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Sunday, November 10, 2024
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जाली नोट छापेंगे तेजस्वी नीतीश?

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बिहार की राजनीति में हुई उथल पुथल कोई नया नहीं है। लेकिन,जिस तेजस्वी यादव के साथ  नीतीश कुमार सरकार बनाये हैं। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। लेकिन, तब नीतीश कुमार ने कहा था कि क्या तेजस्वी यादव नकली नोट छापकर लोगों को सैलरी देंगे। या जेल से पैसे लाएंगे। पर आज नीतीश कुमार कह रहे हैं कि इस संबंध में कोशिश करेंगे। आज हालात यह है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव तालियां बजा रहे हैं। जो राज्य तीन तीन महीने अपने शिक्षकों को सैलरी नहीं दे पा रहा है। वहां के लोगों को तेजस्वी यादव 10 लाख सरकारी नौकरी देने का सपना दिखाएं हैं, लेकिन क्या वर्तमान सरकार तेजस्वी के वादे को पूरा कर पाएगी। यह सबसे बड़ा सवाल जनता में उठ रहा है। क्योंकि तेजस्वी अब इस मामले पर कन्नी काटते हुए नजर आ रहे हैं। एक इंटरव्यू में तेजस्वी ने कहा कि अगर वे मुख्यमंत्री होते तो यह वादा पूरा करने की कोशिश करते, लेकिन वर्तमान में वे उपमुख्यमंत्री हैं। ऐसे करने में असमर्थ हैं, लेकिन तीन चार लाख लोगों को नौकरी देने की कोशिश करेंगे।

दरअसल, 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव चुनावी रैली में बिहारियों को दस लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। जिसके बाद उस समय नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस समय नीतीश कुमार ने तेजस्वी द्वारा किये गए वादे का मजाक उड़ाया था। उन्होंने कहा था कि लोग नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं ऐसे में बिहार की जनता इन वादों के झांसे में न आये। उन्होंने कहा था कि इसके लिए कहां से पैसे लाये जाएंगे क्या जेल से लाएंगे या जाली नोट छापकर सैलरी देंगे ? लेकिन आज जब नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ सत्ता में आये हैं तो खुद पलटी मारकर कह रहे हैं कि कोशिश करेंगे। तेजस्वी के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश की भाषा बदल गई है।सत्ता में आने के बाद तेजस्वी ने कहा कि वे इस संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करेंगे। कोई नया रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी। लेकिन क्या नीतीश कुमार बिहार की बदहाली से अनजान हैं ?जो यह कह रहे हैं कि कोशिश की जाएगी।

सही बात है, लेकिन इसके लिए पैसा कहां से आएगा? 2020 के विधानसभा चुनाव में कह दिया कि क्या जाली नोट छापकर सैलरी देंगे, तो क्या अब नीतीश भी तेजस्वी के साथ जाली नोट छापेंगे? साफ़ है कि नीतीश कुमार बिहार की जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं में भ्रम पैदा किया गया। ये वही तेजस्वी हैं जो जलते बिहार की लपटों पर हाथ सेंक रहे थे। राजनीति चमकाने के लिए युवाओं को उकसा रहे थे। आज जब 10 लाख लोगों को नौकरी देने वाले वादे को बीजेपी ने आड़े हाथों लिया है तो पंडितों की चोटी याद आ गई। इस मामले में तेजस्वी को जब बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने घेरा तो उन्होंने गिरिराज सिंह के खिलाफ विवादित बयान दिया। एक ट्वीट कर लिखा कि  श्रीमान जी, इतना बेशर्म मत बनिए। एक फुट लंबी चोटी रखने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। जैसा आप रखते हैं।

तो क्या बदहाल बिहार 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी दे सकता है ? साफ़ है कि बिहार 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकता? क्योंकि बिहार के पास पैसा ही नहीं है तो नौकरी देने के बाद इन लोगों को सैलरी कहां से दी जायेगी।वर्तमान में शिक्षकों को समय पर सैलरी ही नहीं मिलती है। उन्हें तीन माह बाद सैलरी मिलती है। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार अन्य राज्यों की तरह कारोबार वाला राज्य नहीं है। भले ही कुछ चीजों में बिहार काम किया हो ,लेकिन यहां की सरकारों ने रोजगार निर्मित करने वाली योजनाओं पर कभी भी काम नहीं किया। लालू यादव जातपात की राजनीति किया। अपनी झोली भरी अब उनके बेटे भी वही कर रहे हैं। बिहार खेती किसानी वाला राज्य है, लेकिन कृषि को उस हिसाब से बढ़ावा नहीं दिया गया, जैसा की दिया जाना चाहिए। लेकिन, चारा घोटाले का मामला विश्व प्रसिद्ध हो गया। सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार में आमदनी का कोई जरिया ही नहीं है। शराबंदी के बाद से बिहार की आर्थिक हालात और भी ख़राब हैं। जबकि शराब से बिहार को बड़ा राजस्व प्राप्त होता था। इसके बाद आमदनी के लिए सरकार ने कोई नए तरीके नहीं खोजे।

खेती किसानी को नए तरीकों से लैश नहीं किया गया। कृषि क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं पैदा नहीं की गई। जिस राज्य में एक साल में तीन फसलें ली जा सकती हैं ,वहां पानी -बिजली का संकट है। मानव संसाधन होने के बाद भी बिहार की आर्थिक हालात बुरे दौर में हैं। सत्ता सुख के लिए बिहार की जनता को भूखे नंगे रहने के लिए छोड़ दिया गया है। यहां के लोग दूसरे राज्यों में जाकर अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ करते हैं और गाली सुनते हैं , लेकिन, बेशर्म बिहार की सरकार उन्हें रोकने  के लिए कोई अब तक कदम नहीं उठाया। 22 साल नीतीश ने सत्ता का सुख भोगा लेकिन राज्य मजदूरों के पलायन को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

बहरहाल,दस लाख सरकारी नौकरी के लिए बिहार सरकार को 22 हजार करोड़ रूपये की जरूरत होगी। देखा जाए तो 2021-22 में बिहार का बजट 2.17 लाख करोड़ रूपये था। जबकि 2022 -23 का बजट 2.37 लाख करोड़ रूपये था। ऐसे में दस लाख सरकारी नौकरी देने पर सरकार को 22 हजार करोड़ रूपये अतिरिक्त जुटाना पड़ेगा। इसके लिए सरकार को फिजूलखर्ची पर लगाम लगाना होगा। लेकिन सत्ता के भूखे दोनों दल ऐसे कर पाएंगे यह कह पाना मुश्किल है।

वहीं, बिहार भारत के सबसे गरीब राज्यों में गिना जाता है। 2015-16 में आई एक रिपोर्ट में  कहा गया था कि यहां का हर दूसरा व्यक्ति गरीब है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा हर चार व्यक्ति में एक व्यक्ति गरीब बताया गया है। बिहार की ऐसी हालात है कि यहां कई विभाग बंद कर दिए गए। इसकी वजह लंबे समय से सैलरी नहीं मिलना हैं। आज भी लोग अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। इसी में से एक है बिहार का राज्य पथ परिवहन निगम जो बंद हो चुका है। सरकार इस निगम को इस लिए बंद कर दी कि उसके पास यहां काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में यह सवाल उठाना लाजमी है कि बिहार सरकार दस लाख लोगों को नौकरी देगी तो सैलरी कहां से देगी ?  शायद तेजस्वी की हकीकत पता नहीं है ? अगर पता भी है तो वह केवल जनता को गुमराह कर रहे हैं ।

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