुट का इतना पतन हो चूका है की यह कभी हिंदुत्व विचारधारा से जुड़ा था, इस पर विश्वास ही नहीं होगा। 

सोशल मीडिया पर लीब्रण्डुओं का एक गुट ऐसा है जो इस हमले के बारें में कह रहा है की यह पुलवामा की तरह ही मोदी सरकार ने करवाया यह एक हमला है। यानि जो पुलवामा का हमला लष्कर ए तोयबा ने करवाया उसे सीधा देश की सरकार से जोड़ दिया, और इसी से पगलगाम के हमले को भी देश की सरकार से जोड़ दिया।  यानी इन्हें  मुस्लिम आतंकियों के प्रति इतना प्रेम है की उन्हें क्लीन चीट देने के लिए यह अपने देशपर उंगली उठाने को भी तैयार है। पुलवामा से जुड़े 15 आरोपी आज भी जेल में बंद है, लेकीन पुलवामा का हमला किसीने किया यह पूछकर यह लेफ्टस्ट मुसलमानों के गुनाहों पर पर्दा डालने की नाकाम कोशिश करते है। 

हम इस वीडिओ में लगातार मुसलमानों द्वारा किया हमला इसीलिए कह रहें है, क्योंकि धर्म देखकर हिंदुओ को मौत के घाट उतारा गया यही सच है। जैसे पश्चिम बंगाल में हिंदुओ की दुकानों-घरो को निशाना बनाया गया। जैसे नागपुर में हिंदुओ पर पत्थरबाजी हुई, हिंदुओ की गाड़ियां चुनचुनकर जलाई गई, वैसे ही यहां भी मुस्लिम आतंकियों ने धर्म देखकर अपने पीड़ितों को चुना। एक सय्यद हुसैन के मरने से मुंबई हमले के झूठे 13 वे बमलास्ट की तरह बेनीफिट ऑफ डाउट देने की कोई जरूरत नहीं है। 

हिंदू सर्वधर्म समभाव, सेकुलरिज्म की बीमारी से ग्रसित है इसीलिए वो सरकार पर उंगली उठा रहें है, या फिर उनका सैकुलरिज्म ही कीड़ा है जो इस इस्लामी जिहादी हमले के लिए मुसलमानों को जवाबदेही से बचा रहा है, ऐसा सोचना कोरी बकवास है। असल में हिंदू डरें हुए है—हिंदुओ को सालों तक इसी बात में फसाऐं रखा गया की ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, तो हिंदुओ को अचानक इस बात को हजम करने नहीं हो रहा है की उनका पडोसी मुस्लिम मदरसे में काफिरों को काटने की शिक्षा ले रहा है। उन्हें इस बात को सोचने से डर लगता है की कई इस्लामी संघटन भारत में रहकर गज़वा-ए-हिंद की कोशिश कर रहें है। हिंदू इस बात को सोचने से डरते है की कल को उनके मोहल्ले का पडोसी मुसलमान किसी दिन इस्लामी भीड़ के साथ उनका घर जलाने पहुंच सकता है। बस इसीलिए आज बड़ी संख्या में हिंदू समाज अपनी आँखे मूंदकर बैठा है—या कहें वो इन बातों को डिनाई करता है मुसलमान बहुसंख्य होते ही भारत के इस्लामीकरण की शुरुवात होगी। 

लेकीन दूसरी तरफ मुस्लमान इस बात को समझ चूका है की जनसंख्या में उनका हिस्सा 25 प्रतिशत हो चूका है, अब वो सरकार को चुनौती देता है, सड़क पर उतरता है, बेख़ौफ़ हिंदुओ की गाड़ियां जलाता है, और ऐसे हमलों की खबरों पर जवाबदेही तो छोडो उलटे लाफिंग इमोजी डालता है। मुसलमान कभी अपने साथी मुस्लमान को दोषी नहीं मानता—क्योकि उसे पक्का यकीन है की उनके आतंकी उनके भविष्य के लिए मंच तैयार कर रहें है। लेकीन दुर्भाग्य की बात है की जिस सरकार को हिंदुओ ने चुनकर दिया उसे हिंदू ही कटघरे में खड़े करने पर तुले है। 

जिन हिंदुओ की इस इस्लामी हमलें में जानें गई—उनके लिए संवेदना व्यक्त करता हूं, उनके परिजनों के दुःख में शामिल हूं। जो घायल है उनके शीघ्र ही स्वस्थ होने की कामना करता हूं। नमस्कार।

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