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Thursday, December 25, 2025
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भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने पर शी जिनपिंग उतावले क्यों?

राष्ट्रपति शी का संदेश भले ही रिश्ते सुधारने का संकेत दे रहा हो, लेकिन भारत के लिए चीन पर पूरी तरह से भरोसा करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है।

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के साथ संबंधों को सुधारने और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर खासा जोर दे रहे हैं। मंगलवार को भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ पर भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने संदेश में शी ने दोनों देशों के रिश्तों को “ड्रैगन-एलिफेंट टैंगो” करार दिया, जिसका मतलब है कि भारत और चीन को मिलकर संतुलित और सामंजस्यपूर्ण तरीके से आगे बढ़ना चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर शी जिनपिंग इस समय भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने को लेकर इतने उत्सुक क्यों दिख रहे हैं?

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, राष्ट्रपति शी ने भारत-चीन संबंधों को आपसी उपलब्धि का सही विकल्प बताया और 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद भी संबंधों में आई दरार को भरने की बात कही। उन्होंने कहा कि सीमा पर शांति बनाए रखना और वैश्विक स्तर पर सहयोग बढ़ाना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।

शी जिनपिंग का यह बयान ऐसे समय आया है जब चीन कई वैश्विक मोर्चों पर दबाव झेल रहा है। अमेरिका और यूरोप की कड़ी नीतियों के कारण चीन को आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर झटके लगे हैं। ऐसे में, भारत जैसे बड़े बाजार और रणनीतिक साझेदार के साथ संबंध सुधारने की कोशिश चीन की जरूरत भी बन गई है।

भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध भले ही मजबूत रहे हों, लेकिन सीमा विवाद दोनों देशों के बीच एक बड़ी समस्या बना हुआ है। गलवान घाटी संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था, जिसके चलते भारत ने कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और बुनियादी ढांचे पर चीन की भागीदारी को सीमित कर दिया।

हालांकि, हाल के महीनों में चीन ने भारत को लेकर अपने रुख में नरमी दिखाई है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन यह समझ चुका है कि भारत को अनदेखा करना उसकी रणनीतिक और आर्थिक नीति के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

साथ ही आज से भारत पर अमेरिका के टैरिफ लागू होने जा रहें है, जिसके बाद भारत ने भी चीन के FDI निवेश के मार्ग को खोलने पर विचार शुरू किया है। अटकलें लगाई जा रही है की अमेरिका अपनी आर्थिक नीतिओं में सख्त रहता है तो बह भारत को भी न चाहते हुए, चीन को प्राथमिकता देनी होगी, जिसे देखकर चीन भारत की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर चूका है।

राष्ट्रपति शी का संदेश भले ही रिश्ते सुधारने का संकेत दे रहा हो, लेकिन भारत के लिए चीन पर पूरी तरह से भरोसा करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। सीमा पर शांति को लेकर कई बार चीन की कथनी और करनी में फर्क देखा गया है।भारतीय विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि शी जिनपिंग का यह ‘शांति संदेश’ किसी नई रणनीतिक चाल का हिस्सा भी हो सकता है। चीन भारत के साथ बेहतर रिश्ते चाहता है, लेकिन उसकी मंशा पर पूरी तरह से भरोसा करना जल्दबाजी होगी।

अब देखना यह होगा कि यह “ड्रैगन-एलिफेंट टैंगो” वाकई भारत और चीन के रिश्तों में सुधार लाता है या फिर यह केवल चीन की कूटनीतिक चाल साबित होता है।

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