शिवसेना से अलग होने वाले विधायकों को उद्धव की सेना गद्दार करती है। उन विधायकों पर उद्धव ठाकरे ने पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाते रहे हैं। इतना ही नहीं, बागी विधायकों को पेड़ के झाड़ पत्ते तक कहा गया। बड़ी अजीब बात है. कहा जाता है कि जिसके घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंकते। लेकिन यहां तो जिसके घर शीशे के हैं वे ही पत्थर फेकने का काम कर रहे हैं। आदित्य ठाकरे भी अपने भाषणों में बागी विधायकों को गद्दार कहते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र बुधवार से शुरू हुआ तो विधानसभा के परिसर में विपक्ष के नेताओं ने शिवसेना के बागी विधायकों के खिलाफ नारे लगाए। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन गद्दार है और कौन नहीं है ?। इस दौरान अजित पवार, धनंजय मुंडे आदि नेता नारे लगा रहे थे।
बहरहाल, एनसीपी नेता अजित पवार से पूछा जाना चाहिए कि गद्दार कौन है ? क्या वे गद्दार नहीं हैं ? क्या शिवसेना से टूटकर एकनाथ शिंदे के साथ गए वे विधायक गद्दार हैं? क्या अपनी तकलीफ कहना गद्दारी है ? यह सवाल उद्धव ठाकरे की शिवसेना से भी पूछा जाना चाहिए, उद्धव ठाकरे से भी पूछा जाना चाहिए क्या वे गद्दार नहीं हैं ? अगर 2019 में ही बीजेपी के साथ सरकार बनाये होते तो शायद उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता। पर उद्धव ठाकरे को सत्ता की भूख थी जो संजय राउत से होते हुए शरद पवार के सामने घुटने टेक दिए।
उद्धव ठाकरे को उन सवालों के जवाब देने चाहिए जिसको हाल ही में सीएम एकनाथ शिंदे ने दावे के साथ कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद देने की कभी भी बात नहीं की थी। सीएम शिंदे ने उद्धव ठाकरे के उस दावे की हवा निकाल दी ,जिसमें वे कहते रहे हैं कि बीजेपी के नेताओं ने शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने की बात कही थी। सीएम शिंदे ने कहा कि जब मैंने इस संदर्भ में पीएम मोदी और अमित शाह से बात की तो उन्होंने कहा कि जब आपको और नीतीश कुमार को कम सीट के बावजूद सीएम बीजेपी बना सकती है तो वादा कर शिवसेना को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना सकती थी। तो गद्दार कौन हुआ यह उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे को बताना चाहिए ? साथ ही भी बताना चाहिए कि कौन झूठ बोल रहा है?
विधानसभा के परिसर में कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बचे विधायकों ने नारेबाजी। इस दौरान विपक्ष के नेताओं ने आले रे आले,गद्दार आले, 50 खोके, बाकी सब ओके नारे लगाए। इसकी खूब चर्चा हो रही है। अजित पवार मुस्कराते नजर आ रहे है। विपक्ष के नेता अजित पवार को बताना चाहिए कि उनकी ऐसी क्या मज़बूरी थी 2019 में बीजेपी के साथ भोर में उपमुख्यमंत्री की शपथ ली थी। एक ऐसा समय आ गया था जब एनसीपी बगावत के मुहाने पर खड़ी थी, भले आज अजित पवार और शरद पवार इस बात से इंकार करें, लेकिन हकीकत यही थी. एक खेमा अजित पवार का दूसरा शरद पवार का बना तय था.
यही वजह थी कि शरद पवार एनसीपी को बचाने के लिए शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए सक्रिय हुए थे। इसीलिए शिवसेना में आज जो बगावत हुई है उसके लिए केवल हम संजय राउत और उद्धव ठाकरे को ही दोषी नहीं ठहरा सकते। एनसीपी के मुखिया शरद पवार उतने ही दोषी है जितने संजय राउत और उद्धव ठाकरे। लेकिन, जब शिवसेना के विधायक महाराष्ट्र छोड़कर एकनाथ शिंदे के साथ गुवाहाटी चले तो शरद पवार ने कहा था कि शिवसेना का यह आंतरिक मामला है। वाह क्या बात है, जब 2019 में शिवसेना बीजेपी से अलग हुई तो सरकार बनाने के लिए मीटिंग पर मिंटिग कर रहे थे, लेकिन शिवसेना के विधायकों के बागी होने पर शरद पवार इससे कन्नी काट गए थे। तब शिवसेना को बचाने के लिए ऐसी कोई बात नहीं कही, जिससे शिवसेना एकजुट हो सके है।
लेकिन, जब अजित पवार बीजेपी के साथ जाकर उपमुख्यमंत्री बन गए तो उस समय शरद पवार ने अपने भतीजे को मनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। अजित पवार को मनाने के लिए सुप्रिया सुले तक ने गुहार लगाई थी। अजित पवार उस समय लगभग 72 घंटे उपमुख्यमंत्री रहे. महाराष्ट्र की राजनीति का वह नया राजनीतिकरण था जो 2022 में फलीभूत हुआ। ऐसे में अजित पवार को बताना चाहिए कि उनकी 2019 में ऐसी क्या मज़बूरी थी कि वह अकेले जाकर उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली। जबकि, शिवसेना के बागी विधायकों ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना से अलग होने पर अपनी बात भी रखी थी कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कदम उठाया, उनकी क्या मज़बूरी थी। किसे सत्ता की भूख थी ? अजित पवार को या बागी शिवसेना के विधायकों जो डेढ़ माह बाद मंत्री बने हैं ? लेकिन, अजित पवार ने इस बारे में कोई कारण आज तक नहीं बता पाए। तो ऐसे में गद्दार कौन हैं, शिवसेना के बागी विधायक या खुद अजित पवार ?
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