सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा, ”खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि हर व्यक्ति के पास हमेशा इतना भोजन होना चाहिए जो उसकी जरूरतों और पसंद के अनुसार सुरक्षित और पोषणयुक्त हो, ताकि वह स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सके।
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए हैं। ये कार्यक्रम गरीबी कम करने, कुपोषण मिटाने और कृषि क्षेत्र को टिकाऊ बनाने पर केंद्रित हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के तहत करीब 81 करोड़ लोगों को सस्ते दामों पर अनाज दिया जाता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, विकेंद्रीकृत खरीद योजना और ओपन मार्केट सेल स्कीम जैसी योजनाएं हैं जो खाद्य अनाज की कीमतों को स्थिर बनाए रखती हैं और गरीब परिवारों को भूख और कुपोषण से बचाती हैं।
साथ ही, भारत ने गेहूं, दाल, दूध, शहद जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन को भी बढ़ाया है। 2007-08 में शुरू हुई राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन के नाम से जानी जाती है, जो उत्पादन के साथ-साथ पोषण पर भी खास ध्यान देती है।
सरकार ने कहा, ”पिछले एक दशक में भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में करीब 90 मिलियन टन की बढ़ोतरी दर्ज की है। इसी दौरान फल और सब्जियों का उत्पादन भी 64 मिलियन टन से अधिक बढ़ा है।”
सरकार ने आगे कहा, ”वैश्विक स्तर पर भारत दूध और बाजरे के उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है, जबकि मछली, फल और सब्जियों के उत्पादन में दूसरे नंबर पर है। शहद और अंडे का उत्पादन भी 2014 के मुकाबले दोगुना हो गया है। भारत की कृषि निर्यात भी पिछले 11 सालों में लगभग दोगुनी हो चुकी है।”
सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई और योजनाएं भी शुरू की हैं। इनमें
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई), चावल संवर्धन पहल, प्रत्यक्ष लाभार्थी हस्तांतरण (डीबीटी), एकीकृत बाल विकास योजनाएं, पीएम पोषण (पोषण शक्ति निर्माण) योजना, वन नेशन वन राशन कार्ड (ओएनओआरसी), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और खुले बाजार में बिक्री योजना (घरेलू) शामिल हैं।
सरकार का कहना है कि ये सभी प्रयास और योजनाएं भारत की भूख और कुपोषण को खत्म करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करती हैं कि देश के सभी नागरिकों को पर्याप्त और पोषणयुक्त भोजन मिले, जिससे वे स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकें।
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