पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश में चुनावी रैली के दौरान कहा था कि कांग्रेस के नेताओं को भारत का विकास दिखाई नहीं देता है। पता नहीं वे कौन विदेशी चश्मा लगा रखे है। लेकिन, ऐसा लगता है कि पीएम मोदी की सबसे बड़ी आलोचक जेएनयू की पूर्व छात्रा शेहला रशीद ने अपना पूर्वाग्रहित वाला चश्मा उतार दिया है, इसलिए मोदी सरकार के कार्य उन्हें दिखाई देने लगा है। शायद वह जेएनयू के चश्में से नहीं देख रही है। कभी कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का रशीद ने विरोध किया था। मगर अब वह कश्मीर के बदले हालात के लिए पीएम मोदी और अमित शाह का धन्यवाद कर रही है। उन्होंने कई बार पीएम मोदी की तारीफ़ भी कर चुकी हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर उनके विचार में इतना बदलाव क्यों आया?
रशीद का यह खुलासा बड़ा अहम है कि सरकार का समर्थन करने पर उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था। अधिकतर सुनने को मिलता रहा है कि मीडिया को सत्ता दल की हमेशा आलोचना करनी चाहिए। आलोचना करनी चाहिए, लेकिन क्या हर बात के लिए करनी चाहिए? क्या इसलिए आलोचना करनी चाहिए कि विपक्ष को वह नेता पसंद नहीं है। ऐसा ही कुछ पीएम मोदी के साथ होता है। अगर सत्ता पक्ष देशहित में कोई निर्णय लेता है तो उसे समर्थन भी करना चाहिए। सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई जनधन योजना की आलोचना की जा सकती है। ऐसा नहीं है कि योजना पूरी तरह से सही ही हो, उसमें खामियां हो सकती हैं ,लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं की पूरी की पूरी योजना ही बेकार है। यह मात्र उदाहरण है।
सवाल यह कि कैसे वामपंथी रशीद को सरकार का समर्थन करने से रोक रहे थे। कश्मीर से धारा 370 को मोदी सरकार ने हटाया और अब वहां सेना के जवानों पर पत्थर नहीं फेंके जाते थे। अब सवाल यह कि क्या कश्मीर में सेना के जवानों पर जो पत्थर फेंके जा रहे थे क्या वे सही थे। इस बात का उत्तर शेहला रशीद ने भी दिया है। जब उनसे पूछा गया था कि क्या कश्मीर में जवानों पर पत्थर फेंकने वाले लोगों के प्रति उनका नरम रुख था। इस पर उन्होंने कहा कि हां, मै 2010 में ऐसा करती थी। यह सोचने वाली बात है कि शेहला रशीद जैसे कितने लोग इस देश में हैं या रहें होंगे जो कश्मीर में जवानों पर फेंके जाने का समर्थन कर रहे थे। और केंद्र की सत्ता में बैठी कांग्रेस पार्टी ने इस संबंध में कुछ नहीं किया।
70 सालों से इस देश को ऐसे लोग चला रहे थे, जो देश की प्रगति देखना नहीं चाहते थे, ये सरकारें जनता के हित में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया। लेकिन कश्मीर और मुस्लिम समुदाय पर राजनीति होती रही और देश रसातल में मिलता रहा। देश टुकड़ों में बटता रहा। कहा जा सकता है कि भारत जनभावनाओं के बारूद पर बैठा था। जब यह फूटता तो, इस देश का क्या होता? यह सोचने वाली बात है। कश्मीर को मिले विशेषाधिकार के कारण यहां के नेता केवल पाकिस्तान से बातचीत की बात करते रहे। और भारत के खजाने से मलाई खाते रहे। लेकिन आतंकवाद को खत्म करने के लिए कभी भी कदम नहीं उठाये। यह सोचने वाली बात है। आज जब रशीद यह कहती है कि कश्मीर गाजा नहीं है. तो देश के उन नेताओं को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है जो कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का विरोध कर रहे थे और हैं। उस समय कश्मीर केवल अशांत रहा था, यहां की जनता को गुमराह किया जाता था और वे आतंकी गतिविधियों में किसी न किसी तरह से शामिल रहते थे। लेकिन आज ऐसे हालात नहीं है। आज कश्मीर किसी बंधन में नहीं है, आज कश्मीर से आतंक का नामोनिशान मिट रहा है, वह अपनी नई पहचान के साथ उभर रहा है। इसी साल यहां जी 20 शिखर सम्मेलन भी हुआ। कश्मीर में जैसी पहले आतंकी घटनाएं होती थी, अब वैसी घटनाएं नहीं होती है।
रशीद ने यह भी कहा है कि कोरोना काल में मोदी सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन का उन्होंने समर्थन किया था, तब उन्हें चुप करा दिया गया था और कहा गया कि आप सरकार के फैसले का समर्थन क्यों कर रही हैं ? रशीद का यह कहना, बड़ा सवाल खड़ा करता है ? जिस देश में करोड़ों लोगों की जान बचाने के लिए सरकार हर रोज कोई न कोई फैसला लेती देखी गई । उस दौरान वामपंथी और लिबरल सरकार के फैसले का समर्थन करने वालों को चुप करा रहे थे। वे लोग,वह दल, कैसे मानवीय हो सकता है। वामपंथी खुद को गरीबों के लिए काम करने दावा करते हैं. क्या रशीद को चुप कराना सही थी। क्या वामपंथी सही मायने में देशहित में काम करते हैं ? यह बड़ा सवाल है।
शेहला रशीद ने फिर की PM मोदी की प्रशंसा, कहा “कश्मीर गाजा नहीं ”
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