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Saturday, December 6, 2025
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क्यों ‘मयूरासन’ से ‘उष्ट्रासन’ तक, योग के अधिकांश आसनों के नाम पशु‑पक्षियों पर रखे गए?

अधिकतर योग‑आसनों के नाम सीधे‑सीधे संस्कृत के उन शब्दों से बने हैं, जो पशु‑पक्षियों की रूपरेखा (उदाहरण: ‘भुजंग’=सर्प), स्वभाव (उदाहरण: ‘उष्ट्र’=ऊँट) या कर्म‑धारा (उदाहरण: ‘मयूर’=मोर) का संकेत देते हैं।

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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) से ठीक पहले एक दिलचस्प चर्चा फिर तेज हो गई है—आख़िर भारतीय योग में इतनी बड़ी तादाद में आसनों के नाम जानवरों और पक्षियों से ही क्यों जुड़ते हैं? प्राचीन योग‑ग्रंथों से लेकर आधुनिक हेल्थ‑जर्नल्स तक, मयूरासन, उष्ट्रासन, भुजंगासन, कपोतासन, बकासन और मकरासन जैसे दर्जनों आसन हमें सीधे प्रकृति की ओर ले जाते हैं। इसके पीछे केवल प्रतीकवाद नहीं, बल्कि एक गहरा दार्शनिक और शारीरिक विज्ञान छिपा है।

योग‑विशेषज्ञों के मुताबिक ऋषि‑मुनियों ने हजारों वर्ष पहले पशु‑पक्षियों की गतिविधि, शक्ति, संतुलन और लचीलापन को आध्यात्मिक साधना के साथ जोड़ा। उदाहरण के तौर पर—

  • भुजंगासन (कोबरा पोज़) रीढ़ में लचीलापन लाता है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है।
  • उष्ट्रासन (ऊँट पोज़) छाती खोलने के साथ हृदय‑चक्र को सक्रिय करता है, जिससे तनाव कम होता है।
  • कपोतासन (कबूतर पोज़) कूल्हों और जांघों के जकड़ाव को दूर कर बैठने‑चलने की मुद्रा सुधारता है।
  • मयूरासन (मोर पोज़) पेट और हाथों को मज़बूत कर पूरे शरीर का संतुलन सिखाता है।
  • बकासन (क्रेन पोज़) कलाइयों और कोर‑मसल्स की ताक़त बढ़ाकर ध्यान‑एकाग्रता पक्का करता है।
  • मकरासन (मगरमच्छ पोज़) गहरी शिथिलता देकर रीढ़ को आराम देता है।

भारतीय विद्या भवन के योगाचार्य डॉ. गिरिधर मिश्र बताते हैं, “प्रकृति‑अनुरूप आसन हमें याद दिलाते हैं कि मानव‑शरीर भी एक जीव‑जंतुओं के जाल में ताना‑बाना है। जब हम मोर, ऊँट या कोबरा की आकृति अपनाते हैं, तो उनकी विशिष्ट जीवविज्ञानिक खूबियाँ—जैसे फेफड़ों का विस्तार या रीढ़ की लचक—हमारे भीतर सक्रिय होती हैं।”

केवल शारीरिक फ़ायदों तक ही बात सीमित नहीं है। AIIMS‑दिल्ली की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. अमृता सैनी मानती हैं कि “प्रकृति‑सदृश मुद्राएँ मस्तिष्क में शांत तरंगें पैदा करती हैं।” किसी जानवर की भंगिमा अपनाते समय हमारा दिमाग उसे मिरर‑नीयूरन्स के ज़रिए ‘अनुभव’ करता है, जिससे तनाव‑हार्मोन घटते हैं और ध्यान की गहराई बढ़ती है।

अधिकतर योग‑आसनों के नाम सीधे‑सीधे संस्कृत के उन शब्दों से बने हैं, जो पशु‑पक्षियों की रूपरेखा (उदाहरण: ‘भुजंग’=सर्प), स्वभाव (उदाहरण: ‘उष्ट्र’=ऊँट) या कर्म‑धारा (उदाहरण: ‘मयूर’=मोर) का संकेत देते हैं। इससे अभ्यास करने वाला साधक तुरंत समझ पाता है कि मुद्रा कैसे बनानी है और किस गुण को जाग्रत करना है।

उल्लेखनीय है कि जर्नल ऑफ़ बॉडीवर्क एंड मूवमेंट थैरेपीज़ की 2024 की एक समीक्षा‑रिपोर्ट में पाया गया कि जानवरों से प्रेरित योग‑आसन करने वाले प्रतिभागियों के मसल‑इंऐक्टिवेशन पैटर्न पारंपरिक स्ट्रेचिंग मुकाबले कहीं संतुलित थे। इससे रीढ़ का लचीलापन और फेफड़ों की वेंटिलेशन क्षमता स्पष्ट रूप से बेहतर हुई।

जब आप 21 जून को मैट बिछाएँ और ‘भुजंगासन’ या ‘मयूरासन’ में उतरें, तो याद रखें—यह केवल व्यायाम नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ तादात्म्य की भारतीय परंपरा है। जानवरों‑पक्षियों के नाम वाले ये आसन हमें शक्ति, संतुलन, लचीलापन और धैर्य का पाठ पढ़ाते हैं। और जैसा शाहिद कपूर ने अपनी हाल की पोस्ट में ‘ड्रग्स की ऐसी की तैसी’ कहा—वैसे ही योग हमें बताता है कि प्राकृतिक जीवनशैली अपनाकर हम नकारात्मकताओं को मात दे सकते हैं। अगले बार आसन लगाते वक्त, अपनी भीतरी ‘मोर’ की शान, ‘कोबरा’ की शक्ति और ‘ऊँट’ की सहनशीलता को महसूस कीजिए—शरीर‑मन दोनों आपको धन्यवाद कहेंगे।

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