भारतीय रसोई में आमतौर पर बनने वाली तोरई (Luffa acutangula) न सिर्फ स्वादिष्ट होती है, बल्कि इसके औषधीय गुण इसे एक बहुआयामी स्वास्थ्यवर्धक सब्जी बनाते हैं। गर्मियों में पचने में आसान और शरीर को ठंडक पहुंचाने वाली इस सब्जी का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में अनेक रोगों के उपचार में किया जाता रहा है।
अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, तोरई का पौधा भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, जापान, मिस्र और अफ्रीका के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत में आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक संहिता में इसे पाचनवर्धक और रक्तशोधक बताया गया है। इसका उपयोग पीलिया, मधुमेह, बवासीर, दस्त, दाद, कुष्ठ रोग और सिरदर्द जैसी स्थितियों में किया जाता रहा है।
वैज्ञानिक अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि तोरई में पाए जाने वाले प्राकृतिक पेप्टाइड्स इंसुलिन की तरह कार्य करते हैं, जिससे यह डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी मानी जाती है। नियमित रूप से सब्जी के रूप में इसका सेवन रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
तोरई के सेवन से कब्ज, अपच और गैस जैसी समस्याओं में राहत मिलती है। यह सब्जी शरीर में ठंडक पहुंचाती है, जिससे गर्मियों में डिहाइड्रेशन से बचाव होता है। इसमें जल की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में सहायक है।
इसके अलावा, तोरई में मौजूद प्राकृतिक तत्व मानसिक तनाव को कम करने में सहायक माने जाते हैं। त्वचा के लिए भी यह उपयोगी होती है — इसके सेवन से त्वचा में निखार आता है और कई पारंपरिक नुस्खों में इसका इस्तेमाल दाद-खाज या त्वचा रोगों के इलाज में किया जाता है।
गांवों में सूखी हुई तोरई का उपयोग प्राकृतिक लूफा के रूप में किया जाता है। जब यह पूरी तरह सूख जाती है, तो उसका छिलका हटाकर अंदर के रेशों को त्वचा की सफाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह बायोडिग्रेडेबल होता है और सिंथेटिक स्क्रबर्स का एक इको-फ्रेंडली विकल्प है। तोरई एक ऐसी सब्जी है जो न केवल खाने में हल्की और स्वादिष्ट होती है, बल्कि कई रोगों में लाभकारी भी है। डायबिटीज से लेकर त्वचा और मानसिक स्वास्थ्य तक, इसके फायदे इसे हर घर की थाली में जगह देने के लिए पर्याप्त हैं।
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