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Friday, December 5, 2025
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बंदर तो पिछवाड़ा खुजाएगा ही…

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भारत में कई wanna-be सेलिब्रिटीज है, जिनमें टैलेंट और स्किल्स नहीं होती, लेकीन किसी के पॉलिटिकल पार्टी या विचारधारा से सांठगांठ बनाए रखने से इनका हुक्का पानी चलता है। इनमें तापसी पन्नू और स्वरा भास्कर जैसे लोग आते है। फिल्में चलती नहीं…दुकान लगती नहीं फिर इनका सहारा यही राजनीतिक पार्टियां होती है। इसी wanna-be सेलब्रिटी का एक मिडियोकर कॉमेडियन है कुनाल कामरा! यह कॉमिडी की दुनिया का hack है, क्योंकि यह जोक्स नहीं मारता…व्हाट्सअप के एंटी भाजपा- एंटी RSS मैसेज पढता है। कमरा के शो में हाजरी लगाने वाले दर्शक भी इस बात का प्रमाण हैं कि laughter and intelligence don’t go hand in hand…! कामरा की ऑडियंस उसकी पंचलाइन्स सुनने थोड़ी आती है, वो BJP सरकार पर रोने आती है। यह काम हर सेशन में चलता है… बजट सेशन …मॉन्सून सेशन…विंटर सेशन! कामरा की ऑडियंस इसलिए ताली नहीं बजाती कि उसके चुटकुले मजेदार हैं, वो इसीलिए तालियां बजाती है कि यहीं उन्हें ऐसे लोगों से भरा कमरा मिल जाता जो उनकी विचारधारा से मेल खाता हैं। कामरा का जितना भी करियर बना है, वह दर्जेदार कॉमेडी शो के बजाए “मंदिर कब बनाओगे” के टोंट से बना है।

अब हुआ युं की, हमेशा की तरह रुदाली नाइट्स विथ कुनाल कामरा का कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें कामरा कुछ गानों की पैरोडी बना लाया। भाजपा-RSS पर जोक बनाने पर भाजपा वाले घांस डालते…इसके हिंदूओं पर जोक मारने के बाद हिंदू भी घास डाल नहीं रहे है।  समाज को पता है…बंदर तो पिछवाड़ा खुजाएगा ही! आप उसको पिछवाड़ा खुजाने पर पत्थर थोड़ी मारते फिरोगे ?इसी में कामरा, शिवसेना के अध्यक्ष एकनाथ शिंदे को ही गद्दार कहने वाला पैरोडी गाना गाया। लेकीन इस गधे को क्या पता वो हनुमान की पूंछ में आग लगाने जा रहा है। शिवसेना का पैटर्न ही अलग है…यह तब से अलग है जब से बाळासाहेब ठाकरे शिवसेना के नेता हुआ करते थे। हनुमान की पूंछ में आग लगाओ तो लंका तो जलेगी ही। वैसे ही कामरा के बदसलूकी पर शिवसेना कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया और जहां रुदाली नाइट्स विथ कामरा का शो जहां हुआ वहां जाकर तोड़फोड़ भी की।

जिस प्रकार से बची-कुछी ठाकरे-सेना, शिवसेना के खिलाफ गला फाड़ रही है उससे जाहिर होता है की कामरा का इस बार का कॉन्ट्रैक्ट सामना से ही था। ठाकरे पिता-पुत्र के अहंकार और निष्क्रियता के कारण महाराष्ट्र के लोगों ने उन्हें इस बार के चुनावों में नकारा, महाराष्ट्र की जनता इसी गद्दार-खोके-रिक्शावाला- बाप चुरा लिया-पार्टी चुराली- जैसे टोंटस से परेशान हो गई थी, उद्धव ठाकरे की भरे मंच से लोगों को गरियाने की आदत…लोगों से दुरी बनाना…राजनीति की निकटदर्शिता के कारण ही वो आज 20 जगह पर सीमट गए है। लेकीन वो इस बात को मानने से भी कतराते है। अगर ठाकरे पिता पुत्र में नेता की क्वालिटी होती तो घर में बैठे रहने के बजाए वो महाराष्ट्र में घूमते….असेंबली के सेशन्स अटेंड करते, लोगों से मिलते, नयी स्ट्रैटेजी और नए नारे के साथ लोगों के बीच आते।

उद्धव ठाकरे द्वारा पार्टी के राजनीति को आउटसोर्स करने का नतीजा ही कुनाल कामरा का कॉमेडी शो था। ऐसे घटिया गाने लिखना कोई बड़ी बात नहीं है…और न ही शिवसैनिकों द्वारा की गई तोड़फोड़ महाराष्ट्र में नई बात है। वैसे सरकार ने भी इस घटना पर तत्काल एक्शन लेते हुए लोगों को गिरफ्तार किया है।

वहीं आदित्य ठाकरे, संजय राऊत और उद्धव ठाकरे ने स्टूडियो के तोड़-फोड़ की निंदा की है। हालांकि जब महाराष्ट्र में ठाकरे  मुख्यमंत्री के तौर पर सजधज कर बैठे थे उस वक्त एक रिटायर्ड नेवी अफसर को एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मारा गया था। उन गुंडों को इन्होंने सम्मानित भी किया था। कंगना रनौत का घर तोड़ने के बाद उखाड़ लिया की, लाइन पर कुनाल कामरा तो संजय राऊत पर फैन-गर्लिंग कर रहे थे। आरजे मलिश्का ने कामरा की तरह ही ‘सोनू तुला माझ्यावर भरवसा नाही का’ इस पर पैरोडी गाना बनाया था…तब उद्धव ठाकरे गुट ने उसे किस तरह परेशान किया था यह लोग जानते है। इसलीए महाराष्ट्र के लोग भी उनके मगरमच्छ के आंसुओं से मेल नहीं बना रहें है। कामरा के जरिए आप एकनाथ शिंदे को किसी भी चुनाव में हरा नहीं पाएगें।

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ठाकरे को एकनाथ शिंदे की क्षमता पर ध्यान में रखना चाहिए था, भले ही वह पार्टी के 40 विधायकों को अपने साथ ले गए थे ।शिंदे की राजनीति जब तक चमकती रहेगी, ठाकरे को कष्ट होता रहेगा। जब तक कि ठाकरे कामरा जैसे मानसिक रूप से बीमार लोगों पर भरोसा करते रहेंगे, तब तक एकनाथ शिंदे की राजनीति हमेशा उनसे बेहतर रहेगी। अगर हम यह मान भी लें कि शिंदे का चेहरा देखकर उनके पेट में मरोड़ उठती है, लेकिन यह समस्या शिंदे को कोसने से ठीक हो जाएगी इसकी सम्भावना भी नहीं है। एकनाथ शिंदे को हराना है तो उद्धव ठाकरे को प्रयास करने की जरूरत है, लेकिन मुफ्त का बटोरने की आदत उन्हें मेहनत करने से दूर धकेल रही है। कामरा जैसे जोकरों के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने से ग्राउंड वर्कर्स का कोई नुकसान नहीं होता, और ना ही रिक्शावाले, चायवाले पॉपुलर नेताओं का!

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