यूपी और बिहार में रामचरित मानस का विवाद गहराता जा रहा है। मंगलवार को समाजवादी पार्टी के ऑफिस के बाहर लगाए गए एक पोस्टर की खूब चर्चा हो रही है। इस पोस्टर में लिखा गया है कि गर्व से कहो हम शूद्र हैं। ऐसे में कई तरह के सवाल उठने लगे हैं, सवाल पूछा जा रहा है कि क्या एक बार फिर मंडल कमंडल पार्ट 2 की शुरुआत है। क्या बीजेपी के हिन्दू वोटरों को बांटने की कोशिश है। क्या अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य का कद बढ़ाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहे है कि वे मौर्य के बयान से खुश हैं? क्या अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। तो दोस्तों आज इसी मुद्दे पर बात करते हैं।
दरअसल, बिहार के बाद यूपी में जिस तरह से रामचरित मानस का विरोध किया जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह विवाद जानबूझकर खड़ा किया गया है। पहले बिहार के शिक्षा मंत्री ने रामचरित मानस पर विवादित टिप्पणी की थी। उसके बाद यूपी के सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरित मानस के खिलाफ मोर्चा खोला था। जिसके बाद से यह विवाद इतना गहरा गया कि मनुस्मृति की प्रतियां तक जलाई गई। अब इस विरोध के पीछे के राजनीति एजेंडे पर बहस छिड़ गई है।
कहा जा रहा है कि जब से केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार आई है तब से हिन्दू एक छतरी के निचे आये हैं। यही वजह है कि बीजेपी 2014 के बाद से लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही हैं और तुस्टीकरण की राजनीति करने वाले दल हाशिये पर चले गए है। इस बात को सभी दल अच्छी तरह से समझ रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी अब हिन्दू धर्म में आस्था का दिखावा कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने कई मंदिरों में भी गए। इतना ही नहीं उन्होंने गेरुआ वस्त्र भी धारण किये थे।
यानी माना जा रहा है कि अब सभी पार्टियां हिन्दू वोटों पर अपना फोकस करना शुरू कर दिया है। यही वजह कि रामचरित मानस को लेकर बखेड़ा खड़ा किया गया है। एक तरह से हिन्दू वोटों को जाति और सामजिक आधार पर बांटने की कोशिश की जा रही है। बिहार में जाति गणना का ऐलान हो या आरक्षण ख़त्म करने का आरोप हो। इन मुद्दों के उभार इस बात के संकेत है कि विपक्ष मंडल कमंडल 2 की ओर बढ़ रहा है। विपक्ष का मानना है कि हिंदुत्व पर सवार बीजेपी को रोकने के लिए इससे अच्छा और कोई मुद्दा नहीं हो सकता है।
वहीं बीजेपी ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाने और रामचरित मानस को लेकर की गई टिप्पणियों को हिन्दुओं का अपमान बता रही है। जबकि विपक्ष चौपाई में लिखी गई बातों को लेकर पिछड़ों और दलितों के अपमान से जोड़कर राजनीति कर रहा है। बीजेपी का कहना है कि सपा और आरजेडी रामचरित मानस और मनस्मृति की प्रतियां जलाकर हिन्दुओं का अपमान कर रहीं है। कहा जा रहा है कि हिन्दुओं के बीच पिछड़ा बनाम अगड़ा कर दिया गया है। हालांकि अखिलेश यादव बीते साल हुए यूपी विधानसभा में भी यही गेम खेला था। उन्होंने कई पिछड़े तबके के नेताओं को पार्टी में शामिल किया था।
इसके अलावा अखिलेश यादव खुद को पिछड़ा वर्ग का नेता बताते है। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ऐसा करके पिछड़ा वर्ग और दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर भी अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। बावजूद इसके अखिलेश यादव ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एक भी ब्राह्मणों को जगह नहीं दी। बल्कि मौर्य और अन्य नेताओं का प्रमोशन किया है। अखिलेश यादव ने मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव बनाया है। ऐसे में देखना होगा कि सपा की रणनीति बीजेपी के खिलाफ क्या गुल खिलाती है।
वैसे भी समाजवादी पार्टी का उत्थान भगवान राम का अपमान करके ही हुआ है। अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव राम भक्तों पर गोली चलवाकर अपने आप पर गर्व महसूस करते थे।ऐसे में अगर अखिलेश यादव रामचरित मानस का अपमान करने वालों का समर्थन कर रहे हैं तो इसमें कोई नई बात नहीं है। यानी कहा जा सकता है कि सपा के चरित्र में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। आज जिस तरह से मौर्य रामचरित मानस का अपमान कर रहे हैं। उसी तरह आजम खान के साथ कई और मुस्लिम नेता सवाल उठाते आये हैं। इसमें सपा सांसद शरीफ उर रहमान बर्क जब तब हिन्दुओं का अपमान करते रहे हैं।
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