मेलबर्न में श्री स्वामीनारायण मंदिर और अन्य स्थानों पर हुई नस्लीय टिप्पणियों और हमलों से यह स्पष्ट होता है कि ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रगतिशील लोकतंत्र में भी नस्लीय नफरत की भावना अब भी ज़िंदा है। यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि बहुसांस्कृतिक सह अस्तित्व पर भी एक गंभीर प्रहार है।
स्वामीनारायण मंदिर पर हमला न केवल एक संरचना पर आघात है, बल्कि यह पूरी भारतीय और विशेषकर हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत करता है। मंदिर किसी भी धर्म का हो, वह शांति और समरसता का स्थान होता है।
‘गो होम ब्राउन…’ जैसी भाषा यह दर्शाती है कि नस्लीय सोच किस कदर गहराई तक फैली हुई है। दो एशियाई रेस्टोरेंट और एक हीलिंग सेंटर को भी निशाना बनाया जाना इस बात का प्रमाण है कि यह सुनियोजित रूप से अल्पसंख्यकों को डराने की कोशिश है।
विक्टोरिया की मुख्यमंत्री जैसिंटा एलन द्वारा सार्वजनिक तौर पर इस घटना की निंदा न किया जाना निराशाजनक है, हालांकि उनके कार्यालय ने निजी तौर पर मंदिर प्रशासन से सहानुभूति जताई है। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए ऐसे मामलों में सरकार की सार्वजनिक प्रतिक्रिया अत्यंत आवश्यक होती है।
23 वर्षीय भारतीय युवक पर जानलेवा हमला यह दर्शाता है कि नस्लीय हिंसा केवल दीवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अब सड़कों तक आ पहुंची है। यह भारत समेत समस्त अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय है।
सरकार को न केवल इन घटनाओं की कड़ी निंदा करनी चाहिए, बल्कि दोषियों की शीघ्र गिरफ्तारी और सज़ा सुनिश्चित करनी चाहिए। विदेश मंत्रालय को यह मुद्दा कूटनीतिक स्तर पर उठाना चाहिए ताकि भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
ऐसे मामलों पर संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों को भी ऑस्ट्रेलिया से जवाबदेही की मांग करनी चाहिए। ‘सिटी ऑफ ग्रेटर नॉक्स’ जैसे स्थानीय निकायों का समर्थन सराहनीय है। यह दर्शाता है कि नस्लवाद के खिलाफ खड़े होने वाले लोग भी कम नहीं हैं।
मेलबर्न की यह घटना अकेली नहीं है| यह उस गहरी जड़ तक फैली नस्लीय सोच का प्रतीक है, जिसे समाप्त करने के लिए कानून, समुदाय, सरकार और अंतरराष्ट्रीय दबाव सभी की भूमिका जरूरी है। भारतीय समुदाय को एकजुट होकर, शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त तरीके से अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।
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