बंगाल में हुई हिंसा पर विपक्ष के नेता क्यों नहीं बोल रहे हैं ? जिस लोकतंत्र और संविधान की राहुल गांधी दुहाई देते हैं ,क्या उन्होंने बंगाल पंचायत चुनाव के समय हुई हिंसा पर बोले, नहीं बोले, क्यों नहीं बोले ? इसका जनता जवाब चाहती है। क्या राहुल गांधी को बंगाल में हुई हिंसा लोकतंत्र का अनुरूप लगी ,इसलिए उन्होंने ममता बनर्जी के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा नहीं किया। नीतीश कुमार तो हिंसा वाले राज्य के ही मुखिया है, तो उन्हें इसमें कुछ नया नहीं दिखा होगा। इसलिए नहीं बोले होंगे, जबकि केजरीवाल सुबह शाम संविधान और लोकतंत्र के गीत गुनगुनाते रहते है, लेकिन उन्हें बंगाल में लहूलुहान होता लोकतंत्र दिखाई नहीं दिया। सवाल यही है कि इन नेताओं को बंगाल की हिंसा क्यों नहीं दिखाई दी।
अगर आजकल विपक्ष के नेता कहीं एकत्रित होते हैं तो बस केवल लोकतंत्र और संविधान को बचाने की बात करते हैं। हाल ही में जब केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी तो उन्होंने अपनी याचिका में संविधान का ही हवाला दिया है। इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब तलब भी किया है। लेकिन यही केजरीवाल बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हो रही हिंसा पर एक शब्द नहीं बोले। और न ही इस हिंसा की निंदा की गई है। देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे केजरीवाल क्या ऐसे ही आंख बंद किये रहेंगे। रोज रोज ट्वीटर ट्वीटर खेलने वाले केजरीवाल का क्या ममता बनर्जी इस हिंसा पर समर्थन किया।
बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से हिंसा का तांडव मचाया है। उस पर सवाल खड़ा होता है, कि क्या सत्ता दल के कार्यकर्ता इस तरह से उपद्रव कर सकते हैं, क्या सत्तासीन सरकार का इस ओर से आंख बंद कर रखी थी। राज्य में व्यापक तौर पर हुई हिंसा पर राज्य सरकार ने क्या कदम उठाया ? उसे बताना चाहिए। लेकिन ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी थी। क्या एक राज्य के मुखिया के तौर पर ममता बनर्जी का इस ओर से मुंह फेरना सही है। ममता बनर्जी अब सवालों के घेरे में है। क्या बंगाल में हुई हिंसा प्रायोजित थी, यह सवाल चारों ओर तैर रहा है। बंगाल में हुई हिंसा पर 23 जून को पटना में शामिल होने वाले राजनीति दलों के कोई भी नेता ने इस संबंध में नहीं बोला है। क्या यह लोकतंत्र है, क्या इस हिंसा को इन 15 राजनीति दलों की मौन सहमति थी?
सबसे बड़ी बात यह है कि बंगाल में हुए हिंसा पर कांग्रेस दोगलेपन का शिकार है। एक ओर जहां बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन ममता सरकार पर हमलवार है। वहीं, कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्च मुंह में दही जमा रखा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मणिपुर हिंसा को लेकर मुखर है। लेकिन बंगाल चुनाव पर चुप्पी साध रखी है। इसी तरह कांग्रेस के सभी प्रवक्ता जोरशोर से मणिपुर में जारी हिंसा पर केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं और राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का इस्तीफा मांग रहे हैं। लेकिन कांग्रेस बंगाल में पंचायत चुनाव में हुई हिंसा पर सन्नाटा छाया हुआ है। जबकि कांग्रेस हर बात पर लोकतंत्र की दुहाई देती रहती है। ऐसा लग रहा है कि बंगाल चुनाव में हुई हिंसा कांग्रेस के लिए लोकतंत्र का खूबसूरत नजारा है।
देश की धरती से लेकर विदेश तक पर फर्जी मोहब्बत की दुकान खोलने वाले राहुल गांधी की दुकान बंगाल चुनाव के समय हुई हिंसा पर बंद हो गई। बात बात पर मोहब्बत की दुकान खोलने वाले राहुल गांधी, त्रिपुरा और गोवा चुनाव के समय ममता बनर्जी को पानी पी पीकर कोसा था।उन्होंने टीएमसी को बीजेपी का बी टीम बताया था। वही राहुल गांधी मणिपुर में हुई हिंसाग्रस्त स्थानों का दौरा करते हैं। मगर बंगाल में हुई हिंसा पर नहीं बोलते हैं। क्या यह पीएम का सपना देखने वाले राहुल गांधी के लिए सही है, क्या कांग्रेस का यह दोहरा मापदंड 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई बड़ा करिश्मा कर सकता है। क्या इस अनदेखी पर जनता कांग्रेस को समर्थन देगी। अगर सियासत में दोहरा मापदंड ही जीत का गारंटी है तो बीजेपी के सामने लोकतंत्र और संविधान का नाटक क्यों।
बंगाल पंचायत चुनाव में बीजेपी के अनुसार के 45 लोगों की मौत हो चुकी है। बीजेपी का आरोप है कि बंगाल में हुई हत्या प्रायोजित है। 45 लोगों की हत्या में सरकार सहित पुलिस और जिला प्रशासन भी शामिल है। वहीं, कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने केंद्रीय बल को गुमराह किया है। ममता सरकार ने केंद्रीय बल को संवेदनशील मतदान केंद्रों की सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई थी। ममता बनर्जी ने ऐसा एक रणनीति के तहत किया है। उन्होंने केंद्रीय बल को लगभग पांच हजार संवेदनशील मतदान केन्द्रो की ही जानकारी दी थी. साथ ही उसका सही सही ब्योरा भी साझा नहीं किया था, जिसकी वजह से बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ता उपद्रव किये।
बहरहाल, कहा जाता है कि सियासत में मजबूरी बड़ी चीज होती है। आज 15 राजनीति दल इसी मज़बूरी का शिकार हैं। ये दल 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साथ आने वाले हैं।इसलिए नीतीश कुमार, लालू यादव, राहुल गांधी, केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती जैसे नेता बंगाल हिंसा पर एक लफ्ज बोलकर ममता बनर्जी को नाराज नहीं करना चाहते हैं। ये नेता बीजेपी को हारने के लिए किसी भी हद जाने को तैयार हैं। यह उसी का नमूना है। यही हाल कांग्रेस का है। वह किसी भी हालत में ममता बनर्जी की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ममता बनर्जी,राहुल गांधी जैसे नेता लोकतंत्र पर बात करने लायक हैं। क्या इनके दोहरे चरित्र पर जनता विश्वास करेगी ? सत्ता के जनता को मौत के मुंह में झोंकना कहां का सही है ? क्या विपक्ष के नेता बेंगलुरु में होने वाली बैठक में ममता बनर्जी से सवाल कर सकते हैं।
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