सूडान में चल रहे भीषण गृहयुद्ध के बीच एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है। अर्धसैनिक संगठन रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के नेतृत्व वाले एक राजनीतिक गठबंधन ने देश में एक समानांतर सरकार के गठन की घोषणा कर दी है। इस कदम ने पहले से ही हिंसा और अराजकता की आग में झुलस रहे सूडान को स्थायी विभाजन की ओर धकेलने की आशंका को और बल दिया है।
गठबंधन के प्रवक्ता अला अल दीन नुगुद ने टेलीग्राम पर जारी एक टेलीविज़न बयान में कहा, “सूडान संस्थापक गठबंधन ने मोहम्मद हसन अल-ताइशी को शांति सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर सहमति जताई है।”
चीनी समाचार एजेंसी के अनुसार, इस नई सरकार में आरएसएफ प्रमुख मोहम्मद हमदान डागालो को सर्वोच्च संप्रभु प्राधिकारी और राष्ट्रपति परिषद का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इसके साथ ही, विद्रोही संगठन सूडान पीपुल्स लिबरेशन मूवमेंट-नॉर्थ (SPLM-N) के नेता अब्देलअज़ीज़ आदम अल-हिलू को राष्ट्रपति परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया है।
इस समानांतर सरकार में आरएसएफ को 42%, SPLM-N को 33%, और शेष 25% अन्य सहयोगी गुटों के बीच बांटे गए हैं। इस नए सत्ता समीकरण ने सूडान के राजनीतिक और भौगोलिक ताने-बाने को हिला कर रख दिया है।
राजनीतिक विश्लेषक अब्दुल-खालिक महजूब ने इस घटनाक्रम को देश के लिए बेहद खतरनाक करार देते हुए कहा, “दो समानांतर सरकारों का अस्तित्व देश को स्थायी विभाजन की ओर ले जा सकता है। सूडान पहले से ही गंभीर राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है, ऐसे में यह कदम संकट को और गहरा कर देगा।”
गौरतलब है कि फरवरी 2025 में आरएसएफ और कई अन्य राजनीतिक-सशस्त्र गुटों ने मिलकर एक संस्थापक चार्टर पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने इस समानांतर सरकार की आधारशिला रखी थी। उस वक्त से ही इसके गठन की संभावनाएं जताई जा रही थीं। फिलहाल आरएसएफ का नियंत्रण पश्चिमी सूडान के दारफुर और कोर्डोफन क्षेत्र के कई हिस्सों पर है, जबकि सूडानी सेना अब भी राजधानी खार्तूम और देश के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्रों में सक्रिय है।
यह संघर्ष अप्रैल 2023 में शुरू हुआ था, जब सूडानी सेना और आरएसएफ के बीच सत्ता को लेकर खुला टकराव शुरू हुआ। तब से अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं, और लाखों विस्थापित हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया के सबसे भीषण मानवीय संकटों में से एक बताया है।
समानांतर सरकार की यह घोषणा सूडान को शांति से और अधिक दूर ले जाती दिख रही है, और यह आशंका बलवती हो रही है कि अगर जल्द ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो सूडान लीबिया या यमन जैसे स्थायी रूप से विभाजित राष्ट्रों की राह पर चल पड़ेगा।
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