आयुर्वेद में गले को सिर्फ भोजन और पानी निगलने का मार्ग नहीं, बल्कि वाणी, श्वास और जीवन ऊर्जा (प्राण) का केंद्र माना गया है। यही वजह है कि इसकी सुरक्षा और देखभाल को स्वास्थ्य का अहम हिस्सा बताया गया है। कंठ और स्वर तंत्र न केवल बोलने की क्षमता बल्कि ऊर्जा और संचार से भी जुड़े होते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार गला वात, पित्त और कफ इन तीनों दोषों से प्रभावित होता है। इनका संतुलन बिगड़ने पर कई समस्याएं सामने आती हैं। ठंडे या गरम पदार्थों का अधिक सेवन कफ बढ़ाता है, जिससे खराश, सूजन और बलगम की शिकायत होती है। तीखे और खट्टे पदार्थ पित्त को बढ़ाकर जलन का कारण बनते हैं, वहीं वात दोष के असंतुलन से गला सूखने लगता है और आवाज़ में खरखराहट आने लगती है।
गले की सेहत बनाए रखने के लिए आयुर्वेद कई सरल और प्रभावी उपाय बताता है। गुनगुने पानी से गरारे करना सबसे आसान और कारगर तरीका है, क्योंकि यह गले की सफाई करता है और संक्रमण से बचाता है। हल्दी और शहद का मिश्रण गले की खराश और सूजन को कम करने के साथ-साथ प्राकृतिक एंटीसेप्टिक का काम करता है। वहीं तुलसी और मुलेठी का काढ़ा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और गले को भीतर से मजबूती देता है।
घरेलू मसाले जैसे अदरक, लौंग और काली मिर्च गले के दर्द और संक्रमण में राहत पहुंचाने में बेहद सहायक हैं। इसके साथ ही आयुर्वेद यह भी सलाह देता है कि ठंडे पेय, आइसक्रीम और अत्यधिक तैलीय भोजन से परहेज करना चाहिए, क्योंकि ये गले को कमजोर बनाकर बीमारियों के प्रति संवेदनशील कर देते हैं।
जीवनशैली और योग का महत्व
गले की सेहत सिर्फ औषधियों से नहीं बल्कि जीवनशैली से भी जुड़ी है। प्राणायाम और ध्यान गले और स्वर तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। प्राणायाम से श्वास प्रणाली मजबूत होती है और वाणी की स्पष्टता आती है। योगाभ्यास से रक्तसंचार बेहतर होता है, जिससे कंठ लंबे समय तक स्वस्थ रहता है। इसके अलावा पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और तनावमुक्त जीवनशैली भी गले को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी हैं।
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