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Friday, April 25, 2025
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नई दिल्ली: ​राना ने वकीलों से पूछा, ‘मुकदमा एक साल में खत्म हो जाएगा?’

"फिफ्थ का हवाला देना" यानी अमेरिकी संविधान के पांचवें संशोधन का उपयोग करना, जिसका मतलब है ऐसे किसी भी सवाल का जवाब न देना जिससे खुद के खिलाफ सबूत बन सकता हो।

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गुरुवार रात जब तहव्वुर राना ने अपने वकीलों से यह पूछा कि क्या उनका मुकदमा एक साल में निपट जाएगा, और जवाब “नहीं” मिला, तो उनके चेहरे पर चिंता की लहर सी दौड़ गई| ऐसा सूत्रों ने बताया। वकीलों ने उन्हें बताया कि केवल आरोप पत्र दाखिल करने में ही एक साल तक का समय लग सकता है, और पूरी सुनवाई अगर तेज़ी से भी हो​गी,​ तब पर भी पांच से दस साल तक चल सकती है।

भारतीय न्याय प्रणाली की धीमी गति को समझते हुए राना ने पूछा कि क्या वह “फिफ्थ” का हवाला दे सकते हैं। इस पर उनके वकीलों ने बताया कि भारतीय कानून में भी आत्म-पारदर्शिता से बचाव (self-incrimination) का अधिकार मौजूद है। “फिफ्थ का हवाला देना” यानी अमेरिकी संविधान के पांचवें संशोधन का उपयोग करना, जिसका मतलब है ऐसे किसी भी सवाल का जवाब न देना जिससे खुद के खिलाफ सबूत बन सकता हो।

सूत्रों के अनुसार, वकीलों ने बताया कि सिर्फ आरोप पत्र दाखिल करने में ही एक साल लग सकता है और यदि मामला तेजी से भी चले तो पूरी सुनवाई में 5 से 10 साल लग सकते हैं।

जब राना को भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति की झलक मिली, तो उन्होंने पूछा कि क्या वह “प्लीड द फिफ्थ” कर सकते हैं। इस पर वकीलों ने समझाया कि भारतीय कानूनों में भी आत्म-आरोपण से सुरक्षा का प्रावधान है। “प्लीडिंग द फिफ्थ” यानी अमेरिकी संविधान के पांचवें संशोधन का सहारा लेना, जिसमें व्यक्ति अपने खिलाफ गवाही देने से इनकार कर सकता है।

NIA मुख्यालय में ‘सुसाइड वॉच’ पर रखे गए राना: गुरुवार रात लगभग 10:30 बजे तहीवुर राना को भारी सुरक्षा के बीच पटियाला हाउस कोर्ट में विशेष न्यायाधीश चंदर जीत सिंह के समक्ष पेश किया गया। ब्राउन जेल यूनिफॉर्म, क्रॉक्स, चश्मा और 4 से 6 इंच लंबी सफेद दाढ़ी तथा सिर के चारों ओर सफेद बालों की झालर में राना बेहद थके और कमजोर नजर आए। उनके लिए दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने अधिवक्ता पीयूष सचदेवा और लक्ष्य धीर को कानूनी सहायता वकील नियुक्त किया था।

हालांकि वह चिंतित नजर नहीं आए, लेकिन उम्रजनित बीमारियों के लक्षण उनके चेहरे पर स्पष्ट थे। पूर्व पाकिस्तानी सेना अधिकारी राना, जिन पर 26/11 मुंबई आतंकी हमले में अहम भूमिका का आरोप है, पेट, आंत और साइनस की गांठों जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं।

NIA की विशेष निगरानी, अदालत में मेडिकल जांच के निर्देश: सूत्रों के अनुसार, राना एक “चतुर और बातचीत में सहज” व्यक्ति प्रतीत हुए। उन्होंने कोर्ट की कार्यवाही से पहले एनआईए कर्मियों द्वारा पेश किए गए फल लेने से इनकार कर दिया, लेकिन उनसे आराम से बातचीत की। सरकार और एनआईए इस मामले को “मॉडल केस” बनाना चाहती हैं, इसलिए कोई भी लापरवाही नहीं बरती जा रही।

राना का मुख्य मुद्दा, खुद को निर्दोष बताते हुए, चिकित्सा सुविधा और यह तर्क था कि उन्होंने पहले ही एक दशक से ज्यादा जेल में बिताया है और अमेरिका में इस मामले में “बरी” हो चुके हैं, इसलिए प्रत्यर्पण की आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने आदेश दिया कि राना की हर 48 घंटे में मेडिकल जांच हो।

सुनवाई और हिरासत: 2011 में अमेरिकी अदालत ने उन्हें मुंबई आतंकी हमलों में साजिश रचने के आरोप से बरी कर दिया था। अब भारत में एनआईए ने अदालत से 20 दिन की हिरासत मांगी, लेकिन 18 दिन की हिरासत मंजूर की गई। एनआईए ने यह आशंका जताई कि राना 26/11 जैसे आतंकी हमलों की योजना दोबारा बना सकता है।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि राना अपने वकील से हर दूसरे दिन मिल सकते हैं, केवल सॉफ्ट-टिप पेन का ही प्रयोग करें, और यह मुलाकात एनआईए की निगरानी में और उनकी सुनवाई सीमा के भीतर होनी चाहिए।

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