मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा लिंग पहचान को “मानसिक विकार” बताने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की मौखिक आलोचना

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा लिंग पहचान को “मानसिक विकार” बताने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की मौखिक आलोचना

Madras High Court verbally criticises National Medical Commission for terming gender identity a "mental disorder"

मद्रास उच्च न्यायालय से न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश ने LGBTQIA+ से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित कई निर्देश जारी किए है। इस बार उन्होंने मौखिक रूप से कहा कि बदलाव लाने के लिए अदालत द्वारा किए गए प्रयासों को नॅशनल मेडिकल कमीशन (NMC) का पाठ्यक्रम नकार देगा। अदालत ने जोर देकर कहा कि LGBTQIA+ समुदाय से संबंधित व्यक्तियों को विकार नहीं कहा जा सकता है और उन्हें प्रकृति ने इस तरह से बनाया है।

दरअसल NMC के पाठ्यक्रम में “जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर” शब्द का उपयोग जारी किया गया है। जिसपर मद्रास उच्च न्यायालय की ओर से टिपण्णी की गई है की “आपने लिंग पहचान विकार शब्द का इस्तेमाल किया है, यह मानसिकता को दर्शाता है।वास्तव में इसे कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अगर आप इसे विकार कहते हैं, तो हर चीज़ विकार है। प्रकृति ने उन्हें इस तरह से बनाया है।”

एनएमसी ने पाठ्यक्रम में शामिल किए गए बदलावों को अदालत के संज्ञान में याचिका द्वारा लाया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने NMC द्वारा अपनाए गए रुख पर गंभीर आपत्ति जताकर कहा कि MNC वस्तुतः अपनी मूल स्थिति पर वापस आ गई है। वकील ने बताया कि NMC द्वारा नियुक्त एक समिति ने 2022 में अपने सुझाव दिए थे, जिसमें सकारात्मक बदलाव लाने की मांग की गई थी।

सुनवाई के दौरान, तमिलनाडु सरकार ने अदालत को सूचित किया कि उसने ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स लोगों के साथ-साथ LGBTQIA+ समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए दो नीतियां प्रस्तावित की हैं।

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न्यायमूर्ति वेंकटेश ने दो अलग-अलग नीतियां बनाने के राज्य के फैसले पर सवाल उठाया और एक समान नीति को लागू करने में किसी भी चुनौती पर रिपोर्ट मांगी। मामले पर अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी। बता दें की, हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति ने एक्सिक्यूटिव निर्देश देते हुए अमेरिका में पुरुष और स्त्री के आलावा किसी और जेंडर को न मानने की घोषणा की है।

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