बांग्लादेश के पूर्व सैन्य अधिकारी और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के पूर्व महानिदेशक एएलएम फजलुर रहमान के हालिया भड़काऊ बयान ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में अनावश्यक तनाव की आहट बढ़ा दी है। रहमान ने मंगलवार(29 अप्रैल) को अपने फेसबुक पोस्ट में दावा किया कि “यदि भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर के सात राज्यों पर कब्ज़ा कर लेना चाहिए।” यही नहीं, उसने यह भी कहा कि बांग्लादेश को चीन के साथ संयुक्त सैन्य व्यवस्था पर विचार शुरू कर देना चाहिए।
रहमान का यह बयान न केवल उकसावे की श्रेणी में आता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और पड़ोसी देशों के साथ बांग्लादेश के पारंपरिक संतुलन को भी चुनौती देता है। उल्लेखनीय है कि एएलएम फजलुर रहमान इस समय राष्ट्रीय स्वतंत्र जांच आयोग का अध्यक्ष हैं, जो 2009 के पिलखाना नरसंहार जैसे गंभीर मामलों की जांच कर रहा है। उसका मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार से करीबी जुड़ाव भी किसी से छुपा नहीं है।
हालांकि, मोहम्मद यूनुस के कार्यालय ने तुरंत विवाद से पल्ला झाड़ लिया। यूनुस सरकार की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि “फजलुर रहमान की व्यक्तिगत राय से सरकार का कोई संबंध नहीं है और हम भारत जैसे पड़ोसी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का पूर्ण सम्मान करते हैं।” यह सफाई इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि रहमान न केवल सरकार से जुड़े व्यक्ति हैं, बल्कि हाल ही में ऐसे ही विवादित बयान यूनुस सरकार के सलाहकार महफूज आलम द्वारा भी दिए गए थे। उन्होंने विजय दिवस के मौके पर भारत पर कब्जे की धमकी दी थी।
यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता और सहयोग की दिशा में कई सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं। दोनों देश व्यापार, कनेक्टिविटी, और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग में लगातार प्रगति कर रहे हैं। ऐसे में इस तरह के उन्मादी बयान न केवल द्विपक्षीय भरोसे को चोट पहुंचाते हैं, बल्कि बांग्लादेश की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी नुकसान पहुंचाते हैं।
विश्लेषकों की राय में यह बयान एक सुनियोजित ‘सॉफ्ट प्रोपेगेंडा’ का हिस्सा हो सकता है, जिसे भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी दखल के रूप में भी देखा जा सकता है। यह भी अहम है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार केवल बयानबाज़ी से दूरी बनाए रखने के बजाय सार्वजनिक रूप से इन अधिकारियों की जवाबदेही तय करे, ताकि भारत जैसे घनिष्ठ साझेदार देश के साथ रिश्तों पर कोई आँच न आए।
अब देखना यह होगा कि ढाका में सत्ता के गलियारों से इस मुद्दे पर अगला संदेश क्या आता है — खामोशी, कार्रवाई, या एक और ‘डिप्लोमैटिक ड्रामा’?
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