संसद में एक तरफ सरकार वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा करने की योजना बना रही है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में वक्फ बोर्ड ने नया विवाद खड़ा किया है। लखनऊ के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि वाराणसी स्थित 115 साल पुराने उदय प्रताप कॉलेज की जमीन वक्फ की संपत्ति है।
दरसल वर्ष 2018 में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ के सहायक सचिव आले अतीक ने वक्फ अधिनियम 1995 के तहत कॉलेज प्रबंधक को 115 साल पुरानी संस्था के बारे में नोटिस भेजकर दावा किया था कि यूपी कॉलेज के नियंत्रण में छोटी मस्जिद नवाब टोक मजारत हुजरा के नाम से एक मस्जिद है और उसे मुक्त कराया जाना चाहिए। लेकीन कॉलेज के अधिकारियों ने मुस्लिम द्वारा कॉलेज परिसर में यह अवैध निर्माण करने का आरोप लगाया है।
वक्फ बोर्ड के दावों से कॉलेज परिसर में तनाव पैदा हुआ है। छात्रों और कॉलेज बोर्ड ने गुस्सा जाहिर करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू किए है। स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार, उदय प्रताप कॉलेज 20,000 से अधिक छात्रों को शिक्षित करने वाला एक प्रसिद्ध संस्थान है, इस कॉलेज का कुल क्षेत्रफल लगभग 500 एकड़ है। उदय प्रताप डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, रानी मुरार बालिका, राजर्षि शिशु विहार और राजर्षि पब्लिक स्कूल जैसे कई कॉलेज इस क्षेत्र में संचालित होते हैं और हजारों छात्रों को शिक्षित करते हैं।
वक्फ अधिकारियों ने दावा किया कि संपत्ति को सुन्नी बोर्ड कार्यालय में पंजीकृत कराना आवश्यक है तथा उन्होंने कॉलेज अधिकारियों से कहा कि यदि कोई आपत्ति हो तो वे 15 दिनों के भीतर जवाब दें। जवाब में उदय प्रताप शिक्षा समिति के तत्कालीन सचिव यूएन सिन्हा ने नोटिस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना वर्ष 1909 में हुई थी और यह एक सौ साल पुराना संस्थान है, जो आज हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा दे रहा है। इसी के साथ अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि कॉलेज की जमीन एंडोमेंट ट्रस्ट की है और चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट के अनुसार आधार वर्ष के बाद ट्रस्ट की जमीन पर किसी और का मालिकाना हक स्वतः समाप्त हो जाता है।
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आपको बता दें की, कॉलेज की स्थापना राजर्षि उदय प्रताप सिंह जूदेव ने की थी, जिन्होंने सबसे पहले वर्ष 1909 में उदय प्रताप कॉलेज और हिवत क्षत्रिय स्कूल एंडोमेंट ट्रस्ट की स्थापना की थी। 1964 में विश्वविद्यालय के विस्तार के लिए दो साल के लिए उदय प्रताप शिक्षा समिति की स्थापना की गई। साथ ही 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कॉलेज के स्वायत्तता की भी घोषणा की थी। मौजूदा कानूनों के तहत ट्रस्ट की जमीन का अधिग्रहण या बिक्री नहीं की जा सकती। ट्रस्ट का प्रशासन भी उत्तर प्रदेश सरकार के हाथ में है।