‘कुछ’ बनने की लगन: मुंबई की झुग्गी बस्ती से पहुंचाया कैलिफोर्निया 

सरिता के अनुसार, 'पिता हमसे कहते थे, अगर हम नहीं पढ़ेंगे तो हमारा पूरा जीवन खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करने और भोजन की व्यवस्था करने में बीत जाएगा| 

‘कुछ’ बनने की लगन: मुंबई की झुग्गी बस्ती से पहुंचाया कैलिफोर्निया 

सरिता माली की कहानी किसी परिकथा जैसी लग सकती है| सरिता मुंबई की झोपड़पट्टी में पैदा हुई, नगर निगम के स्कूल में पढ़ीं और फिर सड़कों पर ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने के लिए गाड़ियों के पीछे दौड़ती रही, लेकिन कुछ बनने का सपना हमेशा उसकी आंखों में समाया रहा|

फेसबुक पोस्ट में सरिता माली ने अपने संघर्षों की दास्तां शेयर की है| उन्होंने लिखा कि, ‘अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में मेरा चयन हुआ है- यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन| मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है| मुझे इस यूनिवर्सिटी ने मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक ‘चांसलर फ़ेलोशिप’ दी है| ‘

सड़क पर फूल बेचते हुए भी सरिता को उनके पापा समझाते थे कि पढ़ाई ही सभी भाई-बहनों को इस श्राप से मुक्ति दिला सकती है| सरिता के अनुसार, ‘पिता हमसे कहते थे, अगर हम नहीं पढ़ेंगे तो हमारा पूरा जीवन खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करने और भोजन की व्यवस्था करने में बीत जाएगा|

जेएनयू में पढ़ाई करना भी सरिता के जीवन की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा थी, ‘उस समय नहीं पता था कि जेएनयू क्या है, लेकिन ये ‘कुछ’ बनने के लिए मैंने बारहवीं में ही ठान लिया कि मुझे जेएनयू में ही दाखिला लेना है’ और तीन साल की मेहनत के बाद उनका हिंदी एमए प्रथम वर्ष में दाखिला हो गया|

सरिता कहती हैं कि जेएनयू में दाखिला उनकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसके लिए उन्होंने तीन साल तक मेहनत की थी| सरिता दिल्ली के जेएनयू के अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति को अपने व्यक्तित्व को गढ़ने का श्रेय देती है|

वह कहती हैं कि, ‘जेएनयू ने मुझे सबसे पहले इंसान बनाया| जेएनयू ने मुझे वह इंसान बनाया, जो समाज में व्याप्त हर तरह के शोषण के खिलाफ बोल सके| मैं बेहद उत्साहित हूं कि जेएनयू ने अब तक जो कुछ सिखाया उसे आगे अपने शोध के माध्यम से पूरे विश्व को देने का एक मौका मुझे मिला है|

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