पत्थर ब्लास्ट हादसे में बेटे की मौत पर 27 साल बाद मिला मां को न्याय!

कोर्ट ने दिया मुआवजा

पत्थर ब्लास्ट हादसे में बेटे की मौत पर 27 साल बाद मिला मां को न्याय!

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27 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार कांदिवली (पूर्व) की रहने वाली मां चिंतादेवी अर्जुनदास को अपने बेटे की मौत के मामले में न्याय मिला है। सिटी सिविल कोर्ट ने खदान मालिक चंदर गडवाल को लापरवाही का दोषी ठहराते हुए 2.04 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिस पर 8% ब्याज भी जोड़ा जाएगा। यह फैसला उस दर्दनाक हादसे से जुड़ा है, जिसमें 1997 में आठ वर्षीय अजयकुमार की जान चली गई थी।

19 फरवरी 1997 को चिंतादेवी ने अपने बेटे अजयकुमार को दोपहर 12 से 5 बजे की कक्षाओं के लिए अनुदत्त विद्यालय छोड़ा था। करीब 4 बजे गडवाल द्वारा पास के प्लॉट पर की गई पत्थर ब्लास्टिंग से एक बड़ा पत्थर स्कूल की छत तोड़कर सीधे कक्षा में गिरा और अजयकुमार के सिर पर आ लगा। स्कूल प्रबंधन ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया। पहले भगवती अस्पताल और फिर नायर अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन लगभग दो महीने बाद, 16 अप्रैल 1997 को अजयकुमार ने दम तोड़ दिया।

फरवरी 1998 में चिंतादेवी ने गडवाल के खिलाफ सिटी सिविल कोर्ट में मामला दायर किया। गडवाल ने न तो नोटिसों का जवाब दिया और न ही अदालत की कार्यवाही में हिस्सा लिया। स्कूल प्रबंधन ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा कि हादसे में उनकी कोई लापरवाही नहीं थी और ब्लास्टिंग गडवाल ने बिना किसी सूचना के की थी।

अदालत ने फैसले में स्पष्ट किया कि गडवाल ने अवैध रूप से ब्लास्ट किया और सुरक्षा के प्रति पूरी तरह लापरवाह रहे। इसी लापरवाही के कारण भारी पत्थर कक्षा की छत तोड़कर अजयकुमार पर गिरा और उसकी जान चली गई। अदालत ने माना कि स्कूल ने तत्काल बच्चे को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई और उसकी ओर से कोई लापरवाही नहीं पाई गई।

चिंतादेवी और उनके पति, जो रेलवे में कार्यरत थे, ने 10 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी। उन्होंने अदालत को बताया कि अजयकुमार कक्षा में अव्वल छात्र था और उसका भविष्य उज्ज्वल था। हालांकि अदालत ने 2.04 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।

लगभग तीन दशकों की इस लंबी जद्दोजहद के बाद चिंतादेवी के लिए यह फैसला न सिर्फ न्याय की जीत है बल्कि उनके बेटे की स्मृति को न्यायिक मान्यता भी देता है। इतने वर्षों का दर्द झेलने के बाद आखिरकार उन्हें यह सांत्वना मिली है कि उनके बेटे की मौत को न्याय ने अनदेखा नहीं किया।

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