पूर्व वरिष्ठ भारतीय राजनयिक महेश सचदेव ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा आवेदन पर सालाना 1 लाख अमेरिकी डॉलर शुल्क लगाने की घोषणा को “दोधारी तलवार” करार दिया है। उनका कहना है कि यह फैसला जहां अमेरिका की आईटी इनोवेशन क्षमता को कमजोर कर सकता है, वहीं भारत की आईटी कंपनियों पर भी बड़ा असर डालेगा, हालांकि इससे आउटसोर्सिंग और स्थानीय भर्ती रणनीतियों को बढ़ावा भी मिल सकता है।
ट्रंप ने शुक्रवार (19 सितंबर)को “रिस्ट्रिक्शन ऑन एंट्री ऑफ सर्टेन नॉनइमिग्रेंट वर्कर्स” शीर्षक से एक राष्ट्रपति घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत 21 सितंबर से अमेरिका के बाहर से आने वाले एच-1बी वीज़ा धारकों के लिए नियोक्ताओं को सालाना 1 लाख डॉलर फीस चुकानी होगी। तीन साल की अवधि में यह फीस 3 लाख डॉलर तक पहुंच सकती है। व्हाइट हाउस का तर्क है कि एच-1बी प्रोग्राम का दुरुपयोग आईटी आउटसोर्सिंग कंपनियां कर रही हैं, जो अमेरिकी कामगारों को विस्थापित करने और वेतन दबाने का कारण बन रही हैं।
महेश सचदेव ने कहा, “मुझे यह फैसला दोधारी तलवार जैसा लगता है। एक ओर यह कदम ट्रंप के MAGA समर्थकों को खुश करने के लिए है, जहां अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि विदेशी लोग अमेरिका के अच्छे-खासे रोजगार छीन रहे हैं। लेकिन यह कभी स्पष्ट नहीं किया जाता कि एच-1बी धारकों को कम वेतन, अधिक दक्षता या पेशेवराना क्षमता की वजह से नियुक्त किया गया है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका जैसे प्रतिस्पर्धी और इनोवेटिव देश के लिए यह कदम उल्टा पड़ सकता है। उन्होंने कहा, “अमेरिका को आईटी और नई तकनीक के क्षेत्र में प्रतिभा की जरूरत है। इस तरह की पाबंदियों से अमेरिकी आईटी उद्योग को ही नुकसान पहुंचेगा।”
भारत पर प्रभाव का ज़िक्र करते हुए सचदेव ने कहा कि भारतीय कंपनियां एच-1बी वीज़ा योजना की सबसे बड़ी लाभार्थी रही हैं। “पिछले साल कुल एच-1बी लाभार्थियों में से 71 फीसदी भारतीय पासपोर्ट धारक थे। यह फैसला भारत की उन आईटी कंपनियों को प्रभावित कर सकता है जिनका सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है।”
उन्होंने भारतीय कंपनियों के लिए रणनीतियां भी सुझाईं। उनके अनुसार, महंगी वीज़ा फीस से बचने के लिए अमेरिका से काम भारत को आउटसोर्स किया जा सकता है। वहीं, अमेरिका में पहले से मौजूद भारतीय मूल के पेशेवरों या स्थानीय अमेरिकी नागरिकों और अन्य विदेशी नागरिकों की भर्ती को बढ़ावा दिया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने यह भी संभावना जताई कि इस फैसले को न्यायिक समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि यह अमेरिकी सरकार की शक्तियों के दायरे में फिट नहीं बैठता।
अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि एच-1बी का मूल उद्देश्य उच्च दक्षता वाले विदेशी टैलेंट को लाना था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल एंट्री-लेवल कम वेतन वाले कर्मचारियों की भर्ती के लिए हो रहा है, जिससे अमेरिकी स्नातकों के रोजगार पर असर पड़ रहा है। इसके अलावा, वीज़ा फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों का हवाला देकर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी बताया गया है।
नए नियमों के तहत नियोक्ताओं को वीज़ा आवेदन के समय फीस भुगतान का सबूत देना होगा। इसकी निगरानी अमेरिकी विदेश मंत्रालय और गृह सुरक्षा विभाग करेंगे। कुछ मामलों में राष्ट्रीय हित को देखते हुए सीमित छूट दी जा सकती है।
यह भी पढ़ें:
तू मेरी पूरी कहानी : महेश भट्ट ने बताया कैसे संवारा सुहृता दास का निर्देशन कौशल!
मोहन यादव सरकार ने वादे पूरे नहीं किए : पटवारी!
ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम की घोषणा!



