Maharashtra:हाईकोर्ट से आया फोन तो खुली पोल,अस्पताल में खाली नहीं मिला बेड

Maharashtra:हाईकोर्ट से आया फोन तो खुली पोल,अस्पताल में खाली नहीं मिला बेड
पुणे महानगरपालिका की खुली पोल :  हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर ऑनलाइन सुनवाई के दौरान पुणे महानगपालिका की वेबसाइट पर पांच बेड खाली दिखाई दे रहा था जब फोन किया गया तो महिला ने इसके उलट दिया जवाब।

मुंबई। वह कहावत आप ने सुनी ही होगी, ‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं।ʼ यही हाल इस देश में सरकारी महकमे का भी है। वेबसाइट पर पुणे के अस्पतालों में खाली बेड की जानकारी दिखाई दे रही थी पर जब हाईकोर्ट के जज साहब के आदेश पर अस्पताल में फोन लगाया गया तो पुणे महानगरपालिका की पोल खोल गई। पता चला की वास्तव में बेड खाली नहीं हैं। दरअसल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर ऑनलाइन सुनवाई के दौरान पुणे महानगपालिका की वेबसाइट पर पांच बेड खाली होने की जानकारी दिखाई दे रही थी, लेकिन कोर्ट में दावा किया गया कि लोगों को अस्पतालों में बेड मिलने में काफी दिक्कत आ रही है।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने अधिवक्ता नितिन देशपांडे को पुणे में बेड की उपलब्धता का पता करने के लिए फोन करने को कहा। देशपांडे ने अपने पास बैठे डॉक्टर को फोन लगाने को कहा। फोन लगाने के बाद फोन उठाने वाली महिला से कहा गया कि एक मरीज की हालत ठीक नहीं है, क्या उसे एक वेंटिलेटर बेड मिल सकता है। इस पर महिला ने कहा कि फिलहाल बेड नहीं है। शाम तक इस बारे में आप से बात की जाएगी। ऑनलाइन सुनवाई के दौरान अस्पताल से मिले इस जवाब के बाद खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के मामले में पुणे मनपा आयुक्त के हलफनामा दायर करने से काम खत्म नहीं हो जाता है।
मरीजों की जरूरत के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाने की जरूरत है। बेड प्रबंधन की दिशा में अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है। इस दौरान पुणे मनपा के वकील ने दावा किया कि बेड उपलब्ध है। हो सकता फोन उठाने वाली महिला के पास ताजा जानकारी न हो। इसके अलावा फोन उठाने वाली महिला डॉक्टर नहीं थी। किस मरीज को कैसे बेड की जरूरत है, यह हमारे डॉक्टर मरीज की हालत देखकर करते हैं।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 19 मई को होगी। इस दौरान अदालत ने कहा कि जब मुंबई सहित महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से कम हो रही है तो रेमडेसिविर इंजेक्शन जा कहां रहे हैं। खंडपीठ ने इस बात पर सवाल उठाया कि जब सेलिब्रेटी लोगों को सारी सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं तो उन्हें ही नोडल ऑफिसर क्यों नहीं बना देते।
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