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Thursday, February 13, 2025
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भारत में रोहिंग्याओं को शिक्षा का अधिकार?

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भारतीय सेना, भाजपा की सरकार, रा.स्व. संघ, विश्व हिंदू परिषद, हिंदुत्व विचार को लेकर आगे बढ़ने वाली पत्रिकाएं, चैनल, न्यूज डंका इन सभी ने देश में अवैध रुप से रहने वाले रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को हो सके उतने जल्द भारत से बाहर निकालने को लेकर अभियान छेड़े है। किसी ने शिकायतें की, किसी ने मांग की, किसी ने आंदोलन किए, किसी ने रास्ते पर घूमने वाले अवैध अप्रवासियों को पकड़ पकड़ कर पुलिस को सौंपा…पर अभी भी देश में घुसपैठ कर रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या मजे से जी रहें है-मजे से खा रहें है। ये कोई न्यूज़ डंका, संघ, vhp की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए की देश की सीमाएं सुरक्षीत हो। यह कोई सिर्फ आर्मी की जिम्मेदारी नहीं की घुसपैठों को रोका जाए…उन्हे देश से बाहर फेंका जाए…यह हर एक इंस्टीटूशन, हर एक तपके और हर एक भारतीय कि जिम्मेदारी है कि हमारा देश और देश के संसाधन सिर्फ इसी देश के लिए सीमित हो। लेकीन दिक्कत यही है…यह देश हमारा है…इस देश को चलाने वाली आज की सरकार हमारी है…लेकीन सिस्टम उनका है।

देश की अनेकों एजेंसियां, अनेकों संघटन-संस्थाएं राष्ट्र रक्षा के लिए रोहिंग्याओं को देश में बसाने का विरोध कर रहें है। वहीं दूसरी तरफ़ आज स्वयं सर्वोच्च न्यायलय ने एक पीआईएल पर संज्ञान लेते हुए शरणार्थी शिबिरों में रहने वाले रोहिंग्या निर्वासितों को शिक्षा का अधिकार भी समान रूप से देने की ओर संकेत दिए है। कोर्ट का मानना है की शिक्षा के अधिकार के तहत रोहिंग्याओं सरकारी स्कुलों के तहत मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए। साथ ही न्यायमूर्ति ने याचिकाकर्ताओं से रोहिंग्या परिवारों की सूची, संपत्तियों का विवरण और कुछ सबूत पेश करने को कहा है। इस पर याचिकाकर्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा की सभी रोहिंग्या UNHCR से पंजीकृत हैं,वहीं न्यायधीश महोदय ने कहा, फिर आपके लिए चीजें आसान है, एक पंजीकरण संख्या होनी चाहिए। आपको कॉलोनी के अनुसार सूची देनी होगी। हम देखेंगे कि क्या किया जा सकता है। अर्थात इस फैसले में न्यायाधीश महोदय ने महत्वपूर्ण वाक्य कहा की “शिक्षा के मामले में भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं है, हर बच्चे को प्रवेश मिलेगा लेकिन, हम सबसे पहले यह पता लगाना चाहते हैं कि वे कहां रह रहे हैं…”

इस याचिका को कॉलिन गोंसाल्वेस ने कोर्ट में दायर किया है। सर्वोच्च न्यायलय का अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस असल में ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) का संस्थापक भी हैं। इसी वकील ने इस्कॉन के अक्षय पात्र के खिलाफ अभियान में हिस्सा लिया था। सीएए कानून आने पर जो हिंदुओं को टारगेट कर हमले हुए, उन दंगों का ठीकरा प्रवेश वर्मा, कपिला मिश्रा, अनुराग ठाकुर पर फोड़ने के लिए उनके गिरफ्तारी की याचीका भी इसी कॉलिन गोंसाल्विस ने लगाई गई थी। इसी कॉलिन की ऑर्गनाइजेश को जॉर्ज सोरस की संघटना से पैसे भी मिले है। 

इस बात को हमेशा याद रखिए की ले-देकर भारत में वैध-अवैध किसी भी प्रकार की घुसपैठ करने वालों की बात होगी तो इसके तार जॉर्ज सोरोस से जुड़े मिलेंगे ही। जॉर्ज सोरोस और उसका बेटा दोनों की ग्लोबलाइजेश, रंगीन क्रांति के अराजक समाजवाद की विचारधारा की जड़ें दुनियाभर में फैली हुई है। केवल भारत ही नहीं…बल्की अमेरिका, यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित भी शरणार्थियों के दबाव से ग्रस्त है। और सोरोस ऐसा क्यों करता है इसका कारण देने वाला एक वीडिओ हम जल्द ही लाएंगे। 

हम कोर्ट की टिप्पणी अर्थात “रोहिंग्याओं के शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार पर” के खिलाफ वीडिओ बना रहें है इसीलिए हमें नस्लभेदी, नस्लवादी समझने की भूल न करें… हम उसी हिंदू समाज के बिंदुमात्र है जो “वसुधैव कुटुंबकम” की यात्रा सिखाती है, और हम इसी भावना के साथ जीते भी है। सॉरोस जैसे अराजकवादियों के खोखले ग्लोबलाइजेशन के मुकाबले हमारे ग्लोबलाइजेशन की परिभाषा अधिक व्यापक और सटीक है। हमारी रोहिंग्याओं से शिकायत उनकी विचारधारा को लेकर है… जो भारत की आतंरिक सुरक्षा…भारत के सीमाओं की सुरक्षा और भविष्य को खतरें में डालती है। 

हमारी प्राणप्रिय मातृभूमि का विभाजन जिस विचारधारा के कारण हुआ, उसी विचारधारा की हमारी मातृभूमि में लगातार होती घुसपैठ हमारे देश के संसाधनों पर उनकी दूषित नजरें और इसी विचारधारा की बढ़ती भूक ने भारत के बहुसंख्य समाज को व्यथित किया है…बहुसंख्य समाज का मतलब यहां केवल सनातनी हिंदू समाज समझना गलत है। रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के घुसपैठ से जितना सनातनी हिंदू उखाड़ा हुआ है उतनाही क्रिश्चन पंथ में मानने वाला भी असहज है…जितना जैन पंथी हिंदू को इन घुसपैठ की घटनाओं से चिढ है उतनी ही केशधारी हिंदू को भी है…और इतना ही बौद्ध मत के हिंदू भी गुस्से में है…म्यांमार के बौद्धों ने तो रोहिंग्याओं को पागल कुत्ते की उपमा दी थी…जिसका मतलब आप समझ चुकें होंगे। रोहिंग्या मुसलमानों के विचार कभी नहीं बदलेंगे वो इस देश के लिए, देश के लोकतंत्र के लिए घातक है।

सर्वोच्च न्यायालय जो निर्णय देने जा रहा है उसे इस बात को जरूर समझना होगा की रोहिंग्याओं के बच्चे पढ़ेंगे तो, कॉलेज भी जाना चाहेंगे। उनके माँ-बाप शरणार्थी कैंपो से निकलने की कोशिश भी करेंगे। पढ़े लिखे रोहिंग्या नौकरियां भी मांगने लगेंगे, जहां हमारे युवा भी नौकरी और उद्योगों की कोशिश में लगे हुए है…वहां कॉम्पिटिशन में वो लोग खड़े होंगे जिनका कोई अधिकार नहीं है। जो देश की आत्मा यानि देश के संविधान पर विश्वास ही नहीं करते…जिनका हमारे देश, हमारी व्यवस्था पर कोई अधिकार नहीं है…वो कल इस देश के बच्चों के प्रतिस्पर्धी होंगे। इन रोहिंग्याओं से जाली दस्तावेज भी जब्त किए गए है, वो देशभर में सुरक्षा और फ़िलहाल मजदूरी में स्पर्धा का संकट निर्माण कर चुके है, ऐसे में उनके बच्चों को शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य की सेवा मिलने लगी तो रोहिंग्या और बांग्लादेशी भारत से भागने के बजाए भारत में घुसते चले आएँगे। उन्हें मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार देना प्रोत्साहन देने के सामान है।  

अगर कोर्ट के निर्णय रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के हित में आते रहेंगे तो हमें कोर्ट पर सवाल उठाना होगा की भारत की न्यायव्यवस्था भारतीयो की सुरक्षा और अधिकारों के लिए बनाई गई है या उनकी भलाई के लिए जिनकी न्यायलय में अच्छी पहुंच है?
सर्वोच्च न्यायलय के पास अभी भी समय है की रोहिंग्याओं को शिक्षा-स्वास्थ्य अधिकारों की भीक देने के बजाए केंद्र सरकार के कान खींचकर पूछे की इन्हें देश से कब भगा रहे हो…इनका बोझ देश नहीं सह पा रहा है।

जब तक भारत की सरकार और सिस्टम ठप्पा न लगा दे की…रोहिंग्या-बांग्लादेशी और नेपाल के रस्ते से भारत में घुसे पाकिस्तानी भारत को बर्बाद करने के इरादे से ही भारत में घुसे है.. तब तक भारतीयों को अभियान चलाना होगा। तब तक हिंदुओं को सजगता के साथ संघटीत होकर अपने संसाधनों पर हक़ जताना होगा। क्योंकि यह समाज के गिनेचुने लोगों की और संघटनाओ की जिम्मेदारी नहीं की देश और देश का लोकतंत्र सुरक्षीत रहें।

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