राहुल गांधी का “बहरुपियापन” कितना कांग्रेस के लिए होगा फायदेमंद?     

राहुल गांधी का “बहरुपियापन” कितना कांग्रेस के लिए होगा फायदेमंद?      

कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक ही है,लेकिन उनके अनेक चेहरे है। राहुल गांधी वोट के लिए बहरूपिया की तरह रूप बदलकर घूमते फिरते रहते हैं। राहुल गांधी शनिवार को हरियाणा के सोनीपत जिले में किसानों के साथ धान की रोपाई करते हुए देखे गए। इतना ही नहीं उन्होंने ट्रैक्टर भी चलाए। सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी आगे भी इसी तरह से जनता के बीच जाते रहेंगे। क्या सच में राहुल गांधी भारत को जानते हैं। जिस आरएसएस और बीजेपी के हिंदुत्व पर सवाल खड़ा करते हैं। उसी हिन्दूत्व के सहारे अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं।

जिस भारत की संस्कृति के संरक्षण की बात बीजेपी और आरएसएस करता है, उस पर राहुल गांधी सवाल खड़ा करते हैं। जबकि खुद को राहुल गांधी हिन्दू मानते है, खुद को भगवान शिव का पुजारी बताते हैं। इतना ही नहीं 2017 में उन्होंने खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण बताया था, इसके बाद ट्रक ड्राइवर, मैकेनिक न जाने क्या क्या राहुल बनकर अपनी छवि बनाने की कोशिश की है। यह सवाल इसलिए उठाया गया है कि उनके जितने भी चेहरे सामने आये हैं, वे 2014 के बाद ही देखने को मिले हैं। इससे पहले कोई भी कांग्रेसी नेता इस तरह से बहरूपिया नहीं बना।

दरअसल, भारत का बंटवारा ही हिन्दू मुस्लिम के नाम पर हुआ। लेकिन,भारत की मूल संस्कृति को कांग्रेस ने ही बदलने की शुरुआत की। भारत की मूल संस्कृति सभी धर्म समुदाय को अपने में समाहित करने की रही है। मगर कांग्रेस ने इस पर हमला कर भारतीयता को खत्म करने का  हमेशा प्रयास किया। वसुधैव कुटुंबकम सनातन धर्म का मूल मंत्र है। जिसका अर्थ ही है “धरती ही परिवार है ” इसके संबंध में हमारे कई ग्रंथों में उल्लेख है। बावजूद इसके इस मूल मंत्र को बदलने की कोशिश हुई। यह कांग्रेस भले स्वीकार न करे, लेकिन सच्चाई यही है। इसके बारे में हम अंतिम समय में बात करेंगे। अभी राहुल गांधी पर बात करते हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जिस तरह से कांग्रेस पूरी तरह साफ़ हुई। उसका कारण दोहरा चरित्र है। जब 2014 में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई थी तो, उस समय कांग्रेस ने एक कमेटी बनाई थी,जिसकी रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि हिन्दू जन मानस की अनदेखी के कारण ही कांग्रेस रसातल में मिल गई। इस कमेटी की अगुवाई एके एंटनी ने की थी। इसके बाद से कांग्रेस ने हिंदुत्व की राह पकड़ी,तो मीडिया ने उसे “सॉफ्ट हिंदुत्व” का नाम दिया। जबकि, बीजेपी आज भी अपने मूल एजेंडे से भटकी नहीं है। हिंदुत्व की कोई परिभाषा नहीं गढ़ी, वह केवल हिन्दुओं के अधिकार की बात करती है। जिसे मीडिया ने हार्ड हिंदुत्व का नाम दिया और फिर लड़ाई सॉफ्ट और हार्ड की हो गई। जयपुर में राहुल गांधी ने अपने हिसाब से हिंदुत्व की परिभाषा दे डाली।

सबसे बड़ी बात यह है कि हर धर्मो में हिन्दू धर्म ही लचीला है, जिसको जो चाहे जैसे जी सकता है। उसके लिए कोई प्रतिबंध नहीं है। यही वजह रही है कि हिन्दू धर्म में कई रीति रिवाज देश समाज अपने अपने हिसाब से मनाते हैं। कांग्रेस ने इसे बदलने की कोशिश की। जिसका परिणाम आज उसके सामने है और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी हिन्दू बनने की कोशिश कर रहे है। 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राह्मण बन गए। इस दौरान राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर की भी चौखट पर गए। इस समय कर्नाटक में हुए चुनाव में मंदिर और मठ की चौखट को लांघा। जो उन्होंने कभी नहीं किया था। उसी समय से राहुल गांधी और कांग्रेस पर सवाल उठाने लगे थे, और उसके बाद से राहुल गांधी आरएसएस और बीजेपी पर भारत को तोड़ने और हिंदुत्व की अलग विचारधारा थोपने का आरोप लगाते रहते हैं। 2018 में राहुल गांधी के ऑफिस में इफ्तार पार्टी दी गई। इसके बाद कांग्रेस के नेता खुद को हनुमान भक्त बताते फिर रहें, हनुमान मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं।

कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि जब इस देश के लोग मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़े तो फिर भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने की क्यों कोशिश की गई। भारत के मूल रूप से क्यों छेड़छाड़ की गई। नौ साल में गंगा से इतना पानी बह चुका है कि कांग्रेस आज इसी हिंदुत्व में अपना चेहरा खोजती नजर आ रही है। इसके एक नहीं, नौ साल में गांधी परिवार से लेकर हर कांग्रेसी सनातनी बन गया है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि कांग्रेस से जुड़े नेता हिन्दू धर्म को नहीं मानते हैं है। लेकिन, उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में इसको नहीं दिखाए, मगर,इस मंच खुद को धर्मनिरपेक्ष का बीड़ा उठाये रहे। जो केवल दिखावा और छल है। यह केवल वोट की राजनीति थी और है।

कांग्रेस के इसी दोहरे चरित्र का नमूना प्रियंका गांधी का मंदिर मंदिर जाना और मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी की आरती करना है। गांधी परिवार अब पूरी तरह से दोहरा चरित्र जी रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस हिंदुत्व के साथ दबे कुचलों पर अब राजनीति कर रही है। 65 से 70 सालों तक केंद्र का सुख भोगने वाली कांग्रेस ने  कभी भी इनके बारे में नहीं सोचा। बल्कि कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर अपने लोगों को उपकृत करती रही है। जब राहुल गांधी हरियाणा के सोनीपत में किसानों के बीच जाते हैं तो सवाल यही है कि जिस अन्नदाता की फ़िक्र आज राहुल गांधी कर रहे है। उनके लिए क्या योजना चलाई। क्या कर्ज माफ़ी के अलावा कोई योजना लाई। अब कोंग्रेस शासित राज्य इसलिए जनता से सरोकार से जुड़ रहे हैं कि बीजेपी वहां कब्जा कर लेगी। पीएम मोदी ने किसानों के लिए एक नई कई योजनाएं लाएं। कांग्रेस को बताना चाहिए कि अपने सत्ता काल में अन्नदाता के लिये क्या किया।

जब राहुल ट्रक ड्राइवरों से बातचीत करते हैं तो वही कांग्रेस का दोहरा चरित्र ही नजर आता।लेकिंन, क्या जनता राहुल या कांग्रेस के साथ जायेगी। यह सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है।राहुल का ब्राह्मण बनना, मंदिर मंदिर जाना, ट्रक ड्राइवर के साथ सफर करना, फिर दो पहिया गाड़ी की पेचकस लेकर मरम्मत करना बहरूपियापन है। जिसे जनता अच्छी तरह समझती है। थोड़ी सी बात शुरुआत की राजीव गांधी ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट  के फैसले को बदलने के लिए अध्यादेश लाना। संविधान में इंदिरा गांधी ने बदलाव कर “धर्मनिरपेक्ष” शब्द को डाला।

इतना तक तो सही था, लेकिन मनमोहन सिंह का यह कहना कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। ये वे उदाहरण जो कांग्रेस के दोगलेपन को दर्शाता है। अगर हम भारत के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू की बात करें तो कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष राज्य का  दर्जा देना कहां का सही था। तो सवाल यही उठ रहे हैं कि सॉफ्ट हिंदुत्व को धार देने के बाद, राहुल गांधी ब्राह्मण से मैकेनिक, किसान, पुजारी और मोह्ब्बत की दूकान चलाने वाले के बाद अब क्या बनेंगे ? यह देखना दिलचस्प है कि हिंदुत्व को गाली देने आज आकर वहीं ठहरे हैं, जहां से इनकी राजनीति शुरू हुई थी। नए शब्द देने और नई कहानी गढ़ने की।
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