फारूक अब्दुल्ला के बदले सुर: पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को ठहराया जिम्मेदार

जो कहते थे पाक ने चूड़ियां नहीं पहनी है, अब वही फारूक अब्दुल्ला मानते हैं पहलगाम हमले के हैंडलर पाकिस्तान में मौजूद

फारूक अब्दुल्ला के बदले सुर: पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को ठहराया जिम्मेदार

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पहलगाम आतंकी हमले ने न केवल देश को दहला दिया, बल्कि उससे भी ज़्यादा चौंकाया उस बयान ने, जो उस नेता के मुंह से निकला, जो अब तक हर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के पक्ष में तर्क देता रहा है। जी हां, बात हो रही है नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला की, जिन्होंने अब खुद स्वीकार किया है कि “इस आतंकी हमले के हैंडलर पाकिस्तान में छुपे बैठे हैं।”

जिन्होंने कभी भारत के सख्त रुख पर तंज कसते हुए कहा था कि “पाक ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं,” अब वही अब्दुल्ला मान रहे हैं कि पाकिस्तान आतंक की जड़ों का गढ़ है। एक समय था जब अब्दुल्ला हर आतंकी घटना को कश्मीर की ‘स्थानीय पीड़ा’ का नतीजा बताते थे, पर अब कह रहे हैं कि “यह हमला मानवता को शर्मसार करने वाला है… इंसानियत का कत्ल हुआ है।”

इस बार की बात कुछ अलग है। हमले में टारगेट किए गए थे निर्दोष पर्यटक, उनसे नाम और धर्म पूछकर गोली मारी गई। यह वह बर्बरता है, जिसे देख फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता की भी अंतरात्मा हिल गई। उन्होंने न सिर्फ हमले की निंदा की, बल्कि खुलकर कहा कि इस तरह की घटनाएं “बिना लोकल मदद के नहीं हो सकतीं” और मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकियों की रिहाई पर अफसोस जताया—”मैंने कहा था मसूद अजहर को मत छोड़िए… इसने मेरे भाई को मारा है।”

प्रधानमंत्री मोदी को लेकर भी उनका रुख बदला हुआ दिखा। जहां पहले वे अक्सर केंद्र सरकार की नीतियों पर कटाक्ष करते थे, अब कह रहे हैं कि “देश पीएम के हाथों में सुरक्षित है। अगर ऐसा नहीं होता, तो वो पीएम नहीं होते।”

सिंधु जल समझौते को लेकर भी अब्दुल्ला ने वह बात कह दी, जो अब तक राष्ट्रवादी खेमे की मांग रही है—”पानी हमारा है… हमें ही इसका पूरा हक मिलना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यह वक्त है कि इस ट्रीटी को दोबारा बातचीत में लाया जाए। जाति जनगणना पर भी अब्दुल्ला का समर्थन सरकार के साथ नजर आया। बोले—”मुसलमानों में भी जाति जनगणना होनी चाहिए… यह दुनिया को दिखाएगा कि भारत कितने रंगों का देश है।”

दरअसल, यह कोई मामूली बयान नहीं है। यह कश्मीर की राजनीति के सबसे बुजुर्ग खिलाड़ी के सुर में आया एक बड़ा मोड़ है। फारूक अब्दुल्ला का यह नया चेहरा उनके पुराने रवैये से कितना टिकाऊ रहेगा, यह तो वक्त बताएगा। पर इतना ज़रूर है कि पहलगाम की खून से सनी वादियों ने एक दबी हुई सच्चाई को ज़ुबान दे दी है—आतंक के बीज वहीं बोए जा रहे हैं, जहां से अब तक बातचीत की बातें होती थीं।

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