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Saturday, September 21, 2024
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“उद्धव राजनीति के कच्चे खिलाड़ी” सुप्रीम कोर्ट की लगी मुहर 

शरद पवार और पृथ्वी राज चव्हाण ने उद्धव ठाकरे द्वारा इस्तीफा दिए जाने पर सवाल उठाया था। दोनों नेताओं ने कहा था कि उन्हें लड़ना चाहिए था। बिना लड़े इस्तीफा नहीं देना चाहिए जिस गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी।  

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कुछ दिन पहले ही जब शरद पवार ने अपनी आत्मकथा “लोक माझे सांगाती” का संशोधित संस्करण का विमोचन किया था। जिसमें उन्होंने उद्धव ठाकरे के बारे में कुछ चीजें लिखी है। इसमें शरद पवार ने कहा है कि “उद्धव ठाकरे राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं।” इस पुस्तक के विमोचन पर उन्होंने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का भी ऐलान किया था। जिसके बाद एनसीपी समर्थकों ने विरोध करते हुए शरद पवार के इस फैसले को बदलने के लिए दबाव बनाये। हालांकि, तीन दिन के बाद ही उन्होंने अपना फैसला वापस ले लिया था। अब शरद पवार के उस मत पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। जिसमें कहा गया है कि उद्धव ठाकरे को राजनीति की समझ नहीं है। यानी कहा जा सकता है कि राजनीति माहिर नहीं होने की वजह से ही आज उद्धव ठाकरे सत्ता से हाथ धोकर घर बैठे हैं।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट में जारी विवाद पर फैसला सुनाया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने का निर्णय लिया है। हालांकि कोर्ट ने 16 विधायकों के अपात्र घोषित किये जाने वाले निर्णय पर कहा कि इस मामले में वह कोई फैसला नहीं ले सकते हैं क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। इन सोलह विधायकों के अपात्र का निर्णय महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ही ले सकते हैं।  हालांकि पहले भी यही कहा जा रहा था कि इस संबंध में कोर्ट कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता क्योंकि जो कुछ हुआ है विधानसभा में हुआ है। इसलिए इस पर फैसला स्पीकर ही ले सकते हैं।

हालांकि कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट के लिए उद्धव ठाकरे को बुलाया जाना गलत है और संविधान के अनुसार नहीं है। उसके चालीस विधायकों द्बारा किया गया बगावत शिवसेना का आंतरिक मामला था। इसलिए गवर्नर को पार्टी के अंदरूनी मामले में दखल नहीं देनी चाहिए था। हालांकि, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी की भी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे शिवसेना के चालीस विधायकों के बगावत करने के बाद अपना इस्तीफा नहीं दिया होता तो आज मामला कुछ और होता। हालांकि, वर्तमान में एकनाथ शिंदे की सरकार है जो बनी रहेगी।

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि उद्धव ठाकरे को उस फैसले पर मलाल होगा। जिसमें  उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया था। बता दें कि उद्धव ठाकरे ने कोरोना काल में फेसबुक के जरिये जनता को सम्बोधित करते थे, उस समय भी उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के फैसले की जानकारी फेसबुक से ही दी थी। जिस पर तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को राजभवन में आकर इस्तीफा देने को कहा था तब उद्धव ठाकरे राजभवन पहुंच कर अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा था। हालांकि, उद्धव ठाकरे ने गुरूवार को अपने फैसले को नैतिकता का चोला पहनाते हुए कहा कि मै जनता के लिये लड़ रहा हूं।  उन गद्दारों के साथ कैसे  सरकार चलाता।

गौरतलब है कि इस मामले पर शरद पवार ने भी अपनी टिप्पणी कर चुके हैं। उन्होंने तब कहा था कि उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले हम लोग से चर्चा नहीं की थी। इसी बात को शरद पवार ने भी अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र किया है। जिसमें उन्होंने उद्धव ठाकरे को राजनीति का कच्चा खिलाड़ी बताया है। उन्होंने लिखा वह कि उद्धव ठाकरे ने बिना संघर्ष किये ही इस्तीफा देकर महाविकास अघाड़ी सरकार को खत्म कर दिया। शरद पवार ने अपनी बायोग्राफ़ि में “लोक माझे सांगाती” में लिखा है कि ” हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने पर शिवसेना में बगावत हो जायेगी। जिसके बाद शिवसेना अपना नेतृत्व खो देगी। उद्धव ने बिना संघर्ष किये की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।  जिसकी वजह से  महाविकास अघाड़ी की सरकार गिर गई। इतना ही नहीं, शरद पवार ने आगे यह भी लिखा है जिस सहजता के साथ बाला साहेब ठाकरे से बात होती थी। वो उद्धव ठाकरे से बातचीत करते हुए कमी महसूस हुई।

इतना ही नहीं शरद पवार के साथ ही पृथ्वीराज चव्हाण ने भी उद्धव ठाकरे द्वारा इस्तीफा देने की आलोचना की थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने 30 जून  2022 में ही उद्धव के इस्तीफे पर सवाल उठाया था। इस्तीफा देने के एक दिन बाद पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा था कि  उद्धव ठाकरे लड़ना नहीं जानते उन्हें विधानसभा में आना चाहिए था और अपनी बात रखते हुए अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए था। कांग्रेस नेता यहीं नहीं रुके थे। उन्होंने आगे कहा था कि अपने विधायकों के बगावत के सदमे से वे उबर नहीं पाए थे। साथ उन्होंने यह भी कहा था कि फेसबुक और विधायिका में बोलने में बड़ा अंतर है। यह बात पृथ्वीराज चव्हाण ने ही नहीं कही है बल्कि शरद पवार भी अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि उद्धव ठाकरे कोरोना काल में केवल दो बार मंत्रालय आये।

अब ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि जिस महाविकास अघाड़ी को बचाने के लिए शरद पवार और उद्धव ठाकरे हां में हां मिला रहे हैं। क्या ऐसे में महाविकास अघाड़ी का नेतृत्व उद्धव ठाकरे कर सकते हैं? अगर यह मान भी लिया जाए कि महाविकास अघाड़ी बची रही तो उसका कौन नेतृत्व करेगा? मुख्यमंत्री का उम्मीदवार किस पार्टी से रहेगा ? क्या कांग्रेस से कोई नेता मुख्यमंत्री का दावेदार होगा या एनसीपी से। बहरहाल, अभी इसके लिए लंबा समय है। आगे देखते हैं महाराष्ट्र की राजनीति किधर करवट लेती है।


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