भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई और चीन के गहरे प्रभाव में डूबे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा हाल ही में दिए गए 1 अरब डॉलर के बेलआउट पर अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। पेंटागन के पूर्व सलाहकार और अमेरिकी थिंक टैंक अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो माइकल रुबिन ने इस फैसले को अमेरिकी रणनीति और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की साख के लिए एक बड़ा झटका बताया है।
रुबिन ने वॉशिंगटन एग्जामिनर में लिखे अपने लेख में कहा, “आतंकवाद से ग्रस्त, चीन समर्थक शासन को 1 बिलियन डॉलर जारी करना… सिर्फ पाकिस्तान के बारे में नहीं था; यह आईएमएफ द्वारा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नाक में दम करने के बारे में था।” उनका आरोप है कि यह फैसला उस समय आया जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारत में नागरिकों की हत्या की और ISI से जुड़े अधिकारियों ने उन्हीं आतंकियों के जनाजे में हिस्सा लिया।
पाकिस्तान को IMF से मिली यह वित्तीय सहायता ऐसे समय में दी गई जब हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने पीओके में स्थित आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंक के खिलाफ कड़ा संदेश दिया था। इस सैन्य प्रतिक्रिया के बाद पाकिस्तान ने ड्रोन से जवाबी हमला करने की नाकाम कोशिश की, पर 4 दिनों की झड़पों में उसे पीछे हटना पड़ा।
रुबिन ने कहा कि, “पाकिस्तान युद्धविराम के लिए डरे हुए कुत्ते की तरह भाग रहा था… अपनी दुम पैरों के बीच दबाकर।” उन्होंने इसे पाकिस्तान की कूटनीतिक और सैन्य विफलता बताया।
IMF के फैसले की व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थों की ओर संकेत करते हुए रुबिन ने कहा कि यह पैसा वास्तव में चीन को बेलआउट करने जैसा है। पाकिस्तान पहले से ही चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत 40 अरब डॉलर के कर्ज के नीचे दबा है। रुबिन का दावा है कि IMF का पैसा इन कर्जों को अप्रत्यक्ष रूप से पाटने में मदद करेगा।
रुबिन ने ट्रंप प्रशासन से अपील की कि वह IMF जैसी संस्थाओं में अमेरिका की वित्तीय हिस्सेदारी की समीक्षा करे। उन्होंने याद दिलाया कि 4 फरवरी को ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार विदेश विभाग को अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता और योगदान की समीक्षा 180 दिनों में पूरी करनी है।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “आतंकवादियों के प्रायोजक शायद ही कभी अपने नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता देते हैं।” यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की आंतरिक नीतियों और भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड पर निशाना थी।
इस बयानबाजी से यह स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया की बदलती सामरिक तस्वीर अब सिर्फ भारत-पाकिस्तान तक सीमित नहीं रही। अमेरिका के नीति निर्धारकों के भीतर भी अब यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या वैश्विक संस्थाएं आतंक को पोषित करने वाले देशों को आर्थिक पुरस्कार देकर दरअसल उन्हें और ज्यादा खतरनाक बना रही हैं? भारत के लिए यह वक्त अपनी कूटनीतिक जमीन और मजबूत करने का है, और माइकल रुबिन जैसे नाम इसकी अंतरराष्ट्रीय वैधता को और धार दे रहे हैं।
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