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Sunday, November 24, 2024
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‘रामपुरी’ को मिली पहचान, चौराहे पर लगाया गया दुनिया का सबसे बड़ा चाकू

रामपुर के कलेक्टर रविंद्र कुमार ने रामपुरी चाकू के उद्योग को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

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1980 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों में इस्तेमाल होने वाला रामपुरी चाकू खलनायक का पसंदीदा हथियार है। तभी से रामपुरी चाकू को प्रसिद्धि मिली। इस चाकू का उत्पादन उत्तर प्रदेश के रामपुर में शुरू हुआ। चाकू की खास बात यह है कि हाथ में बटन दबाते ही चाकू का ब्लेड खुल जाता है। रामपुर से इस चाकू को रामपुरी चाकू का नाम मिला। हालाँकि, 1990 के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने छह इंच से अधिक लंबे ब्लेड वाले चाकुओं पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही चीन से सस्ते में बिकने वाले चाकुओं की संख्या बढ़ने से रामपुरी के चाकू बाजार से गायब हो गए। लेकिन सरकारी नियमों के अधीन इसे एक नई पहचान देने का प्रयास किया गया है।

लेकिन अब रामपुर के कलेक्टर रविंद्र कुमार ने इस उद्योग को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। उन्हीं के प्रयासों से रामपुर में 35 लाख रुपये की लागत से पीतल और स्टेनलेस स्टील से बनी रामपुरी नाइफ की 20 फीट की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिस पर “विश्व का सबसे बड़ा कटार” लिखा हुआ है और इसे ‘चाकू चौक’ नाम दिया गया है।

रामपुर उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर है। शहजाद आलम (50) चार पीढ़ियों से यह धंधा चला रहे हैं। उनका कारोबार 125 साल पुराना है। रामपुर के नवाब मुश्ताक अली खान ने उस्ताद बेच खां को बुलाकर इटालियन सूरा दिखाया और उससे भी ऐसा ही सूरा बनाने को कहा। तब उन्होंने कहा कि मैं इससे अच्छी क्वालिटी का चाकू बना सकता हूं और उसी से रामपुरी चाकू का आविष्कार हुआ। 1980 के दशक में इस चाकू की भारी मांग थी। इसे दूसरे राज्यों में भी बेचा जाता था।

वहां के चाकू बनाने वालों के मुताबिक रामपुर के ज्यादातर लोग दूसरे राज्यों में चाकू का व्यापार करते थे और मेलों में खुलेआम बेचते थे। चाकू बनाने की कई विधियाँ हैं, जिनमें लोहे को पिघलाया जाता है। काँसे के हत्थे की लोहे की सलाखें गलाकर बनाई जाती हैं। यह एक सांचे के आकार का होता है। लेकिन अब चाकू का बाजार खत्म हो गया है। दर्जनों दुकानें अब बंद हो चुकी हैं। अब यह चाकू सिर्फ दो दुकानों में उपलब्ध है।

चाकू बनाने वाले कहते हैं, 400 लोगों को सरकारी मान्यता प्राप्त पहचान पत्र मिलता है जबकि 1000 लोगों को यह अवैध रूप से मिलता है। बोर्ड कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह का कहना है कि हम कोशिश कर रहे हैं कि रामपुरी चाकू की कला को जिंदा रखा जा सके। इसके पैर छह इंच से ज्यादा नहीं होते हैं। इसे उपहार के रूप में बेचा जा सकता है। हम सरकार को समझाने की कोशिश करेंगे कि इन चाकुओं को इस तरह बेचा जाए कि रोजगार मिले।

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