Mahakumbh​: ​हादसे​ के बाद भी नहीं डिगा आस्था का ज्वार! ​​महाकुंभ​ बना एकता का ​संगम​!

आस्था के जन ज्वार में ​हादसा​ पीछे छूट गया। ​कुछ देर बाद ही ऐसा माहौल बन गया, जैसे वहां कुछ़ हुआ ही न हो​!

Mahakumbh​: ​हादसे​ के बाद भी नहीं डिगा आस्था का ज्वार! ​​महाकुंभ​ बना एकता का ​संगम​!

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​प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर ​अमृत​ स्नान के लिए संगम पर ​हुई​ इतनी बड़ी हादसा ​के बाद ​श्रद्धालुओं के उमड़ते जन सैलाब के आगे अब​ शून्य​ सा दिखाई दे रहा है। आठ लेन वाले अखाड़ा मार्ग से लेकर संगम द्वार तक कुछ देर बाद ही ऐसा माहौल बन गया, जैसे ​इससे पहले वहां कुछ़ हुआ ही न हो।

​बता दें कि मौनी अमावस्या के पर्व पर हुए हादसे के बाद भी आस्था का जन प्रवाह ​बढ़ता​ ही दिखाई दे रहा है| ​​गत​ दिनों पहले आधी रात को ही संगम नोज की सर्क्युलेटिंग एरिया में तिल रखने की जगह नहीं बची।​ देश – विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का जन सैलाब वह चाहे विशाखापत्तनम से लाल मार्ग हो या काली मार्ग या फिर त्रिवेणी मार्ग। हर तरफ से भक्ति की लहरें संगम की ओर उफनाती रहीं।​

​पद्मपुराण में कहा गया है कि आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ… यानी माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में गोचर करते हैं तब संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थों के बराबर पुण्य मिल जाता है। ​​इस अवधि में जो श्रद्धालु प्रयाग में स्नान करते हैं, वह हर तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं। वह चाहे धर्म भीरु सम्राट हर्षवर्धन का दौर रहा हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड। कुंभ में आस्था का यह जन प्रवाह कभी नहीं रुका। ​

संगम की महिमा ही सनातन संस्कृति का गौरव है। कुंभ मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है। यह चेतना स्वत: जागृत होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम तट तक खींच लाती है।​ गांव, कस्बों, शहरों से लोग तीर्थराज की त्रिवेणी की ओर निकल पड़ते हैं।

​प्रयागराज त्रिवेणी की संगम पर आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान, सामान्य जन सब एक हो जाते हैं। सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगा रहे हैं। यहां जातियों का भेद खत्म हो जाता है, संप्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं।​ वहां सिर्फ एक मात्र ध्येय होता है जीवन-मरण से मुक्ति!

इसी तरह कनाडा से क्रियायोग आश्रम के शिविर में पहुंचकर कल्पवास कर रहीं श्रीमा मालिनी, डेविन, लिंडा गैल कहती हैं कि​ महाकुंभ एकता का महायज्ञ बन गया है। इसमें हर तरह के भेदभाव की आहुति दे दी जाती है।

यहां संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अद्भुत तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है।​ इस महाकुंभ के दौरान करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। उनकी भाषा अलग है, जातियां अलग हैं। मान्यताएं अलग है, लेकिन संगम नगरी में आकर वो सब एक हो गए हैं ​|​

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