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क्या KCR कांग्रेस के आगे घुटना टेके?

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अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे,यह कहावत बड़ी प्रचलित है। ऐसा ही अब केसीआर यानी तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव के बारे में भी कहा जा सकता है। वैसे केसीआर पर ही यह कहावत फिट नहीं बैठती है बल्कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी पर भी यह कहावत एकदम सटीक लगती है। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों ? तो यह डर ईडी की वजह से पैदा हुआ है।

डर इसलिए भी कहा जा सकता है कि विपक्ष ईडी, सीबीआई को डराने धमकाने वाली एजेंसी बताता रहा है। अब सोचने और मंथन करने वाली बात यह है कि जब कोई नेता घोटाला किया ही नहीं, कोई रिश्वत लिया ही  ही नहीं तो फिर डर किस बात की। विपक्ष को क्यों डरना चाहिए। एक और कहावत है साच को आंच नहीं। लेकिन जिस तरह से विपक्ष के नेता जांच एजेंसियों पर आरोप लगाते उससे उन पर ही सवाल खड़ा होता है।

अब मुद्दे की बात करते हैं। दरअसल, केसीआर की बेटी के कविता दिल्ली में धरना दे रही है। यह धरना महिला आरक्षण बिल को संसद में रखने की मांग को लेकर किया जा रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि महिला आरक्षण की आड़ में यह शक्ति प्रदर्शन है। कविता दिल्ली शराब घोटाले में आरोपी है और उन्हें 11 मार्च को पूछताछ के लिए बुलाया गया है। इसे पहले कविता का यह धरना राजनीति स्टंट माना जा रहा है।

इतना ही नहीं, कविता पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक रही है। सीबीआई और ईडी समन भी भेज चुकी है और पूछताछ का सामना भी कर रही है। माना जा रहा है कि कविता जंतर मंतर पर शक्ति प्रदर्शन कर गिरफ्तारी से बचने की जुगत लगा रही है। बताया जा रहा है कि भारत राष्ट्र समिति के 5000 कार्यकर्ता इस धरना में शामिल हुए। इस मेगाशो के अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने सोनिया गांधी की तारीफ़ करते हुए उनसे बिल को लेकर समर्थन मांगा है। इतना ही नहीं धरना प्रदर्शन में कांग्रेस के शामिल होने की अपील की है।

बताया जा रहा है कि कुछ सालों में यह पहला मौक़ा है जब केसीआर की पार्टी ने कांग्रेस से सम्पर्क किया है और समर्थन मांगा है। इससे पहले केसीआर लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन, माना जा रहा है कि दिल्ली शराब घोटाले में उनकी बेटी के फंसने से उनका तेवर ढीला पड़ गया है और उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति विपक्षी नेताओं को एकजुटता दिखाने की कोशिश की है।

बताया जा रहा है कि कविता के इस धरना को 13 दलों ने समर्थन दिया।  हालांकि,  कांग्रेस ने इस धरने का समर्थन नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस भारत राष्ट्र समिति पार्टी को अपना समर्थन देगी। क्या कांग्रेस को लगाता है कि वह अगर केसीआर की पार्टी को समर्थन किया तो उसका कुनबा बढ़ेगा या लोकसभा चुनाव में उसकी राह आसान होगी ? अब कांग्रेस को तय करना है कि उसे केसीआर की पार्टी को समर्थन देना चाहिए या नहीं। हालांकि जो 13 दलों ने कविता के धरना को समर्थन दिया है उसमें, आप, जेडीयू , आरजेडी, शिवसेना, नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ़्ती की पार्टी, टीएमसी और अकाली दल,एनसीपी सीपीएम के साथ अन्य भी दल हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस धरना में वही दल शामिल हुए हैं, जो भ्रष्टाचार के मामले में ईडी और सीबीआई के निशाने पर हैं। अगर आप पार्टी की बात की जाए तो शराब घोटाले में ही मनीष सिसोदिया जेल में है। सीबीआई के बाद अब वे ईडी की हिरासत में है और उनसे पूछताछ की जा रही है। बता दें कि कविता की तरह अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस से समर्थन की उम्मीद कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कांग्रेस ने इस संबंध में कोई बयान जारी नहीं किया है।

केजरीवाल भी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से पहले खुद को विपक्ष का चेहरा बताते थकते नहीं थे। लेकिन सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद मामला उलट गया है। अब वे कांग्रेस से समर्थन मांग रहे है। कहने का मतलब साफ़ है कि केजरीवाल की भी हेकड़ी निकल गई है और वे अब एकता और एकजुटता की बात कर रहे हैं। वैसे भी लालू यादव और उनका परिवार खुद कई घोटाले में फंसा हुआ है। तो साफ़ है कविता के साथ वे जा सकते हैं। बताया जा रहा है कि लालू यादव भी दिल्ली में  ईडी और सीबीआई की कार्रवाई के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने वाले है।

गौरतलब है कि केसीआर लंबे समय से कांग्रेस और बीजेपी से दूरी बनाये हुए हैं। केसीआर अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा की वजह से बीजेपी और कांग्रेस को इग्नोर कर तीसरे मोर्चे को लेकर लगातार सक्रिय थे। वे इस संबंध नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे सहित कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। हाल ही में एक रैली में केसीआर ने अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल को बुलाया था। केसीआर के नरमी की वजह से माना जा रहा है कि कांग्रेस की उम्मीद बढ़ जाएगी। लेकिन, सवाल यह कि कविता की यह मुहिम कितनी कारगर साबित होगी। यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस धरना से कांग्रेस के अलावा कई और राजनीति पार्टी भी दूर रही हैं। इसमें ओडिशा की बीजेडी, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस शामिल हैं। इसके आलावा यह भी कहा जा रहा है कि जिन दलों ने कविता के धरने को समर्थन दिया था वे अपने दूसरे दर्जे के नेताओं को भेजा था। यानी एकता के नाम पर एक तरह से यह विपक्ष का मेगा शो कहा जा सकता है। इसी तरह, कुछ दिन पहले सिसोदिया की गिरफ्तारी पर लगभग दस विपक्षी नेताओं ने जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखा था। सबसे बड़ी बात यह यह कि इसमें कांग्रेस शामिल नहीं थी। हां तेलंगाना के सीएम केसीआर का हस्ताक्षर था।

भले कविता के धरना में टीएमसी नेता शामिल हुए लेकिन कुछ दिन पहले ही टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव में अकेले चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष की एकता बनेगी? दूसरी ओर हाल ही में नीतीश कुमार के बाद सपा नेता कपिल सिब्बल विपक्षी एकता को एकजुट करने के लिए एक इंसाफ मंच का गठन किया है। उन्होंने भी विपक्ष को एक मंच पर लाने की बात कर रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्ष की एकता के लिए कितने मंच बने? हर मंच विपक्ष को एकजुट करने का दावा करता है लेकिन कुछ समय के बाद ये गायब हो जाते हैं। ऐसे में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि कविता की मुहिम विपक्षी एकता को कितनी जोड़ती है ?

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