समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम के संबंध में की गई टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीखा हमला बोला है। भाजपा ने इसे दलित समाज का अपमान और कांशीराम की राजनीतिक विरासत को छोटा दिखाने की कोशिश करार दिया है।
भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने रविवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो साझा करते हुए अखिलेश यादव पर सीधा निशाना साधा। उन्होंने लिखा, “अखिलेश यादव ने पहले राणा सांगा को गद्दार कहने वाले सपा सांसद के बयान का समर्थन कर क्षत्रिय समाज का अपमान किया। अब वे दलित समाज के पथ-प्रदर्शक कांशीराम जी का उपहास कर रहे हैं, केवल उन्हें मुलायम सिंह से छोटा दिखाने के लिए।”
मालवीय ने आगे कहा, “यह कहना कि कांशीराम चुनाव नहीं जीत पा रहे थे और सपा ने उन्हें जिताया, पूरे दलित समाज का अपमान है। अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू समाज के हर वर्ग से आपको दुर्गंध आने लगी है। ‘सेक्युलरिज्म’ नाम की इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है।”
विवाद की जड़ में अखिलेश यादव का हालिया बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था,”यह इतिहास है, लेकिन यह भी सच है कि अगर किसी ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक को लोकसभा में पहुंचाया था तो वे यहां के मतदाता ही थे जिन्होंने उन्हें लोकसभा में पहुंचाया था। वह कहीं से भी जीतने में असमर्थ रहे।”
उन्होंने आगे जोड़ा,”इतिहास में दर्ज है कि उस समय अगर किसी ने पार्टी के संस्थापक कांशीराम को जिताने में मदद की थी तो वह नेताजी (मुलायम सिंह यादव) और समाजवादी लोग थे, जिन्होंने उन्हें लोकसभा में पहुंचाने में मदद की थी।”
गौरतलब है कि कांशीराम 1991 में पहली बार इटावा से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे, जो सपा-बसपा गठबंधन के तहत लड़ा गया था। यह गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया सामाजिक समीकरण लेकर आया, जिसने पिछड़ी जातियों और दलितों को भाजपा के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एकजुट किया। हालांकि, 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद यह गठबंधन टूट गया था, जब मायावती पर सपा कार्यकर्ताओं द्वारा हमले का आरोप लगा था।
भाजपा का आरोप है कि अखिलेश यादव लगातार हिंदू समाज के विभिन्न वर्गों का अपमान कर रहे हैं—पहले क्षत्रिय, अब दलित। पार्टी इसे एक सुनियोजित रणनीति बता रही है, जिससे समाज को बांटने और अपने राजनीतिक लाभ के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि, सपा की ओर से इस बयान पर अब तक कोई औपचारिक सफाई नहीं आई है, लेकिन भाजपा ने संकेत दे दिया है कि वह इस मुद्दे को लेकर दलित समाज के बीच आक्रामक प्रचार करेगी। यह विवाद ऐसे समय में उभरा है जब उत्तर प्रदेश की राजनीति लोकसभा चुनावों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है और हर दल अपने-अपने सामाजिक आधार को मजबूत करने में जुटा हुआ है।
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