बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की खबरों को मुहम्मद यूनुस की सरकार ‘भ्रामक’ बता रही थी। लेकिन अब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बांग्लादेश दौरे के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने स्वीकार किया है कि इस साल अगस्त में हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की लगभग 88 घटनाएं हुई हैं। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने घटनाओं की पुष्टि की।
शफीकुल आलम ने दावा किया है कि ऐसी घटनाओं में सीधे तौर पर शामिल लगभग 70 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जा चूका है। आलम ने संवाददाताओं से कहा, “5 अगस्त से 2 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से जुड़ी घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा की नई घटनाएं सामने आई हैं।” शफीकुल आलम के दावे में पीड़ितों के अवामी लीग से संबंधित होने का दावा किया गया है।
यह विदेश सचिव विक्रम मिस्री द्वारा बांग्लादेश यात्रा और हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम के बाद आया है, जिसमें ढाका के लिए भारत ने समर्थन दिखाया था। इसी के साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों के खिलाफ हमलों पर नई दिल्ली की चिंता जताई थी। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और खेदजनक घटनाओं को सामने लाया और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग की। वहीं बांग्लादेश के विदेश सचिव ने बांग्लादेश में गैर-मुसलमानों और अल्पसंख्यंकों की सुरक्षा अंतरिम सरकार की प्राथमिकता कहा है।
बता दें की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पिछले एक सप्ताह तक यही दावा कर रही थी की, अंतरिम सरकार के शासन में बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को शेख हसीना के प्रशासन की तुलना में अधिक सुरक्षा मिली है, जिसके बाद आलम ने यह कहा था कि भारतीय मीडिया बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने के बारे में झूठी कहानियां फैलाने के लिए “औद्योगिक तौर पर भ्रामक सूचना अभियान” चला रहा है। आलम के हवाले से कहा गया, “हिंदू यहां अच्छी तरह से सुरक्षित हैं। शेख हसीना के शासन के दौरान की तुलना में वे अधिक सुरक्षित हैं। हम यहां जो देख रहे हैं वह भारत से शुरू होने वाला औद्योगिक पैमाने पर गलत सूचना अभियान है।” इस बयान के कुछ दिनों बाद, अंतरिम सरकार ने ध्यान भटकाने के हताश प्रयास में फिर से हिंसा और सामूहिक हत्याओं को उजागर करने के लिए भारत को दोषी ठहराया।
बांग्लादेश के शासन ने 4 दिसंबर को दावा किया कि भारत का “शासक वर्ग” सीमा पार की स्थिति को दोनों देशों के बीच “आंतरिक राजनीतिक मुद्दे” में बदलने की कोशिश कर रहा है। इसने सूक्ष्म रूप से यह संकेत दिया कि जिहादियों के हाथों हिंदुओं का नरसंहार ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में भारत या किसी और को चिंतित होना चाहिए, यह सुझाव देते हुए कि यह कोई महत्वपूर्ण मामला नहीं है। बांग्लादेश के हिंसक घटनाओं की बात करें तो लोगों ने इन आंकड़ों को मानने से मना कर दिया है। कहा गया है की हिंसा की कई घटनाएं पुलिस ने दर्ज ही नहीं की है, जिसमें आगजनी, लूटपाट, महिला विरोधी हिंसा के साथ ही हत्या जैसे जघन्य अपराध शामिल है। इसी कारण बांग्लादेश सरकार की ओर से दिए गए आंकडे संदिग्ध कहें जा रहे है।
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इस साल अगस्त में शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के गिरने के बाद से ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। कई इलाकों से हिंदुओं पर हिंसा के मामले सामने आए है, साथ ही कई हिंदू मंदिरों को तोडा या जलाया दिया गया है। हिंदू गुरुओं की झूठे मुकदमों के तहत गिरफ़्तारी ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें बांग्लादेश और भारत भर में हिंदू समुदाय के लिए न्याय की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।