प्रशांत कारुलकर
पाकिस्तान के हालिया चुनावों में स्पष्ट विजेता न बन पाने के कारण देश संभावित अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। सेना समर्थित पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी को बहुमत नहीं मिला, जिसके चलते सत्ता बनाने के लिए अन्य दलों के साथ गठबंधन करना आवश्यक हो गया है। यह स्थिति पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि सेना का प्रभाव सरकार बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उल्लेखनीय है कि इमरान खान से जुड़े निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली है, जबकि स्थापित पार्टियों जैसे पीएमएल-एन और पीपीपी का प्रदर्शन अपेक्षा से कमजोर रहा है। इसका संकेत है कि जनता किसी खास पार्टी से अधिक स्थानीय नेताओं पर भरोसा कर रही है। हालांकि, निर्दलीय उम्मीदवारों में एकजुटता का अभाव हो सकता है, जिससे सरकार बनाने में परेशानी आ सकती है। साथ ही, क्षेत्रीय पार्टियों जैसे मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) का उभरना भी देश की राजनीति को जटिल बना सकता है।
फिलहाल, सरकार गठन की बातचीत चल रही है। पीटीआई पार्टी अन्य दलों के साथ सरकार बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। यह अनिश्चितता आर्थिक विकास और सामाजिक सुधारों को अवरुद्ध कर सकती है। पाकिस्तान के भविष्य के लिए यह जरूरी है कि राजनीतिक दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करें और देशहित को सर्वोपरि रखते हुए शीघ्र ही स्थायी सरकार बनाएं। तभी पाकिस्तान राजनीतिक स्थिरता और विकास की राह पर आगे बढ़ सकता है।
पाकिस्तान के हालिया आम चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं होने के कारण, सत्ता हासिल करने के लिए सेना समर्थित पार्टी को गठबंधन बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस घटनाक्रम के भारत पर व्यापक आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा प्रभाव पड़ने की संभावना है।
आर्थिक प्रभाव:
अस्थिरता और अनिश्चितता: गठबंधन सरकारें अक्सर अस्थिर होती हैं, जिससे आर्थिक नीतियों में निरंतरता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इससे भारत-पाकिस्तान व्यापार बाधित हो सकता है और भारतीय निवेश प्रभावित हो सकता है।
सीमा पार व्यापार: एक स्थिर पाकिस्तानी सरकार द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दे सकती है, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा। हालांकि, गठबंधन सरकार व्यापार सुगम बनाने के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटाने में सक्षम नहीं हो सकती है।
क्षेत्रीय सहयोग: अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया जैसे पड़ोसी देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग परियोजनाएं पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित हो सकती हैं। यह भारत के लिए अपनी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने की योजनाओं को बाधित कर सकता है।
राजनीतिक प्रभाव:
सुरक्षा चिंताएं: भारत को इस बात की चिंता है कि एक अस्थिर पाकिस्तान आतंकवाद और उग्रवाद का केंद्र बन सकता है। गठबंधन सरकार आतंकवाद विरोधी कार्रवाई करने में कम प्रभावी हो सकती है।
कश्मीर मुद्दा: कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच गतिरोध बना हुआ है। एक कमजोर पाकिस्तानी सरकार वार्ता को आगे बढ़ाने में अनिच्छुक हो सकती है।
क्षेत्रीय संतुलन: पाकिस्तान में सेना का प्रभाव पारंपरिक रूप से मजबूत रहा है। एक सेना समर्थित सरकार क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण को बदल सकती है, जिससे भारत को अपनी रक्षा रणनीति को मजबूत करने की आवश्यकता हो सकती है।
अफगानिस्तान और मध्य एशिया जैसे पड़ोसी देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षीय मंचों का उपयोग भारत को करना होगा। पाकिस्तान की ओर से किसी भी सुरक्षा चुनौती का सामना करने के लिए भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत करना होगा। और पाकिस्तानपर कड़ी नजर रखनी होगी।
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