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Saturday, November 23, 2024
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वानखेड़े ने ड्रग्स वालों पर कार्रवाई की,अब भुगतो…

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एनसीबी के जोनल डाइरेक्टर समीर वानखेड़े ने गांजा की तस्करी के मामले में अल्पसंख्यक मंत्री व राकांपा के प्रवक्ता नवाब मलिक के दामाद को गिरफ्तार कर बिल्ली के गले में घंटी बांधी थी। आर्यन खान को ड्रग मामले में गिरफ्तार करते हुए ड्रग माफियाओं का पर्दाफाश किया। साथ ही बड़े लोगों का कॉलर छूने की हिम्मत करने वाले जिगरबाज वानखेड़े को बदनाम करने की इन दिनों खूब साजिश रची जा रही है। मलिक के दामाद को गांजा की तस्करी के आरोप में आठ महीने की जेल हुई थी। महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री रहते हुए मलिक को यह अपमान सहना पड़ा। इस मामले में एक ससुर को दामाद को फटकार लगानी चाहिए थी। लेकिन नहीं, अपने दामाद को जमानत पर छुटने के बाद नवाब मलिक ने खूब आवभगत की।

जब नवाब मलिक समीर वानखेड़े की आलोचना कर रहे थे, तब भ्रम की स्थिति थी कि वे राज्य के कैबिनेट मंत्री या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता, या फिर दामाद के जमानत पर छूटे हुए ससूर बोल रहे हैं, लेकिन नहीं राकांपा अध्यक्ष जब शरद पवार ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में वानखेड़े पर तीखा हमला बोला,तब भ्रम समाप्त हो गया। शरद पवार के मैदान में उतरने के बाद भला शिवसेना कैसे रहेगी पीछे? शिवसेना के बारे में सोचने के दिन गए। पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना किसी का भी समर्थन कर सकती है। शिवसेना सांसद और सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने मलिक का पक्ष लिया। उन्होंने इस मामले में वानखेड़े पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्रीय व्यवस्था का दुरूपयोग किया जा रहा है।

वानखेड़े एक मराठी अधिकारी हैं। उन्हें एक ऐसे अधिकारी के रूप में जाना जाता है, जो किसी के दबाव में नहीं झुकते और न किसी का पक्ष लेते। मलिक के दामाद और आर्यन खान को गिरफ्तार करने के बाद शिवसेना को एक मराठी अधिकारी के पक्ष में खड़ा रहना चाहिए था। लेकिन शिवसेना ने मलिक का पक्ष लेकर वानखेड़े पर तोप चलाई। नशीले पदार्थ, ड्रग जिहाद ने देश में कई युवाओं की जान ले ली है। जहां एक ओर सभी को नशे के खिलाफ एक देश के रूप में खड़े होने की जरूरत है, वहीं नशे के खिलाफ खड़े वानखेड़े को बदनाम करने का काम चल रहा है। वह हिंदू है कि मुसलमान, उनके पिता का नाम उछाला जा रहा है। ओछे शब्दों में नवाब मलिक वानखेड़े को अपमानित कर रहे हैं और उसकी पत्नी, जिसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें भी इन सभी मामलों में घसीटने का प्रयास किया जा रहा है।

ड्रग्स के कारोबार में बड़ा फायदा है। इसलिए इस धंधे के खिलाफ कार्रवाई करने वालों को लगातार खतरे के साये में रहना पड़ा है। एनसीबी बेहद गोपनीय तरीके से काम करती है। आपको मुंबई में उनके कार्यालय के बाहर एक बोर्ड भी नहीं मिलेगा। अत्यंत परिश्रमी और साफ-सुथरे रिकॉर्ड वाले अधिकारियों की यहां नियुक्ति की जाती है। वानखेड़े का ट्रैक रिकॉर्ड वही है। इसी ट्रैक रिकॉर्ड के चलते उन्हें पहले डीआरआई और एनआईए जैसे संवेदनशील विभागों में पोस्टिंग की जा चुकी है। लेकिन अब जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए क्या कोई दूसरा अधिकारी ड्रग्स के धंधे में लिप्त बड़ी मछलियों पर हाथ डालने की कोशिश करेगा क्या?

नवाब मलिक द्वारा उन पर लगाए गए आरोप बकवास है। वानखेड़े के पिता का नाम दाऊद वानखेड़े है, यह एक बेबुनियाद आरोप है। समीर वानखेड़े के पिता ज्ञानदेव वानखेड़े ने खुद दस्तावेजों के साथ नवाब मलिक के झूठे आरोपों को खारिज कर दिया है। परंतु समीर की बदनामी का सुपारी लेने वाले झूठ का पर्दाफाश होने के बाद भी पत्रकार परीषद के जरिए आरोपों की झड़ी लगाने का काम जारी रखा है। पत्रकारों में उनसे सवाल पूछने की हिम्मत नहीं है। कोई कोशिश करता है, उसे प्रबंधन का फोन आता है औऱ नौकरी से मिकालने की धमकी मिलती है। यह एक पत्रकार का अनुभव है, जो लगातार ट्विटर पर मामले पर टिप्पणी करता था। सच बोलने वालों की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है।

आरोप है कि वानखेड़े ने आर्यन खान मामले में 25 करोड़ रुपये का सौदा किया था,लेकिन अगर ये डील हो जाती तो अब तक आर्यन खान बाहर हो चुके होते। इसी तरह का सौदा नवाब मलिक ने अपने दामाद के लिए किया होता और उसे गांजा की तस्करी के लिए आठ महीने जेल में नहीं बिताने पड़ते। लेकिन इन दोनों के खिलाफ कार्रवाई की एक ही वजह है कि समीर वानखेड़े सचिन वाझे नहीं हैं। साम दाम दंड नीति उन्हें खरीद नहीं पाई है, इसलिए उनके खिलाफ दंड और भेदभाव नीति का इस्तेमाल किया जा रहा है। एनसीबी के एक्शन में से प्रभाकर साईल ने किसी को मोबाइल पर 25 करोड़ रुपये के सौदे के बारे में बात करते हुए सुना। साईल को बोलते यह वीडियो एक बार देंखे। वह कितने दबाव में बोल रहा है। नाक बहने वाले एक बच्चे को भी पता चल जाएगा। चार वाक्य सही बोलते समय गला सूखता नहीं है। उसके लिए आपको पानी नहीं पीना पड़ेगा।

अगर किसी के खिलाफ मोबाइल फोन पर बात करने का आरोप और कार्रवाई होती है तो पूरी ठाकरे कैबिनेट जेल जाएगी। अदालत में इस तरह के आरोप नहीं चलते है। अगर नवाब मलिक के पास समीर वानखेड़े के खिलाफ इतने सबूत होते तो वह प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठकर माहौल नहीं बनाते। वह सीधे कोर्ट में जाते और वानखेड़े का वस्त्रहरण कर दिए होते। लेकिन मलिक ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि कोर्ट के कामकाज और प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंतर होता है। नबाब मलिक अपने दामाद का गुस्सा बाहर निकाल रहे हैं। लेकिन यह समझ से परे है कि शिवसेना उसके पीछे क्यों है। कुछ साल पहले राज्य में एमपीएससी घोटाले में कई मराठी अधिकारियों के नाम आने के बाद मामले की जांच कर रहे सुधाकर पुजारे को सामना में जमकर फटकार लगाई गई थी। तेलगी प्रकरण में लिप्त अनेक मराठी पुलिस अधिकारियों पर सामना ने बॅटींग की थी। सामना में वानखेडे के विरोध में लिखे शब्द पढ़ कर इस इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता।

अर्णब गोस्वामी, कंगना रनौत के विरोध में सरकारी यंत्रणा को दुरुपयोग करने का आरोप लगाने पर उच्च न्यायालय ने जिस ठाकरे सरकार को फटकार लगाई थी। अब वानखेडे प्रकरण में केंद्रीय यंत्रणा का दुरुपयोग होने का आरोप कर रहे हैं। यदि केंद्रीय व्यवस्था का दुरूपयोग हो रहा है,तो दम घुटने की क्या जरूरत है? मलिक, राउत और अन्य नेता अदालत की शरण में क्यों नहीं जा रहे हैं? हाल ही में आयकर विभाग ने कुछ बड़े बिल्डरों और नेताओं के रिश्तेदारों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। उस दौरान भी शरद पवार और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने प्रेस कांफ्रेंस कर आयकर विभाग की जमकर खिंचाई की, लेकिन उन्होंने अदालत में अपील नहीं की।

वह इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि अगर वह कोर्ट जाएंगे तो उसका भांडा फूट जाएगा। किसी को भी इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि दमबाजी और दबाव की राजनीति गंदगी को ढक देगी। सेटलमेंट की राजनीति के दिन खत्म हो गए हैं। जिन लोगों ने घोटाला किया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। किसी को भी इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि किसी के पिता के नाम को उछाल व धर्म को आगे ला देने से उन्हें छुटकारा मिल जाएगा। महाराष्ट्र की न्यायप्रिय जनता वानखेड़े के साथ है। वह अकेला है, महाराष्ट्र के शासकों को इस भ्रांति से बाहर आना चाहिए।

(न्यूज डंका के मुख्य संपादक दिनेश कानजी का संपादकीय)

 

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