रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की अधिकतमवादी शर्तों को दोहराया है। उन्होंने मंगलवार को कहा कि जब तक रूस की सुरक्षा हितों की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक किसी भी दीर्घकालिक समझौते की संभावना नहीं है। लावरोव ने रूसी राज्य मीडिया से बातचीत में कहा, “रूस की सुरक्षा हितों, रूसियों और यूक्रेन में रहने वाले रूसी भाषी लोगों के अधिकारों का सम्मान किए बिना किसी दीर्घकालिक समझौते की बात नहीं की जा सकती।”
लावरोव ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने रूसी भाषा पर प्रतिबंध लगा दिया है और युद्ध को रूसी भाषी आबादी की स्थिति का जवाब बताया। हालांकि, वास्तविकता यह है कि रूस 2014 से अब तक क्रीमिया और चार अन्य यूक्रेनी प्रांतों का अवैध रूप से विलय कर चुका है।
डोनबास क्षेत्र में रूसी भाषियों के कथित उत्पीड़न का हवाला रूस ने 2014 और 2022 के आक्रमणों के लिए आधार बनाया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी 2022 को युद्ध की घोषणा करते हुए कहा था,“हमें उस अत्याचार, उस जनसंहार को रोकना पड़ा, जिसका सामना लाखों लोग आठ वर्षों से कर रहे हैं और जिन्होंने रूस से मदद की उम्मीद की थी।” रूस की अधिकतमवादी मांगों में से एक है कि रूसी भाषा को यूक्रेन की आधिकारिक भाषा घोषित किया जाए। वर्तमान में यूक्रेन की एकमात्र आधिकारिक भाषा यूक्रेनी है।
इसके अलावा रूस ने मांग रखी है कि यूक्रेनियन ऑर्थोडॉक्स चर्च–मॉस्को पैट्रिआर्केट (UOC-MP) को बहाल किया जाए। यह संस्थान रूस से जुड़े होने के कारण पिछले वर्ष प्रतिबंधित कर दिया गया था। रूस ने पहले भी डिनाज़ीफिकेशन की मांग रखते हुए यूक्रेन के संविधान में बदलाव और राष्ट्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध की शर्त जोड़ी थी।
कीव का कहना है कि रूस की ये सभी शर्तें सिर्फ बहाने हैं, जिनका उद्देश्य यूक्रेन की राष्ट्रीय पहचान को कमजोर करना और उसे रूसी प्रभाव में ढालना है। विश्लेषकों का मानना है कि भाषा, संस्कृति और धार्मिक संस्थानों से जुड़ी शर्तों पर रूस की जिद दिखाती है कि मास्को युद्ध को केवल क्षेत्रीय कब्ज़े से आगे बढ़ाकर यूक्रेन की राजनीतिक-सांस्कृतिक संरचना बदलने का प्रयास कर रहा है।
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