क्या आपने हाल ही में किसी का फोन नंबर याद करने में दिक्कत महसूस की है? या कभी सोचा है कि पहले जो बातें बिना लिखे याद रह जाती थीं, अब वो नोटिफिकेशन के बिना याद ही नहीं आतीं? विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल फोन हमारी याददाश्त को धीरे-धीरे कमज़ोर कर रहे हैं—और यह बदलाव जितना चुपचाप हो रहा है, उतना ही खतरनाक भी है।
ब्रिटेन में किए गए एक ताज़ा शोध के मुताबिक़, 40% से ज़्यादा लोग अब अपने नज़दीकी लोगों का नंबर याद नहीं रख पाते। यही नहीं, हर तीसरा युवा यह मानता है कि अगर उनका मोबाइल खो जाए, तो उनकी ज़िंदगी रुक जाएगी। विशेषज्ञ इसे “Digital Amnesia” कहते हैं—एक ऐसी स्थिति जहां इंसान छोटी-बड़ी जानकारियों को दिमाग़ में रखने के बजाय अपने मोबाइल पर छोड़ देता है।
भारत जैसे देश में जहां स्मार्टफोन की पहुंच तेज़ी से बढ़ी है, वहां यह बदलाव और भी गहरा हो गया है। दिल्ली के एक निजी कॉलेज में कराए गए सर्वे में सामने आया कि 78% छात्र रोज़मर्रा की जानकारियां—जैसे पासवर्ड, शेड्यूल, नोट्स, बर्थडे—दिमाग़ में नहीं बल्कि फोन पर याद रखते हैं।
दिल्ली यूनिवर्सिटी की मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. सुरभि गोयल कहती हैं, “हमारा दिमाग़ भी एक मांसपेशी की तरह है। जब हम उसे इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं, तो वह धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने लगता है। मोबाइल ने हमारी सोचने और याद रखने की क्षमता को कमज़ोर कर दिया है।”
जब हम कुछ जानकारियां याद करने के बजाय उन्हें मोबाइल पर सेव कर लेते हैं, तो हमारा दिमाग़ ‘ऑटो सेव मोड’ में चला जाता है। इससे हमारी short-term memory और cognitive recall दोनों प्रभावित होती हैं। दिमाग़ जानता है कि उसे जानकारी दोबारा नहीं निकालनी, इसलिए वह उसे गहराई से प्रोसेस नहीं करता। यही आदत लंबे समय में हमारी याददाश्त की क्षमता को धीमा कर देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस डिजिटल निर्भरता से बाहर निकलने के लिए हमें अपनी आदतों में छोटे-छोटे लेकिन असरदार बदलाव करने होंगे। सबसे पहला कदम है—दिन के कुछ घंटे मोबाइल से पूरी तरह दूरी बनाना। जैसे सुबह उठने के बाद कम से कम एक घंटे तक फोन न छूना, जिसे ‘नो फोन मॉर्निंग’ कहा जा सकता है। इसके अलावा, जिन बातों को हम आमतौर पर मोबाइल पर दर्ज कर लेते हैं—जैसे टू-डू लिस्ट, रास्ते की दिशा, या किसी का नाम—उन्हें जान-बूझकर याद रखने की कोशिश करें। इससे दिमाग़ की सक्रियता बनी रहती है और याद रखने की क्षमता तेज़ होती है।
साथ ही, ध्यान और मेडिटेशन जैसे अभ्यासों को अपनी दिनचर्या में शामिल करना भी बेहद लाभकारी हो सकता है। ये न केवल मानसिक शांति प्रदान करते हैं बल्कि दिमाग को स्थिर और केंद्रित रखने में भी मदद करते हैं।
मोबाइल फोन हमारी ज़िंदगी को आसान बना रहा है, लेकिन याददाश्त की कीमत पर नहीं। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी ही ज़िंदगी की अहम जानकारियां दूसरों के भरोसे छोड़ देंगे—या फिर नोटिफिकेशन की घंटियों पर निर्भर रहेंगे।
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