बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पत्नी रमाबाई अंबेडकर की आज जंयती है। रमाबाई भीमराव अंबेडकर का जन्म 7 फरवरी 1898 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव दाभोल में एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। बाबासाहेब अम्बेडकर का जीवन रमाबाई से काफी प्रभावित था। रमबाई ने सामाजिक न्याय और सुधार के लिए उनके प्रयासों का भी समर्थन किया। रमाबाई भीमराव अंबेडकर की जयंती पर जानते हैं उनके बारे में…
1906 में भायखला बाजार में बाबासाहेब अम्बेडकर से रमाबाई की शादी हुई। शादी के समय रमाबाई अंबेडकर नौ साल की थीं और बाबा साहेब 15 साल के थे। रमाबाई ने अम्बेडकर की महत्वाकांक्षाओं का पूरा समर्थन किया और उन्होंने उन्हें विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। जब बाबा साहेब अपनी पढ़ाई के लिए विदेश में थे, तो उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्हें अपने लक्ष्यों को पूरा करने से कभी नहीं रोका।
अंबेडकर दम्पत्ति के जीवन की राह कभी आसान नहीं रही और रमाबाई ने हर संघर्ष में अपने पति डॉ. अंबेडकर का पूरा साथ दिया है। वे घर-घर जाकर गोबर के उपले बेच कर परिवार के पेट भरने का जतन करती तो दूसरों के घरों में काम कर बाबासाहेब की शिक्षा का खर्च जुटाने में मदद करती थीं। इस साथ के बारे में डॉ. अंबेडकर ने ‘बहिष्कृत भारत’ के एक संपादकीय में बताया है। उन्होंने लिखा है कि जिंदगी के एक बड़े हिस्सें में गृहस्थी का सारा बोझ रमाबाई ने उठाया। विदेश से वापसी के बाद भी जब डॉ. अंबेडकर सामाजिक उत्थान के कार्य में जुटे हुए थे तब उनके पास परिवार के लिए समय ही नहीं होता था तब रमाबाई ने ही पूरे परिवार का ख्याल रखा।
असमानता, भेदभाव, छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के साथ उन्हें आर्थिक अभावों से भी दो-दो हाथ करने थे। बाबा साहेब जग सुधार में जुटे थे तो रमा बाई ने परिवार का मोर्चा संभाले रखा। बाबासाहेब के पांच बच्चों में से केवल एक यशवंत अंबेडकर ही जीवित रहे। ऐसी विकट परिस्थितियों में भी रमाबाई बाबा साहेब का संबल बन हमेशा खड़ी रहीं। रमाबाई को लंबे समय तक भूखे या आधा पेट खाना खाकर जीना पड़ा था। फिर चार बच्चों की मृत्यु ने उन्हें तोड़ दिया था। वहीं कठोर जीवन संषर्घ के कारण रमाबाई का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। उपचार काम नहीं आ रहा था। मृत्यु से पहले करीब छह महीने तक वे बिस्तर पर रहीं। 27 मई 1935 को रमाबाई सदा-सदा के आंबेडकर को छोड़कर चली गईं।
वहीं बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1940 में प्रकाशित “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” नाम की अपनी पुस्तक में अपने जीवन पर रमाबाई के प्रभाव को स्वीकार किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ को अपनी प्यारी पत्नी रमाबाई को समर्पित किया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मामूली भीमा से डॉ. अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को जाता है।
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