ऑपरेशन सिंदूर ने भले ही जैश-ए-मोहम्मद (JeM) की जड़ों को झकझोर दिया हो, लेकिन अब इस आतंकी संगठन ने अपने खंडहरों से एक नई रणनीति बनाई है, महिलाओं की एक आतंकी शाखा, “जमात-उल-मोमिनात”, जिसकी अगुवाई कर रही है मसूद अज़हर की बहन सादिया अज़हर। सादिया वही महिला हैं जिसने भारत के शुरू किए ऑपेरशन सिंदूर में अपने पति को खोया था।
पहली बार महिलाओं को औपचारिक रूप से संगठन के भीतर आतंक के वैचारिक और रणनीतिक ढांचे में शामिल किया जा रहा है। इसकी घोषणा जैश के प्रचार मंच अल-क़लम मीडिया के जरिए की गई, और यह पाकिस्तान के आतंकवाद नेटवर्क में एक नया मोड़ माना जा रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बहावलपुर में स्थित जैश का मुख्यालय, जामिया मस्जिद सुभान अल्लाह कॉम्प्लेक्स तबाह कर दिया गया था। इसमें मसूद अज़हर के परिवार के 10 लोग मारे गए, जिनमें उसकी मां, बड़ी बहन, बहनोई और कई बच्चे भी मारे गए। बाद में संगठन के वरिष्ठ कमांडर इलियास कश्मीरी ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि “अज़हर का परिवार बहावलपुर में रेज़ा रेज़ा हो गया।”
इसी मलबे से अब जन्म ले रही है जमात-उल-मोमिनात, यह नया आतंकवादी चेहरा शोक और प्रतिशोध के मिश्रण से बना है। सादिया अज़हर की नियुक्ति प्रतीकात्मक होने के साथ ही आतंकवाद में वंशवाद की परंपरा सुनिश्चित कर रही है। जैश की स्थापना से ही यह संगठन एक पारिवारिक साम्राज्य रहा है, अब यह वंशवाद धार्मिक वैचारिक रंग में लिपटा हुआ है, जिससे संगठन की गोपनीयता, निष्ठा और पुनर्जनन क्षमता बनी रहती है।
यह रणनीति नई नहीं है। चेचन्या की ब्लैक विडोज़, श्रीलंका की LTTE ब्लैक टाइगर्स, और ISIS की अल-ख़ंसा ब्रिगेड सभी ने दिखाया है कि कैसे महिलाएं आतंक का मानवीय चेहरा बनकर संगठन की पहुँच और स्वीकार्यता बढ़ाती हैं। जैश का नया कदम इसी पैटर्न की अगली कड़ी है, जहां स्त्रीत्व का प्रयोग सहानुभूति जुटाने और निगरानी से बचने के लिए किया जाता है।
पाकिस्तान के लिए यह और भी चिंताजनक है, क्योंकि उसी देश में जहाँ 5,000 से अधिक महिलाएं सेना में हैं और 2024 में पहली महिला थ्री-स्टार जनरल बनीं, वहीं अब महिलाएं चरमपंथी प्रशिक्षण शिविरों में भी भर्ती की जा रही हैं। विश्व आर्थिक मंच (WEF) की 2025 की जेंडर गैप रिपोर्ट में पाकिस्तान आख़िरी स्थान पर (148वें) रहा, और यही सामाजिक-आर्थिक असमानता अब आतंक के लिए उपजाऊ ज़मीन बनती जा रही है।
भारत के लिए यह विकास बेहद खतरनाक संकेत है। महिला आतंकी नेटवर्क खुफिया एजेंसियों के लिए ब्लाइंड स्पॉट बन सकते हैं। ये धार्मिक समूहों, परिवारों और सामुदायिक दायरों के माध्यम से नई भर्ती श्रृंखला तैयार कर सकते हैं। जैश अब महिलाओं के ज़रिए न केवल हथियार या संदेश पहुंचा सकता है, बल्कि डिजिटल कट्टरपंथ को भी आगे बढ़ा सकता है, जो सोशल मीडिया के जरिए भावनात्मक अपील के माध्यम से युवतियों को प्रभावित करता है।
भारत की आतंक-रोधी नीति को अब इस जेंडर-बेस्ड रैडिकलाइजेशन की नई हकीकत को ध्यान में रखना होगा। यह केवल सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और वैचारिक चुनौती भी है। जहां आतंकवाद अब सिर्फ बंदूक से नहीं, बल्कि विचारों और भावनाओं से भी लड़ा जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर ने जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को भले मिटा दिया हो, लेकिन उसका विचारात्मक पुनर्जन्म महिलाओं के रूप में अब एक नई जंग का संकेत दे रहा है। भारत के लिए यह संघर्ष अब सीमाओं से परे, समाज, शिक्षा और साइबरस्पेस में भी लड़ा जाएगा।
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