बिहार में नीतीश कुमार के बाद अब इंडिया गठबंधन को यूपी राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी झटका दे सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी ने जयंत चौधरी को 4 से 5 लोकसभा सीट देने का ऑफर दिया है। माना जा रहा है कि चौधरी देर सबेर बीजेपी समर्थित एनडीए का दामन थाम सकते हैं। हालांकि, सपा नेता शिवपाल यादव ने इसे अफवाह बताया है और कहा कि जयंत चौधरी इंडिया गठबंधन के साथ ही रहकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
बहरहाल, इसमें कितनी सच्चाई है यह समय बताएगा। पर सवाल यही है कि समाजवादी पार्टी और रालोद में सीट शेयरिंग पर बात हो चुकी है। जयंत चौधरी को सपा की ओर से सात सीटें देने का वादा किया गया है। इसके बावजूद चौधरी बीजेपी के 4 से 5 सीट देने पर राजी क्यों हुए। यह बड़ा सवाल सभी के लिए सिरदर्द बना हुआ है। तो सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि जयंत चौधरी अपना भविष्य एनडीए में देख रहे हैं, इंडिया में नहीं है। उसका पहला कारण यह है कि उन्हें अखिलेश यादव ने मनचाहा लोकसभा सीट ऑफर नहीं किये हैं। सपा ने रालोद को कैराना , मुजफ्फरनगर और बिजनौर लोकसभा सीट देने का ऑफर दिया है। वहीं, बीजेपी ने जयंत चौधरी को कैराना, बागपत मथुरा और अमरोह लोकसभा सीट देने का ऑफर किया है। लेकिन सपा ने दो सीट को अभी तक क्लियर नहीं किया है कि कौन सी सीट रालोद को दी जाएगी।
सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना प्रभुत्व रखने वाले जयंत चौधरी का और उनकी पार्टी दोनों का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है। दो लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी की पार्टी रालोद एक भी सीट नहीं जीत पाई है। इस बात को लेकर चौधरी ज्यादा फिक्रमंद हैं। अब उनकी पार्टी का राज्य का दर्जा भी छीनने की कगार पर है। जयंत चौधरी का मानना है कि अगर उनकी पार्टी बीजेपी के साथ जाती है तो वह अपना अस्तित्व बचा सकती है।
2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने सपा बसपा के साथ गठबंधन किया था और तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। खुद जयंत चौधरी बागपत से चुनाव लड़ा था, जो उनकी पुश्तैनी सीट है। उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार डॉक्टर सतपाल मलिक ने हरा दिया था। दूसरी सीट मथुरा से रालोद उम्मीदवार कुंवर नरेंद्र सिंह ने बीजेपी नेता और अभिनेत्री हेमा मालिनी के खिलाफ लड़ा था, जिसमें हेमा मलिनी की जीत हुई थी। तीसरी सीट मुजफ्फरनगर थी। इस सीट पर अजित सिंह ने चुनाव लड़ा था उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार संजीव बालियान ने हराया था। यानी रालोद ने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन शून्य रहा,जबकि बसपा और सपा ने चार-चार सीटें जीती थी। कहा जा सकता है कि जयंत चौधरी को सपा का साथ नहीं चमका सका।
अब अगर बात, 2014 की करें तो रालोद ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2014 में मोदी लहर थी और रालोद ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतारा था। जिनमें मथुरा के खुद जयंत चौधरी ने अपनी किस्मत आजमाई थी। बागपत से अजित सिंह, अमरोह से राकेश टिकैत, बिजनौर से अभिनेत्री जयाप्रदा, बुलंदशहर से अंजू उर्फ़ मुस्कान, फतेहपुर सीकरी से अमर सिंह, हाथरस से निरंजन सिंह धनगर, कैराना से करतार सिंह भड़ाना चुनावी मैदान में थे। लेकिन किसी भी उमीदवार को जीत नसीब नहीं हुई थी।
ये आंकड़ा बताता है कि रालोद की तीसरी मोदी और राम लहर में भी जीत नसीब नहीं होने वाली है। यही वजह है कि जयंत चौधरी अपना गुणा गणित लगाकर बीजेपी के साथ जाने को तैयार दिख रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश की 27 सीटों पर जाट और मुस्लिम मतदताओं का वर्चस्व है। बताया जा रहा है कि बीजेपी ने जिन चार से पांच सीटों का ऑफर दिया है उस पर रालोद की जीत निश्चित मानी जा रही है। 2017, 2019 और 2022 में जाट वोट बंट गया था। बताया जा रहा है कि रालोद की हार को देखते हुए जाट वोटर बीजेपी को अपना मत देते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद को मात्र .90 फीसदी ही वोट मिला था।
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