उम्र के साथ धीमें होते दिमाग को अब बदला जा सकता है, इसके लिए जीवनशैली में बदलाव वाली एक प्रक्रिया है—ऐसा मानना है वैज्ञानिकों का। वैज्ञानिकों ने दो साल की एक व्यापक स्टडी के बाद पाया कि व्यवस्थित जीवनशैली परिवर्तन, जैसे संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और मस्तिष्क प्रशिक्षण, न केवल स्मृति को सुधारते हैं, बल्कि मस्तिष्क की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को भी धीमा करते हैं। इस अध्ययन में 60 से 79 वर्ष की आयु के 2,100 से अधिक निष्क्रिय अमेरिकी नागरिकों को शामिल किया गया था, जिनमें सामान्य स्मृति थी लेकिन अल्ज़ाइमर और संज्ञानात्मक गिरावट का खतरा बढ़ा हुआ था।
अध्ययन का नेतृत्व कर रहीं वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर लॉरा बेकर ने कहा, “इस कार्यक्रम में शामिल लोगों की संज्ञानात्मक क्षमताएं ऐसे लोगों जैसी हो गईं जो उनसे एक या दो साल छोटे हैं।”
अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों को दो समूहों में बाँटा गया—पहले समूह को अपने स्तर पर आहार और व्यायाम सुधारने का निर्देश दिया गया, जबकि दूसरे समूह को एक सुसंगठित, कड़े कार्यक्रम में शामिल किया गया जिसमें सप्ताह में चार बार एरोबिक व्यायाम, हृदय-स्वस्थ भूमध्यसागरीय आहार, ऑनलाइन मानसिक प्रशिक्षण सत्र, नियमित सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी तथा रक्तचाप और रक्त शर्करा की लगातार निगरानी जैसी व्यवस्थाएँ शामिल थीं। दोनों समूहों में सुधार देखा गया, लेकिन व्यवस्थित कार्यक्रम वाले समूह में काफी बेहतर परिणाम मिले।
यह शोध POINTER Study के तहत किया गया और इसके नतीजे टोरंटो में अल्ज़ाइमर एसोसिएशन इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किए गए। साथ ही, यह जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) में प्रकाशित हुआ।
बैनर अल्ज़ाइमर इंस्टीट्यूट, फीनिक्स की शोधकर्ता जेसिका लैंगबाम, जो अध्ययन से जुड़ी नहीं थीं, ने कहा, “यह परिणाम दिखाता है कि हम उम्र से जुड़ी संज्ञानात्मक गिरावट को मोड़ सकते हैं।”
यह स्टडी फिनलैंड में हुई पहले की एक छोटी स्टडी से भी मेल खाती है, जो कम विविध जनसंख्या पर आधारित थी। बेकर का कहना है कि व्यवस्थित परिवर्तन आसान नहीं होते, लेकिन “नियमित और जानबूझकर किए गए प्रयासों के बिना कोई आदत नहीं बदली जा सकती।” उन्होंने कहा कि प्रतिभागियों को प्रशिक्षकों और मार्गदर्शकों से लगातार प्रोत्साहन मिलता रहा, जिससे यह बदलाव उनके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव बन गया।
इस स्टडी पर अल्ज़ाइमर एसोसिएशन ने करीब 500 करोड़ रुपये (50 मिलियन डॉलर) खर्च किए हैं, जबकि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने ब्रेन स्कैन, ब्लड टेस्ट और स्लीप स्टडी पर अतिरिक्त फंडिंग की है। इन आंकड़ों का विश्लेषण भविष्य में मस्तिष्क स्वास्थ्य के और भी गहरे रहस्यों को उजागर कर सकता है।
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