लोकतांत्रिक तरीके से चयनीत बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में मुस्लिम चरमपंथियों के उत्पात की खबरें लगातार बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी हिंदुओ को अनेकों कारणों से हर रोज़ प्रताड़ित और जबरन धर्मांतरित किया जा रहा है। दरम्यान हिंदू अल्पसंख्यकों को लक्ष्य कर किए जाने वाले अत्याचार की एक और चिंताजनक घटना सामने आई है। लालमोनिरहाट जिले में 69 वर्षीय हिंदू बुजुर्ग नाई परेश चंद्र शील को एक झूठे गुस्ताख़ी के आरोप में उग्र भीड़ ने बेरहमी से पीट डाला। यह घटना 20 जून को हुई और इसका खुलासा मंगलवार को ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज (HRCBM) ने किया।
मानवाधिकार संगठन ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए बताया कि जब पीड़ित के बेटे ने भीड़ से अपने पिता की जान बख्शने की गुहार लगाई, तो उसे भी बुरी तरह पीटा गया। HRCBM के अनुसार, स्थानीय पुलिस ने पीड़ित की रक्षा करने के बजाय हिंसा को बढ़ावा दिया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कथित तौर पर कहा कि शील को उम्रभर जेल में रखने के लिए झूठे आरोप गढ़े जाएंगे। यह बयान बांग्लादेश के संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का खुला उल्लंघन माना जा रहा है।
घटना की शुरुआत उस समय हुई जब अल-हेरा जामे मस्जिद, नमाटरी के स्वघोषित इमाम मोहम्मद अब्दुल अजीज शील की दुकान पर बाल कटवाने आए। बाल कटवाने के बाद उन्होंने केवल 10 टका सेवा शुल्क देने से इनकार किया। HRCBM को पीड़ित की बहू दीप्ति रानी रॉय का एक वीडियो बयान मिला है, जिसमें उन्होंने कहा कि जब अजीज से शुल्क मांगा गया, तो वह भड़क गए और दुकान छोड़कर बाहर चले गए। थोड़ी देर बाद अजीज ने लोगों को यह कहकर भड़काया कि शील ने इस्लाम के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। इसके बाद एक भीड़ ने सैलून पर हमला कर दिया।
परिवार का कहना है कि कोई आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं की गई थी और यह पूरा आरोप एक पूर्व-नियोजित साजिश थी, ताकि लूटपाट और हिंसा की जा सके। FIR में शिकायतकर्ता अजीज ने दावा किया कि उस वक्त उनके साथ केवल एक व्यक्ति मोहम्मद नजमुल इस्लाम मौजूद था, लेकिन बाद में गवाहों की संख्या बढ़ाकर चार और नाम शामिल किए गए – जिनमें से कई की उपस्थिति घटनास्थल पर संदिग्ध है।
HRCBM ने आरोप लगाया कि यह मामला झूठे ईशनिंदा के मामलों की उस लंबी सूची का हिस्सा है, जो बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने और उनके सामाजिक-आर्थिक अस्तित्व को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
संस्था ने कहा, “क्या वास्तव में एक गरीब, बुजुर्ग हिंदू नाई, जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए खुद की दुकान में काम करता है, इतना साहस करेगा कि किसी मजहब के पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करे?” यह पूरा मामला न सिर्फ तथ्यों से परे लगता है, बल्कि इसमें शामिल शिकायतकर्ताओं की गवाही में भी गंभीर असंगतियां हैं।
इस घटना ने एक बार फिर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा और धार्मिक कट्टरता के खतरनाक स्तर को उजागर किया है, जहां झूठे आरोपों के आधार पर भीड़ न्याय अपने हाथों में ले रही है, और कानून-व्यवस्था मूकदर्शक बनी हुई है।
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