अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने फईम कुरैशी को अपनी पत्नी वर्षा रघुवंशी को प्रताड़ित करने और उसकी परेशानियां बढ़ाने के कारण उसने 2021 में आत्महत्या की इस आरोप में दोषी करार देते हुए 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। फईम को भारतीय दंड संहिता की धारा 498सी और 498सी के तहत दोषी पाया गया है। साथ ही फईम के पिता कयूम कुरैशी, मां फिरदौस कुरैशी, भाई नईम कुरैशी और बहन तबस्सुम कुरैशी सहित, अन्य आरोपियों को अपराध से सीधे तौर पर उनका संबंध दर्शाने वाले पर्याप्त सबूत न होने के कारण बरी किया गया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, वर्षा को न केवल दहेज के लिए बल्कि धार्मिक रूप से भी परेशान किया गया था। हालांकि, अदालत ने कहा है कि उसे हिंदू धर्म का पालन करने से रोकने और इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने के कोई ठोस सबूत नहीं है।
दरअसल यह मामला 2021 का है, जहां वर्षा अपने वैवाहिक घर में मृत पाई गई। उसके परिजनों का आरोप है कि दहेज और धर्मपरिवर्तन की मांग करटे हुए उसे महीनों तक शारीरिक और मानसिक यातना दी गई। वर्षा के भाई दुष्यंत रघुवंशी ने उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
शिकायत के अनुसार, फहीम ने दहेज के रूप में 5 लाख रुपये और एक कार की मांग की गई थी। जब उसकी मांगें पूरी नहीं की तो वर्षा को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। उन्होंने बताया कि उसके ससुराल वालों ने उससे कहा कि यदि वह दहेज और कार नहीं लाएगी तो उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार किया जाएगा और उसे कभी पत्नी का दर्जा नहीं दिया जाएगा। शिकायत के अनुसार वर्षा के ससुराल वालों ने उसे हिंदू धर्म त्यागने और इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसने अपनी बहन को मांस पकाकर खिलाने के लिए मजबूर किया था। घटना से चार महीने पहले, फईम ने वर्षा से एक खाली स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया और उससे कहा कि अगर उसने उसकी मांगें पूरी नहीं की तो वह उसे तलाक देकर उसे मार देगा।
सुनवाई के दौरान गवाहों ने कहा कि पूजा करने के लिए वर्षाका मजाक उड़ाया गया और हिंदू परंपराओं का पालन करने के लिए उनका अपमान किया जाता रहा। उसे चेतावनी दी गई कि यदि उसने इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा। 12 नवंबर को शाम करीब 6:30 बजे पीड़िता के परिवार को फोन पर उसकी मौत की सूचना मिली। घटना की जानकारी मिलने पर वे वर्षा के ससुराल पहुंचे, जहां उनका शव जमीन पर पड़ा मिला। उसके पति और ससुर घर पर नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि न तो उन्होंने और न ही पुलिस ने वर्षा को फांसी पर लटकते देखा।ससुराल वालों ने दावा किया है कि वर्षा की मौत आत्महत्या थी।
मुकदमे के दौरान, कई गवाहों ने बयान दिए, जिनसे पीड़िता के अंतिम महीनों की भयावह तस्वीर सामने आई। उसके भाई दुष्यंत ने बताया कि उसने पीड़िता से कई बार फोन पर बात की थी, जिसमें उसने अपने साथ रोजाना होने वाली छेड़छाड़ के बारे में बताया था। उन्होंने गवाही में कहा कि उसने स्पष्ट रूप से बताया था कि दहेज न लाने और इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार करने पर उसे पीटा गया था। उसने फईम पर लव जिहाद का आरोप लगाया और शादी के लिए भागने से पहले उसकी बहन के साथ जबरदस्ती की। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि उसके ससुर उसे “काफिर की औलाद” कहते थे।
वर्षा की मां मनोरमा और बहन खुशबू ने अदालत को बताया कि पीड़िता के ससुराल वालों ने हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने के कारण उसका अपमान किया। उन्होंने कहा कि वर्षा को पूजा करने के लिए बार-बार अपमानित किया गया और कहा गया कि मूर्ति पूजा वर्जित है। उसने अपने बयान में आगे कहा कि वर्षा ने एक बार उससे फोन पर कहा था कि अगर उसने धर्म परिवर्तन नहीं किया तो वह घर में नहीं रह पाएगी। पुलिस ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अपराध स्थल के साथ छेड़छाड़ की गई है। उन्होंने बताया कि जब पीड़िता को फांसी पर लटका हुआ पाया गया तो उसके शरीर पर संघर्ष के निशान थे।
अदालत ने फैसला सुनाया कि फईम कुरैशी उसकी मौत के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। अदालत ने माना कि उसके कार्यों के कारण, चाहे प्रत्यक्ष शारीरिक क्षति हो या निरंतर मानसिक दुर्व्यवहार, वर्षा की मृत्यु का कारण बना। अदालत ने कहा कि वर्षा ने अपने परिवार को बार-बार अपने साथ हुई क्रूरता के बारे में बताया। इस प्रकार, अदालत ने पाया कि उसकी मृत्यु आकस्मिक नहीं थी बल्कि लगातार दुर्व्यवहार का परिणाम थी। फैसले में कहा गया कि आईपीसी की धारा 304 बी के तहत दोषसिद्धि के लिए आवश्यक तत्व पूरे किए गए थे, क्योंकि वर्षा को “अपनी मृत्यु से पहले” दहेज संबंधी यातनाएं झेलनी पड़ी थीं और दहेज हत्या के मामले की कानूनी आवश्यकता पूरी हुई थी।
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अदालत ने कहा कि हालांकि पीड़िता के परिवार ने इस बात पर जोर दिया कि उसके ससुराल वाले भी समान रूप से जिम्मेदार हैं, लेकिन केवल पारिवारिक रिश्ते के आधार पर किसी को अपराध में स्वतः ही शामिल नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा कि ससुराल वालों ने हिंसा में भाग लिया या उसे भड़काया। कानूनी उदाहरणों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि दहेज हत्या के मामलों में ससुराल वालों के खिलाफ सबूत पेश करने का भार उचित संदेह से परे होना चाहिए। इस मामले में, हालांकि संदेह प्रबल था, लेकिन भौतिक साक्ष्य का अभाव था, जिसके कारण उन्हें बरी कर दिया गया।