रविवार को महाराष्ट्र के साथ पूरे देश में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती बड़े ही उत्साह से मनाई गई। भारत के लिए सबसे गर्व वाली बात यह है कि इजराइल में भी शिवाजी महाराज की जयंती मनाई गई। जो एक यहूदी देश है। लेकिन, सबसे बुरी खबर यह है कि जेएनयू में शिवाजी महाराज की जयंती मनाने पर वामपंथी छात्रों ने जमकर हंगामा किया। इतना ही नहीं, खबर यह भी है कि जेएनयू में दो गुट के छात्रों जमकर मारपीट हुई। लेकिन इस मामले महाराष्ट्र के नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं।
आखिर इतनी बड़ी घटना पर एनसीपी और उद्धव गुट के नेता क्यों चुप्पी साध लिया है। उन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या यह शिवाजी महाराज का अपमान नहीं है ? एक समय था कि शिवाजी महाराज के अपमान के नाम पर महाराष्ट्र के पूर्व राज़्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को लेकर महामोर्चा निकाला गया। इस मामले को एनसीपी,उद्धव गुट और कांग्रेस ने लगभग दो से तीन महीने तक राजनीति की. लेकिन जब जेएनयू में वाम छात्रों ने शिवाजी महाराज की जयंती उनकी तस्वीर को फेंक दिया था। तो इन नेताओं ने इसका विरोध नहीं किया और नहीं कुछ बोले। ऐसे में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा क्यों? आखिर इन नेताओं की चुप्पी की क्या वजह हो सकती है ?
गौरतलब है कि रविवार को देशभर में शिवाजी महाराज की जयंती मनाई गई। लेकिन जब एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने जेएनयू में शिवाजी महाराज की जयंती मना रहे थे। तो वाम विचार के छात्रों ने इसका विरोध किया। इतना ही नहीं टेबल पर रखी शिवाजी महाराज की तस्वीर को उठाकर फेंक दिया गया। जब इसका एबीवीपी के छात्रों ने विरोध किया तो उनसे मारपीट की गई। बता दें कि जेएनयू में कुछ गुट के छात्रों पर हमेशा भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगता रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवाजी महाराज की जयंती मनाना गलत है। आखिर वाम गुट के छात्रों ने शिवाजी महाराज का विरोध क्यों किया।
वैसे वर्तमान में महाराष्ट्र में उथल पुथल मची हुई है। राजनीति उथल पुथल से राज्य में हंगामा मचा हुआ है। इस घटना पर न उद्धव ठाकरे और न ही संजय राउत ने कोई बयान दिया। इससे यह सवाल उठ रहे है कि क्या उन्होंने इस घटना को सही माना है। क्या उद्धव ठाकरे और संजय राउत इस घटना का मौन समर्थन किया है। जबकि संजय राउत हर छोटी छोटी बात पर अपना बयान देते हैं। मगर जेएनयू पर अपनी राय नहीं रखी है।
अभी पिछले माह ही महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने मोर्चा निकाला था। यह मोर्चा जनता को यह बता कर निकाला गया था कि बीजेपी नेताओं द्वारा महाराष्ट्र के महापुरुषों का अपमान किया जा रहा है। उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी कर रहे हैं। पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा एक बयान को उद्धव गुट ,एनसीपी और कांग्रेस ने विवादित टिप्पणी बताते हुए उनका इस्तीफा तक मांग लिया था।
हालांकि, पूर्व राज्यपाल कोश्यारी ने कहा था कि अगर मेरी बातों से किसी को ठेंस पहुंची है तो मै माफ़ी मांगता हूं। बावजूद इसके माविया के नेताओं ने उनके खिलाफ धरना प्रदर्शन करते रहे है। बाद में विवाद बढ़ने के बाद भगत सिंह कोश्यारी ने अपना इस्तीफा दे दिया था ,और उनकी जगह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने कार्यभार संभाल लिया है। पिछले साल 17 दिसंबर को विपक्ष ने यह मोर्चा निकाला था। हालांकि, बीजेपी ने इसे फ्लॉप शो बताया था।
ऐसे में इन नेताओं के कथनी और करनी में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि कोश्यारी के बयान पर शरद पवार ने कहा था कि महाराष्ट्र के महापुरुषों के अपमान से जनता नाराज है। बता दें कि शिवाजी महाराज के अपमान का मामला जिक्र जिस कार्यक्रम में हुआ था। उसमें शरद पवार और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी शामिल हुए थे। जहां राज्य के पूर्व गवर्नर ने कहा था कि जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो हम लोगों से टीचर पूछते थे कि आप का फेवरेट हीरो कौन है। तो उस समय हर कोई अपनी पसंद के अनुसार अपने हीरो का नाम बताता। कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, कोई जवाहर लाल नेहरू आदि का नाम लेते थे।
लेकिन आज जब आप से कोई यह पूछता है कि आप का फेवरेट हीरो कौन है तो आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है। बल्कि महाराष्ट्र में ही मिल जाएंगे, शिवजी तो पुराने युग के हैं। मै नए युग की बात कर रहा हूं, डाक्टर आम्बेडकर से लेकर डाक्टर नितिन गडकरी तक यहीं मिल जाएंगे। इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति महापुरुषों के इर्दगिर्द घूमने लगी थी। नलेकन आज इन्ही नेताओं को जब जेएनयू शिवाजी महाराज की जयंती पर उनका अपमान होता है तो उनके मुंह में दही जम जाती है।
वैसे जेएनयू का इतिहास रहा है देश से जुडी बातों को कहना यह अपराध है। यहां देश विरोधी नारे लगते है। और वही नेताबंकर भारत जोड़ो यात्रा है। जेएनयू के पूर्व छात्र कन्हैया कुमार पर देश विरोधी नारे लगाने और उसका समर्थन करने का आरोप लग चुका है। कन्हैया हाल ही में कांग्रेस द्वारा निकाली गई भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुआ था। अभी हाल में बीबीसी डाक्यूमेंट्री को भीं लेकर जेएनयू में भी हंगामा हो चुका है। वाम गुट के छात्र इस डाक्यूमेंट्री को जबरन देखने का ऐलान किया था। जिसको लेकर जमकर हंगामा हुआ था।
बहरहाल, उम्मीद है कि संजय राउत, उद्धव ठाकरे इस घटना पर अपनी आपत्ति जताएंगे और कुछ बोलेंगे। बहरहाल, कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति के आंखों पर स्वार्थ की परत जम जाती है तो उसे अच्छाई में भी बुराई नजर आती है। ऐसे में सवाल है कि अभी संजय राउत और अन्य नेताओं को राजनीति करने से समय मिले तो न देशहित कुछ करेंगे, कुछ बोलेंगे।
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