मुस्लिम सहकर्मियों ने ही इस्तीफा दिलाकर हिंदू युवक को इस्लामी भीड़ के हवाले किया था !

जिहादी भीड ने ऐसे की दीपू चंद्र दास की पीटकर हत्या-शव को पेड़ से लटकाकर जलाया

मुस्लिम सहकर्मियों ने ही इस्तीफा दिलाकर हिंदू युवक को इस्लामी भीड़ के हवाले किया था !

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27 वर्षीय हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की कथित रूप से ईशनिंदा (ब्लास्फेमी) के आरोपों के बाद जिहादी भीड़ ने लिंचिंग कर हत्या की, जिसकी जांच में सामने आया है की यदि फैक्ट्री प्रबंधन समय रहते पुलिस को सूचना दे देता, तो दीपू की जान बच सकती थी। इसके बजाय दीपू चंद्र दास के मुस्लिम सहकर्मियों ने उससे जबरन इस्तीफा दिलवाकर उसे फैक्ट्री से बाहर धकेल दिया और जिहादी भीड़ के हवाले किया। जिहादी भीड़ ने उसे पीट-पीटकर मार डाला, शव को लटकाकर उसे आग लगा दी। हालांकि जांच एजेंसियों ने यह भी माना है की दीपू चंद्र दास ने ऐसे कोई ईशनिंदा करने के कोई सबूत नहीं मिले है।

यह घटना गुरुवार (16 दिसंबर)को मयमनसिंह के भालुका इलाके में एक गारमेंट फैक्ट्री के पास हुई। बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) और पुलिस अधिकारियों के अनुसार, दीपू चंद्र दास को फैक्ट्री के भीतर ही निशाना बनाया गया। आरोप है कि फैक्ट्री के कुछ मुस्लिम सहकर्मियों और अधिकारियों ने न केवल उसे सुरक्षा देने में विफलता दिखाई, बल्कि कथित तौर पर उसे जिहादी भीड़ को सौंपने में भूमिका निभाई।

“घटना शाम करीब 4 बजे शुरू हुई। फैक्ट्री के फ्लोर इन-चार्ज ने उसे जबरन इस्तीफा दिलवाया और उग्र भीड़ के हवाले कर दिया… हमने दो फैक्ट्री अधिकारियों को गिरफ्तार किया है क्योंकि उन्होंने उसे पुलिस को नहीं सौंपा और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की,” RAB-14 के कमांडर नाइमुल हसन ने मयमनसिंह में शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा।

जांच में सामने आया है कि दीपू के खिलाफ लगाए गए ईशनिंदा के आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं मिला। नाइमुल हसन ने कहा, “ईशनिंदा का मुद्दा बेहद अस्पष्ट है। हमने यह जानने की कोशिश की कि उसने वास्तव में क्या कहा था, लेकिन कोई भी स्पष्ट नहीं कर सका।न कोई साक्ष्य पाया गया, न कोई साबुत।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पूर्व शत्रुता या दीपू के खिलाफ साजिश के पहलू की जांच की जा रही है।

मामलें में अब तक 12 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें फैक्ट्री के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं। गिरफ्तार किए गए लोगों में फ्लोर इन-चार्ज मोहम्मद आलमगीर हुसैन, क्वालिटी इन-चार्ज मोहम्मद मिराज हुसैन अकन, और पांच फैक्ट्री वर्कर शामिल हैं। पुलिस ने अलग से तीन अन्य लोगों को भी हिरासत में लिया है। सीसीटीवी फुटेज और वीडियो की समीक्षा के बाद ये गिरफ्तारियां की गईं।

ढाका स्थित अख़बार द डेली स्टार के मुताबिक, शिफ्ट बदलने के समय दूसरी शिफ्ट के कर्मचारी फैक्ट्री के बाहर जमा हो गए और खबर फैलते ही स्थानीय लोग भी जुट गए। “करीब 8:45 बजे, उग्र भीड़ फैक्ट्री का पॉकेट गेट तोड़कर सुरक्षा कक्ष से दीपू को बाहर ले गए,” अख़बार ने वरिष्ठ प्रबंधक के हवाले से रिपोर्ट किया। इसके बाद दीपू को सड़क पर घसीटते हुए ले जाया गया, उसकी बेरहमी से पिटाई की गई,जिसमें उसकी मौत हुई,उसके शव को ढाका–मयमनसिंह हाईवे के डिवाइडर पर लटकाया गया और फिर आग लगा दी गई।

पुलिस ने माना कि सूचना देने में देरी घातक साबित हुई। औद्योगिक पुलिस के एसपी एमडी फरहाद हुसैन खान ने कहा, “मुझे रात करीब 8 बजे घटना की सूचना मिली। हम तुरंत मौके की ओर निकले, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।” उन्होंने बताया, “सड़क पर सैकड़ों लोग थे। जब हम फैक्ट्री गेट पहुंचे, तो देखा कि उग्र भीड़ शव को हाईवे की ओर ले जा रही थी।” उन्होंने यह भी कहा, “बस एक समय पर की गई कॉल दीपू की जान बचा सकती थी।”

फैक्ट्री प्रबंधन ने लापरवाही से इनकार किया है, लेकिन उनके बयान जांच एजेंसियों के निष्कर्षों से मेल नहीं खाते। पायनियर निटवेयर (BD) लिमिटेड के वरिष्ठ प्रबंधक साकिब महमूद ने कहा, “शाम करीब 5 बजे कुछ कर्मचारियों ने दीपू पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए विरोध शुरू किया।” हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि, “आरोपों का कोई सबूत नहीं था।”

दीपू चंद्र दास की तीन साल पहले शादी हुई थी और वह अपने पीछे डेढ़ साल के बच्चे को छोड़ गए हैं। उनके छोटे भाई ओपू चंद्र दास ने कहा, “अगर उसने कुछ कहा भी होता और वह अपराध होता, तो कानूनी रास्ता अपनाया जा सकता था। इसके बजाय उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई। मैं मांग करता हूं कि झूठे आरोप लगाकर उसे मारने वाले आतंकियों को सजा मिले और यह भी देखा जाए कि उसके परिवार का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा।”

यह लिंचिंग उस दिन हुई, जब उसी रात बांग्लादेश में इस्लामवादी हिंसा और दंगे भड़के, जिनमें भारत विरोधी प्रदर्शनों के दौरान भारतीय राजनयिक ठिकानों को भी निशाना बनाया गया। जांच एजेंसियों के संकेतों के अनुसार, दीपू चंद्र दास की हत्या कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि कई घंटों में सुनियोजित ढंग से अंजाम दी गई एक संगठित हिंसा थी, जिसमें फैक्ट्री के भीतर से लेकर बाहर तक फैसलों की एक श्रृंखला शामिल थी।

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