बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चरमपंथी इस्लामी समूहों के दबाव में झुकते हुए सरकारी प्राथमिक स्कूलों में संगीत और शारीरिक शिक्षा (पीटी) शिक्षकों की भर्ती योजना रद्द कर दी है। प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने इस्लामी संगठनों के इस योजना को “ग़ैर-इस्लामी और अप्रासंगिक” बताते हुए सड़कों पर उतरने की धमकी दी थी, जिसके सामने यूनुस सरकार अपना दमखम दिखाने में असफल साबित हुई।
बीडीन्यूज़24 की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के प्राथमिक और जनशिक्षा मंत्रालय ने सोमवार(3 नवंबर) को घोषणा की कि संगीत और शारीरिक शिक्षा के लिए बनाए गए नए पदों को अब नियमों से हटा दिया गया है। मंत्रालय के अधिकारी मसूद अख्तर खान ने बताया, “अगस्त में जारी नियमों में चार श्रेणियों के पद शामिल थे। संशोधन के बाद दो श्रेणियां रखी गई हैं, संगीत और शारीरिक शिक्षा सहायक शिक्षक के पद अब नए नियमों में शामिल नहीं हैं।” जब उनसे पूछा गया कि क्या यह निर्णय धार्मिक दबाव के चलते लिया गया, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, “आप खुद जांच सकते हैं।”
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम तालिबान शासन की नीति की याद दिलाता है, जिसमें अफगानिस्तान के स्कूलों में संगीत शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बांग्लादेश भी अब उसी कट्टरपंथी इस्लाम की दिशा में बढ़ चूका है, जहां शिक्षा पर धार्मिक कठोरता का साया मंडरा रहा है।
पिछले कुछ महीनों से बांग्लादेश के कई इस्लामी संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश, खेलेफत मजलिस और हेफ़ाज़त-ए-इस्लाम ने यूनुस प्रशासन की इस योजना का विरोध किया था। सितंबर में जतिया उलमा मशायेख ऐमा परिषद की एक सभा में इन समूहों ने संगीत और नृत्य शिक्षकों की नियुक्ति को नास्तिक विचारधारा से प्रेरित षड्यंत्र बताया है, जो भविष्य की पीढ़ी को मजहब से दूर करने के उद्देश्य से लाया गया है।
सभा में इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश के प्रमुख सैयद रेज़ाउल करीम ने कहा था,“जब हम बच्चे थे, तो हिंदू और मुस्लिम छात्रों के लिए अलग-अलग धार्मिक शिक्षक होते थे। अब संगीत शिक्षक क्यों? वे क्या सिखाएंगे? आप हमारे बच्चों को बिगाड़ना चाहते हैं? हम इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।” रेजाउल करीम ने कहा यदि सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो मजहब प्रेमी लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब यूनुस सरकार ने इस्लामी दबाव के आगे झुकाव दिखाया हो। कुछ महीने पहले, महिलाओं के अधिकारों पर बनी सुधार समिति को लेकर भी इस्लामी संगठनों ने विरोध किया था। एक समूह ने धमकी दी थी कि “अंतरिम सरकार के नेताओं को भागने का भी मौका नहीं मिलेगा।”
2024 में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान, जब हिंसा भड़क गई थी, तब उसी माहौल में शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा और यूनुस को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया। अब, एक साल बाद, उनकी सरकार का यह नया निर्णय दर्शाता है कि कैसे इस्लामी कट्टरपंथियों ने नीति निर्धारण पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला बांग्लादेश की सांस्कृतिक बहुलता और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली के लिए झटका है। यूनुस सरकार का यह कदम संकेत देता है कि देश अब कट्टर धार्मिक दबाव के हाथों में दिया गया है और इतिहास के अपने उदार और समावेशी ढांचे से दूर हो चूका है।
जहां एक ओर शेख हसीना के शासनकाल में इस्लामी समूहों पर नियंत्रण था, वहीं अब इस्लामी चरमपंथी खुलेआम शिक्षा और सामाजिक नीतियों पर प्रभाव डाल रहे हैं।
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