सम्राट हर्षवर्धन और राजा जयचंद का साम्राज्य रहे इस जिले का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। यहां समय-समय पर हुई खुदाई के दौरान कई ऐसी नायाब चीजें निकली हैं। पहली से तीसरी सदी के बीच के कुषाण वंश के दौरान का सबसे बड़ा यह घड़ा उनमें से ही एक है। नव निर्मित म्यूजियम में कांच के घेरे में सहेजे गए इस प्राचीन धरोहर घड़े को देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
करीब दो हजार साल पहले कनिष्क के शासन के समय छोटे-बड़े 40 से ज्यादा बर्तन ही नहीं उसके पहले और बाद के गुप्त काल के दौर में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तन भी यहां खुदाई के दौरान मिले हैं। यहां कुषाण वंश से भी पहले यानी 1500 ईसा पूर्व के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि कन्नौज में पेंटेड ग्रे वेयर और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर कल्चर था। जिससे जाहिर है यहां 3500 साल पूर्व भी मानव सभ्यता मौजूद थी।
इतिहास के जानकार एवं राजकीय म्यूजियम के अध्यक्ष दीपक कुमार बताते हैं कि अब तक कहीं भी इससे बड़े और पुराने घड़े होने का सुबूत नहीं मिलता है। काफी शोध के बाद ही इसकी उम्र का आंकलन हो सका था। यह करीब दो हजार साल पहले कुषाण वंश के दौरान 78 ई. से 230 ई. के बीच का है। तब गंगा शहर के करीब गुजरती थीं। तब इसी तरह के घड़ों में पानी सहेजने की परंपरा थी।
पुरातत्व खुदाई से निकले मिट्टी के बर्तनों की सही उम्र पता लगाने के लिए अब थर्मोल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि अपनाई जाती है। पुरातत्व चीजों की उम्र जानने के लिए कार्बन डेटिंग विधि प्रयोग होती थी। अब कार्बन डेटिंग विधि का उपयोग जैविक चीजों में होता है, जबकि थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि का उपयोग पुरातत्व खुदाई में निकले मिट्टी के बर्तनों के लिए होता है।
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