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Sunday, November 24, 2024
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हरितक्रांति और श्वेतक्रांति के साधक ‘लालबहादुर शास्त्री’

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ये 118वीं जयंती

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भारत की धरती पर अनेक ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया जिन्होंने अपने आचरण कर्तव्य और परिश्रम से ना केवल देश का मान-सम्मान बढ़ाया हैं। बल्कि आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी एक ऐसी मिसाल पेश की है जो हमेशा उनके लिए एक प्रेरणा स्त्रोत रहेगी। ऐसे ही महापुरुष थे लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नए भारत की आजादी में अपना योगदान दिया। लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनका पूरा जीवन इस देश की सेवा में बीता साथ ही शालीनता और ईमानदार नेतृत्व के धनी व्यक्ति लालबहादुर शास्त्री ने देश की सुरक्षा और संप्रभुता से कभी समझौता नहीं किया। उनका यह दृढ़ निश्चय नेतृत्व 1965 के युद्ध में देखना मिला। 1965 के युद्ध में देखने को मिला, जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया तो शांत स्वभाव के शास्त्री ने सेना को माकूल जवाब देने की खुली छूट तक दे डाली और हमेशा की तरह हमारी सेना ने पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह परास्त किया। अनाज के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाने और हरित क्रांति लाने में भी शास्त्री जी का बेहद अहम योगदान है।

जवाहरलाल नेहरू के अचानक निधन होने के बाद कांग्रेस के भीतर उथल पुथल मच गई थी। काफी मंथन के बाद 9 जून 1964 को दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी ने शपथ ली। लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय दिया था। उनका मानना था कि खेत में किसान द्वारा खाद्य उत्पादन का कार्य देश सेवा में सैनिक की आहुति के बराबर है। देश में अनाज के संकट को कम करने के लिए एक तरफ प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दे रहे थे और दूसरी तरफ इस संकट का पक्का हल निकालने के लिए हरित क्रांति जैसी बड़ी योजना पर काम हो रहा था। देश में अकाल की ऐसी हालत में लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों को प्रेरित करने के लिए खुद हल भी चलाया था हालांकि उस समय तक देश में सिंचाई के लिए नहरी नैटवर्क पर काफी काम हो चुका था लेकिन इसके बावजूद हमारे पास ऐसे बीज नहीं थे जिनसे उत्पादन क्षमता बढ़े और देश में खाने लायक अनाज की कमी न हो।

उस समय भारत अमरीका के शीतकालीन गेहूं के बीज का इस्तेमाल कर रहा था और ये बीज हमारी जलवायु में अच्छा परिणाम नहीं देते थे। इस बीच पहले वल्र्ड एग्रीकल्चर प्राइस से सम्मानित भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने उस दौर में गेहूं के बीजों पर काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग से संपर्क किया और उन्हें भारत के लिए अर्ध बोने गेहूं के बीज देने की गुजारिश की। मैक्सिको के कृषि वैज्ञानिकों की टीम 1963 में भारत के दौरे पर आई और उत्तर भारत में परीक्षण के दौरान यह सामने आया कि ये बीज भारतीय जलवायु में भी पहले से भेजी जा रही गेहूं के मुकाबले दो से अढ़ाई गुना का उत्पादन कर रहे थे। ऐसे में अब बीज के आयात पर फैसला राजनीतिक लीडरशिप को लेना था और लाल बहादुर शास्त्री ने मैक्सिको से गेहूं की नई किस्म के बीज को आयात करने का बड़ा फैसला लिया।

वहीं श्वेत क्रांति की बात करें तो भारत के प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने 31 अक्टूबर वर्ष 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गुजरात में आणंद का दौरा किया ताकि अमूल की सफलता को खुद अपनी नजरों से देख सकें। उन्होंने वर्गीज कुरियन से आसपास के किसी दुग्ध उत्पादक गांव में सामान्य नागरिक की तरह रात भर ठहरने का इंतजाम करने का अनुरोध किया। वे चाहते थे कि लोगों को उनके पद के बारे में मालूम न चले। कुरियन सहम से गए।  वे कैसे किसी प्रधानमंत्री को बगैर किसी सुरक्षा या सहयोग तंत्र के रात भर  किसी गांव में ठहरा सकते है, लेकिन प्रधानमंत्री शास्त्री के जोर देने पर बगैर उनकी सुरक्षा जानकारियों का खुलासा किए उन्हें पास के गांव में रात गांव में रात बिताने के लिए छोड़ दिया गया। शास्त्री गांव में टहलते हुए गए और अपना परिचय राह भटके एक यात्री के रूप में दिया। गांव में एक परिवार ने शास्त्री को अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने इस अवसर का लाभ उनसे जिंदगी जीने के तरीके और सहकारिता का  उन पर हुए असर के बारे में बातचीत कर उठाया। अगली सुबह जब कुरियन उन्हें वापस लेने आए तब तक प्रधानमंत्री शास्त्री न केवल सहकारिता की आनंद पद्धति से प्रभावित थे बल्कि पूरे देश में आंदोलन को फैलाने में मदद करने के लिए कुरियन से आणंद में राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड का गठन करने का भी आग्रह किया।  उन्होंने कुरियन को हरसंभव मदद का भी भरोसा दिया।

देश में बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन के लिए 1970 में ऑपरेशन फ्लड शुरू हुआ और दो चरणों में देश के सभी दुग्ध उत्पादक इलाकों को इसमें शामिल कर लिया गया। दूध उत्पादन में विश्व में 50वां स्थान रखनेवाला भारत महज कुछ ही दशकों में सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया। भारत में आजादी के बाद सबसे परिवर्तनकारी सफलतम कहानियों में अमूल की कहानी है। हालांकि इसे बढ़ाने में सबसे बड़ा हाथ शास्त्री का था उन्होंने हर संभव प्रयास किया श्वेत क्रांति में कुरियन को सहायता दी।

भारत की हरित क्रांति और श्वेत क्रांति में लालबहादुर शास्त्री के सहयोग ओ काभी नहीं भुलाया जा सकता है। वे एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें वर्ष 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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