केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच जारी तकरार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों दिल्ली के सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अपने फैसले में दिल्ली के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिया था। जिसको अब मोदी सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर उसे बदल दिया है। साथ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई है।
दरअसल केंद्र सरकार ने शुक्रवार को पहली बार एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के लिए अध्यादेश को लाई है। इसके तहत यह प्राधिकरण तबादला पोस्टिंग और विजिलेंस का कार्य देखेगा। अध्यादेश के मुताबिक़ राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इसमें दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे। जबकि, मुख्यमंत्री राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष होगें। बहुमत के आधार पर राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का फैसला होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि अगर किसी अधिकारी पर प्राधिकरण का बहुमत से फैसला नहीं होता है तो उस दिल्ली के उपराज्यपाल फैसला लेने के लिए स्वत्रंत होंगे। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि उपराज्यपाल निर्णय अंतिम होगा।
बता दे कि पिछले दिनों 11 मई को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अपना फैसला दिल्ली सरकार यानी अरविंद केजरीवाल के पक्ष में सुनाया था। कोर्ट ने अपने 105 पन्नों के फैसले में दिल्ली सरकार को अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार दिया था। इसके बाद दिल्ली की सरकार ने कई बड़े फैसले लेते हुए अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले किये थे। अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते इसके खिलाफ एक अध्यादेश लाया है
जिस पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच टकराव बढ़ गया है। केजरीवाल ने इस अध्यादेश के खिलाफ सड़क पर उतरने का फैसला किया है। आने वाले समय में दोनों टकराव बढ़ना तय है।
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