प्रशांत कारुलकर
दशकों लंबे विद्रोह का अंत करते हुए शुक्रवार को एक ऐतिहासिक घटना में, असम के उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रो-बातचीत गुट ने भारत सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता नरेंद्र मोदी सरकार का असम में स्थायी शांति और स्थिरता लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
यह समझौता असम पुलिस के पुनर्वास प्रयासों की सफलता का परिणाम है, जहां पिछले दो वर्षों में 8,756 पूर्व कैडरों को समाज में पुन: एकीकृत किया गया है। इस पहल से उल्फा के साथ वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण हुआ। इस महत्वपूर्ण समझौते पर गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उल्फा के अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।
यह समझौता असम के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करेगा, साथ ही राज्य के स्वदेशी लोगों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा। उम्मीद है कि इस समझौते से लंबे समय से चले आ रहे तनाव को कम किया जाएगा और राज्य में विकास एवं समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।
हालांकि, कुछ आशंकाएं भी हैं। समझौते की शर्तों को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे कुछ लोगों में चिंता है कि सरकार उल्फा के साथ समझौते पर पहुंचने के लिए अतिरिक्त छूट दे रही है। इसके अतिरिक्त, उल्फा के अन्य गुटों की प्रतिक्रिया अभी तक स्पष्ट नहीं है।
फिर भी, यह समझौता निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है और असम में शांति की एक नई उम्मीद जगाता है। सरकार को अब समझौते के कार्यान्वयन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने और स्थानीय आबादी के विश्वास को जीतने की आवश्यकता है। यदि सही तरीके से लागू किया गया, तो यह समझौता असम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है और राज्य को विकास और समृद्धि के पथ पर आगे ले जा सकता है।
दशकों तक अशांति की आग में झुलसता असम आज शांति की ओर बढ़ते कदमों से आशान्वित है। इस बदलाव में नरेंद्र मोदी सरकार की पहल और प्रतिबद्धता को नकारना नासमझी होगी। मोदी सरकार ने असम में विकास को शांति का हथियार बनाया है। असम के बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए निवेश ने राज्य के युवाओं के लिए अवसरों का द्वार खोला है। आर्थिक प्रगति से स्थिरता आई है और लोगों में विकास का भरोसा जगा है। नॉर्थ ईस्ट डेवलपमेंट विजन 2030 जैसे कार्यक्रमों से असम को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है।
मोदी सरकार ने असम की सांस्कृतिक विरासत और जनजातीय पहचान को प्रोत्साहित किया है। चाहे असमिया भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करना हो या फिर राज्य के पारंपरिक त्योहारों को राष्ट्रीय पटल पर लाना हो, सरकार ने असम की संस्कृति को सम्मान दिया है। इससे राज्य के लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत हुई है। मोदी सरकार की दृढ़ता और समावेशी नीतियों से यह उम्मीद जगी है कि असम आखिरकार अशांति के अंधकार से निकलकर शांति और समृद्धि के सूर्योदय का स्वागत करने को तैयार है।
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